Hindrances and Problems in the way of Globalisation वैश्वीकरण के मार्ग की मुख्य बाधाएं – कठिनाइयां – विश्वव्यापी दृष्टिकोण विश्व के राष्ट्रों के बीच सीमा एवं दूरी रहित सामाजिक ,आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों में खुले पन की नीति को व्यक्त करता है।
वैश्वीकरण का दृष्टिकोण विशेष रूप से शीतयुद्ध की समाप्ति ,पूर्व सोवियत संघ के विघटन एवं पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन के बाद विशेष रूप से विश्व के समक्ष एक लोकप्रिय दृष्टिकोण के रूप में उभर कर सामने आया है ।
आज दुनिया के सभी देश अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ति के रूप में अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे रहे हैं । सामरिक सुरक्षा की भावना राष्ट्रों के बीच अब नहीं रही है। ऐसी स्थिति में वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का राजनीतिक अर्थशास्त्री ही बदल दिया है।
कल तक जो राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाते थे उनका मुख्य उद्देश्य शक्ति को प्राप्त करना या शक्ति का प्रदर्शन करना था लेकिन अब के वैश्वीकरण के युग में अपने राष्ट्रीय हित को किसी न किसी रूप में सही ढंग से पूरा करना चाहते हैं।
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वैश्वीकरण के मार्ग की मुख्य बाधाएं,कठिनाइयां ( Hindrances and Problems in the way of Globalisation )
वैश्वीकरण के मार्ग में निम्नलिखित कठिनाइयां सामने आती हैं –
1) वैश्वीकरण के माध्यम से विकसित देश विकासशील देशों पर अपनी सर्वोच्चता कायम करना चाहते हैं जिसके कारण तृतीय विश्व के देशों में बड़ी प्रितिक्रिया देखने को मिलती हैं ।
2 ) वैश्वीकरण की प्रक्रिया में वैचारिक प्रतिबद्धता के अभाव का होना भी इसके मार्ग में बाधा उत्पन्न करता हैं ।
3 ) विकासशील एवं पिछड़े देशों में मूल समस्याओं ,जैसे कि गरीबी , भुखमरी , बेरोजगारी , आदि का बने रहना भी वैश्वीकरण के मार्ग में बाधा डालती हैं ।
4 ) आज भी अनेक देशों में लोकतंत्रीय का अभाव है जो कि वैश्वीकरण के लिए आवश्यक शर्त मानी जाती है।
5 ) तृतीय विश्व के देशों में पाई जाने वाली राजनीतिक स्थिरता के अभाव ने भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बाधा पैदा की है।
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6 ) विकसित देशों द्वारा वैश्वीकरण की प्रक्रिया को लागू करने में विकासशील एवं पिछड़े देशों को विश्वास में ना लेना भी एक बड़ी बाधा व्यवहार में बनी हुई है।
7 ) अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एवं नशीली वस्तुओं के व्यापार ने भी वैश्वीकरण के मार्ग में बाधा पैदा की है।
8 ) विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील एवं पिछड़े देशों को विकास के उद्देश्य से तकनीकी व आर्थिक सहायता ना देना भी वैश्वीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है क्योंकि विकसित देश आर्थिक सहायता तो अन्य देशों पर ऋण बढ़ाने के उद्देश्य से देते हैं जबकि तकनीकी सहायता देते समय तकनीक के नाम पर केवल निम्न स्तर की तकनीकी उपलब्ध करवाते हैं जिसका कोई लाभ नहीं होता।
9 ) विकसित एवं विकासशील देशों के बीच बढ़ती आर्थिक एवं विकास का अंतर भी वैश्वीकरण के मार्ग में बड़ी बाधा है।
10 ) विकसित एवं विकासशील देशों के बीच पाया जाने वाला प्राकृतिक संसाधनों के असंतुलन को कम ना कर पाने का उपाय भी वैश्वीकरण के मार्ग में एक बाधा है।
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भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव ( Impact of Globalisation on India )
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वैश्वीकरण के जहां तक भारत पर प्रभाव का सवाल है वह काफी महत्वपूर्ण है। आज भारत सरकार की नीति पूर्णता भूमंडलीकरण वाली नीति से जुड़ गई है। वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों के अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया है और निरंतर आर्थिक सुधारों की ओर अग्रसर है।
परंतु भारत सरकार को आर्थिक सुधार को संतुलित करते हुए इस प्रकार लागू करना होगा जिससे कि रोजगार और क्रय-शक्ति में भी वृद्धि हो और निर्धन लोगों को भी आर्थिक सुधारों का लाभ मिल सके। जिस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियां नफा नुकसान का आकलन करने के बाद ही पूंजी का निवेश करती है उसी प्रकार भारत सरकार को भी अपने नफा नुकसान का आकलन करने के बाद ही विदेशी पूंजी निवेश को प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए।
इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि स्वदेशी उद्योगो और विशेषकर लघु एवं कुटीर उद्योगों पर विदेशी पूंजी निवेश के प्रतिकूल और घातक प्रभाव नहीं पड़े। कुछ क्षेत्रों को स्वदेशी उद्योगों के लिए सुरक्षित कर देना चाहिए। यह अनुभव किया गया है कि समृद्ध देश श्रम मानक और पर्यावरण के नाम पर विकासशील देशों से आयात पर कई प्रकार के गैर सीमा शुल्क प्रतिबंध लगा देते हैं।
अपने निर्यातकों को कई प्रकार के अनुदान और रियायत देते हैं। विशेषकर कृषि उत्पाद पर तथा विकासशील देशों को इस बात के लिए विवश करते हैं कि वह अपनी आयात नीति को अधिक से अधिक उदार करें। विकासशील देशों के निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाती , जबकि उनके बाजार में विकसित देशों की भागीदारी तेजी से बढ़ती जा रही है।
इसका एक कारण यह है कि भारत और अन्य विकासशील देशों के उद्यमी पूंजी प्रौद्योगिकी एवं कुशल प्रबंध के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साधन प्रतिस्पर्धा करने में पिछड़ जाते हैं। अब जबकि संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था एकीकृत होने की दिशा में अग्रसर है भारत में आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम से पीछे हट कर अलग अलग होने का खतरा मोल नहीं ले सकता किंतु उसे अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को सर्वोच्च मानते हुए आर्थिक सुधारों को इस प्रकार लागू करना चाहिए कि सभी वर्गों को इसका लाभ मिल सके।
निष्कर्ष ( Conclusion )
अंत में भारत की वैश्वीकरण की प्रक्रिया में शामिल होने का क्या परिणाम होगा ,यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तो पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे भारत में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ेगी। इससे भारत को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में अपने वैश्वीकरण में शामिल होने वाले वैदेशिक नीति को भारत शांति पूर्वक चला भी नहीं सकेगा और अंतर्राष्ट्रीय पूंजीवाद जाल में इस कदर फस जाएगा कि वह मुक्त भी नहीं हो सकता।
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FAQ Checklist
वैश्वीकरण के भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वैश्वीकरण के जहां तक भारत पर प्रभाव का सवाल है वह काफी महत्वपूर्ण है। आज भारत सरकार की नीति पूर्णता भूमंडलीकरण वाली नीति से जुड़ गई है। वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों के अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया है और निरंतर आर्थिक सुधारों की ओर अग्रसर है।
वैश्वीकरण से विकासशील देशों के क्या नुकसान हैं ?
वैश्वीकरण के माध्यम से विकसित देश विकासशील देशों पर अपनी सर्वोच्चता कायम करना चाहते हैं जिसके कारण तृतीय विश्व के देशों में बड़ी प्रितिक्रिया देखने को मिलती हैं ।
वैश्वीकरण के मार्ग में कौन सी बाधाएं हैं ?
विकासशील एवं पिछड़े देशों में मूल समस्याओं ,जैसे कि गरीबी , भुखमरी , बेरोजगारी , आदि का बने रहना भी वैश्वीकरण के मार्ग में बाधा डालती हैं ।
वैश्वीकरण के लिए आवश्यक शर्त कौन सी हैं ?
आज भी अनेक देशों में लोकतंत्रीय का अभाव है जो कि वैश्वीकरण के लिए आवश्यक शर्त मानी जाती है।
वैश्वीकरण के मार्ग में कौन सी कठिनाइयां हैं ?
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एवं नशीली वस्तुओं के व्यापार ने भी वैश्वीकरण के मार्ग में बाधा पैदा की है।
वैश्वीकरण के प्रकार कौन से है?
वैश्वीकरण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक ।
वैश्वीकरण के तीन अंग कौन कौन से हैं?
1 .देशों के बीच पूँजी का मुक्त प्रवाह,
2 .देशों के बीच प्रौद्योगिकी का मुक्त प्रवाह,
3 .देशों के बीच श्रम का मुक्त प्रवाह
भारत में वैश्वीकरण कब आया था?
भारत में 1991 में अपनाई गई नयी आर्थिक नीति से वैश्वीकरण की शुरुआत हुई।