Public Corporation Ministerial and Parliamentary Control Over Public Corporation सार्वजनिक निगमों पर मन्त्रिमण्डल और संसदीय नियंत्रण

Public Corporation : सार्वजनिक निगमों पर मन्त्रिमण्डल और संसदीय नियंत्रण

पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन पब्लिक कॉर्पोरेशन

Public Corporation : Ministerial and Parliamentary Control Over Public Corporation सार्वजनिक निगमों पर मन्त्रिमण्डल और संसदीय नियंत्रण – सार्वजनिक निगमों की स्थापना सबसे पहले पश्चिमी देशों में हुई थी। भारत में भी सार्वजनिक निगमों का काफी विकास हुआ है और देश के सर्वांगीण विकास में इनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है।

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भारत में भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत का खाद्य निगम ,रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, दामोदर घाटी निगम आदि सार्वजनिक निगम के महत्वपूर्ण उदाहरण है।

Table of Contents विषय सूची

सार्वजनिक निगमों पर नियंत्रण ( Control Over Public Corporation )

सार्वजनिक निगमों को अपने अपने कार्य क्षेत्र में काफी स्वायत्तता दी गई है परंतु कई तरह का नियंत्रण भी रखा जाता है ताकि वह जनकल्याण के कार्यों को छोड़कर अपने हितों की सुरक्षा के लिए मनमानी करनी शुरु ना कर दे। इसलिए सार्वजनिक निगमों पर सरकार और संसद दोनों का नियंत्रण होता है जिनका विस्तार सहित वर्णन इस प्रकार है-

सार्वजनिक निगमों पर मंत्रिमंडल का नियंत्रण ( Ministerial Control Over Public Corporation in Hindi )

व्यापारिक कार्यों में सफलता के लिए सार्वजनिक निगमों को दैनिक कार्यों में तो काफी स्वतंत्रता प्रदान की गई है परंतु नीति निर्माण में यह मंत्री के नियंत्रण के अधीन होते हैं। मंत्रिमंडल के नियंत्रण के भिन्न-भिन्न रूपों का वर्णन इस प्रकार हैं –

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निर्देशकों को नियुक्त करने की शक्ति ( Power to appoint Directors )

सार्वजनिक निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की नियुक्ति करने का अधिकार सरकार के पास होता है। सामान्य तौर पर सरकार अपने उच्चाधिकारियों को निगम के डायरेक्टर नियुक्त करती है जो कि प्रत्यक्ष तौर पर मंत्री के अधीन होते हैं।

कई ऐसे सार्वजनिक निगम है जैसे कि ,दामोदर घाटी निगम ,एयर इंडिया ,इंडियन एयरलाइंस आदि के सभी डायरेक्टर सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक निगमों के चेयरमैन भी सरकार द्वारा ही नियुक्त किए जाते हैं।

सामान्य नीति पर नियंत्रण( Control Over General Policy )

सरकार सार्वजनिक निगमों की सामान्य नीति पर नियंत्रण रखती है। इस उद्देश्य के लिए मंत्री सार्वजनिक निगमों को सामान्य नीति संबंधी निर्देश जारी करते हैं और जिनका पालन करना सार्वजनिक निगमों का कर्तव्य होता है। इस तरह के निर्देशों द्वारा सरकार सार्वजनिक निगमों पर अपना नियंत्रण रख सकती है।

वित्तीय नियंत्रण ( Financial Control )

चाहे सार्वजनिक निगमों को वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त होती है परंतु सरकार प्रत्येक सार्वजनिक निगम की व्यय सीमा निर्धारित कर देती है जिससे सरकार सार्वजनिक निगमों पर अपना नियंत्रण कायम रखने में सफल होती है।

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उच्च दर्जे के कर्मचारियों पर नियंत्रण ( Control Over High Officials of Public Corporation )

सार्वजनिक निगमों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के अतिरिक्त इनके कई उच्च अधिकारियों पर भी सरकार का नियंत्रण होता है। उदाहरण स्वरूप एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के जनरल मैनेजरों की नियुक्ति सरकार की स्वीकृति के बिना नहीं की जा सकती।

लेखा पड़ताल संबंधी शक्तियां ( Power in relation to Accounting and Auditing )

सार्वजनिक निगमों पर सरकारी नियंत्रण की एक अन्य विधि यह है कि सार्वजनिक निगमों को अपने हिसाब किताब सरकार द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार रखने पड़ते हैं। इसी तरह उनके लेखों की लेखा जांच भारत के नियंत्रक एवं महालेखा पाल द्वारा की जाती है और वह अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को पेश करता है।

सार्वजनिक निगमों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार ( Power to seek information from public Corporation )

सरकार को यह अधिकार भी प्राप्त है कि वह सार्वजनिक निगमों से किसी भी तरह की सूचना अथवा रिपोर्ट पर प्राप्त कर सकती है। सार्वजनिक निगमों को अपने आचरण के बारे में सरकार को रिपोर्ट पेश करनी होती है जो कि आगे संसद के सामने पेश की जाती है।

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सार्वजनिक निगमों पर संसदीय नियंत्रण ( Parliamentary Control Over Public Corporation in Hindi )

सार्वजनिक निगमों प्रशासकीय और वित्तीय क्षेत्र में काफी स्वायत्तता का उपभोग करते हैं। ऐसी स्वायत्तता व्यापारिक क्षेत्र के लिए अत्यावश्यक है। इन पर विभागों की तरह संसद नियंत्रण भी नहीं दिया जा सकता और ना ही इन्हें बिल्कुल स्वतंत्र रखा जा सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक निगमों पर कोई प्रभावी नियंत्रण किया जाए।

ऐसे नियंत्रण के लिए संसद से अधिक और कोई प्रभावी अधिकारी नहीं हो सकता क्योंकि यहां भागीदारी और खपतकारों का प्रतिनिधित्व करती है जो कि राष्ट्र के हितों को भी सुरक्षित रखने के लिए उत्तरदाई है। संसद यह देख सकती है कि सार्वजनिक निगम ने जो वित्तीय और प्रबंधकीय नीति अपनाई है वह बिल्कुल ठीक है और जन नीति के ही अनुकूल है कि नहीं।

संक्षेप में सार्वजनिक निगमों पर संसदीय नियंत्रण निम्नलिखित अंग द्वारा किया जा सकता है – प्रश्न , बहस और संसदीय समितियां

प्रश्न ( Questions )

संसद के सदस्यों को संबंधित मंत्री को सार्वजनिक क्षेत्र के विषय में प्रश्न पूछने का अधिकार है। प्रश्नों के घंटे की विशेष महत्ता होती है क्योंकि इससे महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सरकार को विश्वास दिलाने और अपनी स्थिति व्यक्त करने का समय भी मिल जाता है।

इन विधियों से सरकार जनता की भावनाओं के अनुसार अपनी नीतियों को भी परिवर्तित कर सकती है। प्रश्न तीन तरह के होते हैं-

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तारा प्रश्न ( Starred Questions )

तारा प्रशन ऐसे प्रश्न होते हैं जिनके उत्तर जबानी दिए जाते हैं।

गैर तारा प्रश्न ( Unstarred Questions )

ऐसे प्रश्नों के जवाब लिखित रूप में लिए जाती है। 1 सदस्य 1 दिन में तीन तारा प्रश्न ही पूछ सकता है। परंतु गैर तारा प्रश्नों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती है। प्रश्नों के जवाब के लिए 10 दिनों का नोटिस दिया जाता है ताकि मंत्री आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सके।

कम समय के नोटिस के प्रश्न( Short Notice Questions )

यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक विषय के बारे में पूछे जाती है। ऐसे प्रश्नों का जवाब थोड़े समय में देना पड़ता है। स्पीकर की आज्ञा से सदस्य अधिक जानकारी के लिए पूरक प्रश्न भी पूछ सकती है।

बहस ( Debates )

बहस के लिए भी सदस्य को प्रश्न पूछने का महत्वपूर्ण अवसर मिलता है जिससे कि वह सार्वजनिक उद्यमों के कार्यों के संबंध में विचार विमर्श कर सके। प्रश्न पूछने के लिए बहस की निम्नलिखित विधियां है-

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आधे घंटे की बहस ( Half an Our Discussion )

यदि सदस्य मंत्री के जवाब से संतुष्ट नहीं होती तो वह आधे घंटे की बहस के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। इसके लिए 3 दिनों का नोटिस देना आवश्यक होता है। सदस्यों को संक्षेप में अपने विचार प्रकट करने पड़ते हैं और मंत्री को उनका जवाब देना पड़ता है।

सार्वजनिक महत्व वाले विषय( Motion of Adjournment on a matter of public Importance )

सार्वजनिक महत्व के विषय पर स्थगनादेश भी स्पीकर की अनुमति से दायर किए जा सकते हैं ताकि किसी उद्योग के बहुत आवश्यक मामले पर सोच विचार किया जा सके जैसे कि सार्वजनिक निगमों में श्रमिकों की समस्या।

कम समय के लिए सार्वजनिक महत्व वाले विषय पर बहस ( Discussion on matter of Public Importance for Short Discussion )

सार्वजनिक महत्व के किसी आवश्यक मामले पर कम समय के लिए बहस करने के लिए सदस्यों के समर्थन से लोकसभा की स्पीकर को कारण बताओ नोटिस दे सकता है। इस पर सदन में ना तो मत डाले जाते हैं और ना ही कोई प्रस्ताव पेश किया जाता है। यदि स्पीकर आज्ञा दे दे तो उस विषय पर ढाई घंटे तक बहस हो सकती है।

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जांच बोर्डों पर बहस ( Discussion on Enquiry Boards )

यदि सरकार द्वारा किसी उद्योग की जांच करने के लिए जांच समिति नियुक्त की जाए तो उसकी रिपोर्ट पर संसद में बहस की जा सकती है।

प्रस्ताव ( Motion )

स्पीकर की आज्ञा से किसी विशेष विषय पर बहस करने के लिए प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। स्पीकर सदन के नेता की सहमति से एक अथवा अधिक दिन इस पर बहस के निश्चित कर सकता है।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव ( Call Attention Motion )

स्पीकर की पूर्व स्वीकृति से कोई भी सदस्य मंत्री का ध्यान सार्वजनिक महत्व के आवश्यक विषय की तरफ दिला सकता है। इसी विधि से आवश्यक जानकारी दी जा सकती है जिससे भ्रम दूर हो जाते हैं।

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वार्षिक रिपोर्टें ( Annual Reports )

सभी सरकारी उद्योगों को अपने कार्यों के विषय में वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है और जो संसद के समक्ष पेश की जाती है। इस तरह सदस्यों को उद्योगों के कार्यों के बारे में पूर्ण जानकारी मिल जाती है।

समावेदन ( Resolutions )

इसके लिए 15 दिनों का नोटिस देना आवश्यक होता है। यह सरकार का किसी महत्वपूर्ण विषय पर ध्यानाकर्षण के लिए सरकार के नीति का सदन द्वारा सहमति लेने अथवा ना लेने पर अथवा ऐसे रूप में हो सकता है। प्रत्येक मत कि एक काफी सदस्य को दी जाती है और प्रस्ताव पेश करने वाला सदस्य शेष सदस्यों के साथ बहस अथवा विचार-विमर्श करता है।

बजट मांगे ( Budgetary Demands )

संसद के सदस्यों के हाथ में सार्वजनिक उद्योग पर नियंत्रण करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण साधन है। परंतु समय कम होने के कारण इसका उचित प्रयोग नहीं किया जा सकता।

उस कानून में संशोधन करना जिसके लिए सार्वजनिक निगम स्थापित किया गया है ( Amendment of the Statute act under which the public Enterprises has been set up )

जब उस अधिनियम को जिसके अधीन सरकारी उद्योग स्थापित किया गया था को सुधारा जाए तो सदस्यों को उस उद्योग के कार्य के विषय में आलोचना और बहस करने का समय मिल जाता है।

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राष्ट्रपति के भाषण पर बहस ( Discussion on Presidend’s Address )

राष्ट्रपति के भाषण में सरकार की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों में संबंधित बातों का वर्णन किया होता है। सरकार उद्योग भी एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मामला है और इस तरह राष्ट्रपति के भाषण का धन्यवाद प्रस्ताव पर विचार के समय किसी भी सरकारी उद्योग के विषय का संदर्भ दिया जा सकता है।

संसदीय समितियां ( Parliamentary Committees )

सार्वजनिक लेखा समिति और अनुमान समिति भी सार्वजनिक क्षेत्र पर नियंत्रण करती है। 1964 में इन दोनों समितियों के कार्य करने के लिए नवनिर्मित सार्वजनिक क्षेत्र की समिति ने प्राप्त कर लिए हैं। संसदीय समितियां इस प्रकार कार्य करती हैं –

सार्वजनिक लेखा समिति ( Public Accounts Committee )

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को सरकारी वित्त का रक्षक माना गया है। वह यह देखता है कि विभागों के लिए जो पैसा संसद ने स्वीकार किया है वह उन विषयों पर ही खर्च किया गया है अथवा नहीं । वह यह भी देखता है कि पैसा सूझबूझ और संयम से खर्च किया गया है कि नहीं।

इस विषय में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष पेश करता है जो कि उसे आगे संसद के समक्ष पेश कर देता है। संसद उस रिपोर्ट को सार्वजनिक लेखा समिति की छानबीन के लिए उसे सौंप देती है।

सार्वजनिक लेखा समिति में 22 सदस्य होते हैं उनमें 15 सदस्य लोकसभा और 7 सदस्य राज्यसभा में से निर्वाचित होते हैं। समिति का चेयरमैन स्पीकर द्वारा नियुक्त किया जाता है परंतु यदि डिप्टी स्पीकर इस समिति का सदस्य बन जाए तो वह इसका पदेन चेयरमैन बन जाएगा।

इस समिति का मुख्य कर्तव्य नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को चीर फाड़ करना है। यह अपने समक्ष रिकॉर्ड, आवश्यक कागज और संबंधित व्यक्तियों को भी पेश होने के लिए कह सकती है। सार्वजनिक लेखा समिति ने कई वित्तीय त्रुटियों को संसद के समक्ष लाई हैं।

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अनुमान समिति ( Estimate Committee )

यह समिति 10 अप्रैल 1950 को स्थापित की गई थी। इसमें 30 सदस्य होते हैं जो कि सभी लोकसभा में से अनुपातिक निर्वाचन प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं। इस समिति का चेयरमैन स्पीकर द्वारा नियुक्त किया जाता है। यदि डिप्टी स्पीकर इस समिति का सदस्य हो तो वहां अपने पद के कारण इसका चेयरमैन बन जाता है।

इस समिति का मुख्य कर्तव्य वित्तीय सुझाव में संयम लाने के लिए परामर्श देना है। समिति की सिफारिशें संसद की तरह महत्वपूर्ण समझी जाती है। इसलिए सरकार के लिए स्वीकार करनी आवश्यक हो जाती है। सार्वजनिक क्षेत्र की समिति के स्थापित होने से पूर्व इस समिति ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

सार्वजनिक क्षेत्र की समिति ( Committee on Public Undertakings )

सर्वप्रथम 1953 में डॉ लंका सुंदरम के प्रस्ताव पर इस समिति की स्थापना का प्रशन संसद में उठाया गया था। चाहे इस प्रस्ताव पर कई वर्ष बहस होती रही परंतु इस समिति की 1963 तक स्थापना नहीं हो सकी थी। अंत में मई 1964 में इसकी स्थापना की गई।

इस समिति में संसद के दोनों सदनों में से सदस्य चुने जाते हैं। लोकसभा में से 10 सदस्य और राज्यसभा में से पांच सदस्य अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर अपने सदस्यों में से ही चुने जाते हैं। समिति का चेयरमैन स्पीकर द्वारा नियुक्त किया जाता है।

प्रस्ताव में बताया गया है कि इस समिति का धन संबंधी बिलों के पास करने अथवा अनुमान से कोई संबंध नहीं होगा बल्कि उद्योगों के व्यापारिक मामलों से यह समिति संबंधित है और यह आशा की गई कि समिति राजनीति के प्रश्नों से तटस्थ रहकर अपने कार्यों का पालन करेगी।

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FAQ Checklist

सार्वजनिक निगमों पर नियंत्रण किसका होता है ?

सार्वजनिक निगमों को अपने अपने कार्य क्षेत्र में काफी स्वायत्तता दी गई है परंतु कई तरह का नियंत्रण भी रखा जाता है ताकि वह जनकल्याण के कार्यों को छोड़कर अपने हितों की सुरक्षा के लिए मनमानी करनी शुरु ना कर दे। इसलिए सार्वजनिक निगमों पर सरकार और संसद दोनों का नियंत्रण होता है

सार्वजनिक निगमों को मंत्रिमंडल नियंत्रित कैसे करते हैं?

सार्वजनिक निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की नियुक्ति करने का अधिकार सरकार के पास होता है। सामान्य तौर पर सरकार अपने उच्चाधिकारियों को निगम के डायरेक्टर नियुक्त करती है जो कि प्रत्यक्ष तौर पर मंत्री के अधीन होते हैं।

सार्वजनिक निगमों को संसद नियंत्रण कैसे करती हैं ?

सरकार सार्वजनिक निगमों की सामान्य नीति पर नियंत्रण रखती है। इस उद्देश्य के लिए मंत्री सार्वजनिक निगमों को सामान्य नीति संबंधी निर्देश जारी करते हैं और जिनका पालन करना सार्वजनिक निगमों का कर्तव्य होता है। इस तरह के निर्देशों द्वारा सरकार सार्वजनिक निगमों पर अपना नियंत्रण रख सकती है।

सार्वजनिक निगमों पर नियंत्रण क्यों रखा जाता है

सार्वजनिक निगमों को अपने अपने कार्य क्षेत्र में काफी स्वायत्तता दी गई है परंतु कई तरह का नियंत्रण भी रखा जाता है ताकि वह जनकल्याण के कार्यों को छोड़कर अपने हितों की सुरक्षा के लिए मनमानी करनी शुरु ना कर दे। इसलिए सार्वजनिक निगमों पर सरकार और संसद दोनों का नियंत्रण होता है

सार्वजनिक निगम समितियों के मुख्य कार्य कौन से हैं ?

1) सार्वजनिक क्षेत्रों के हिसाब और रिपोर्टों की छानबीन करना।
2 ) सरकारी उद्योगों के बारे में यदि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की कोई रिपोर्ट हो तो उनका भी निरीक्षण करना।
3) सरकारी नीति के मामले जो कि उद्योगों के व्यापारिक कार्यों से पृथक हो।
4 ) प्रशासन संबंधी दैनिक कार्य ।
5 ) सरकारी उद्योगों के संबंध में ऐसे वह कार्य जो कि सार्वजनिक लेखा समिति और अनुमान समिति को दिए गए हैं ।

सार्वजनिक निगम को कानून द्वारा कैसे नियंत्रित किया जाता है?

वैधानिक निगमों के रूप में या सार्वजनिक निगमों को स्वयं विधियों द्वारा बनाया जाता है। न्यायपालिका का सार्वजनिक निगमों पर शक्तिशाली नियंत्रण है । न्यायिक प्रणाली द्वारा विभिन्न शक्तियाँ सार्वजनिक निगमों को निहित की जाती हैं। न्यायिक प्रणाली में न्यायाधीश और अदालतें शामिल हैं।

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