National Integration Main Problem , Hindrances in the way of National Integration in India भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं और समस्याएं – भारत अनेक भिन्नताओं वाला देश है जिसमें भिन्न-भिन्न जातियों ,धर्मो ,भाषाओं तथा संस्कृतियों के लोग रहते हैं। भारत के लोगों के रीति रिवाज, रहन-सहन के ढंग तथा आचार व्यवहारों में बहुत सी भिन्नताएं पाई जाती है।
भारत को स्वतंत्र हुए लगभग 76 वर्ष हो चुके हैं परंतु इसके संबंध में आज भी यह सवाल उठाया जाता है कि क्या भारत एक राष्ट्र है। इसका कारण यह है कि आज भी भारत में एकीकरण की समस्या बनी हुई है जो हमारी राष्ट्रीय अखंडता के लिए खतरा बनी हुई है। देश में बड़ी मात्रा में पृथकवादी प्रवृत्तियां आज भी मौजूद है।
Table of Contents विषय सूची
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं ( Hindrances and Problems in the way of National Integration in India )
ब्रिटिश शासन काल के विरुद्ध भारत में राष्ट्रीय एकता का जो विकास हुआ था वह अब ढीला पड़ गया है। इस प्रकार की स्थिति का मुख्य कारण यह है कि भारत अनेक विभिन्नताओं वाला देश है और कुछ स्वार्थी राजनेता तथा राजनीतिक दल इन विविधताओं को अपना उल्लू सीधा करने के लिए उभारते हैं। भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएं मौजूद है जो निम्नलिखित है –
जातिवाद ( Casteism )
राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा जातिवाद है। भारतीय समाज प्राचीन काल से ही जातिवाद की भावना का शिकार रहा है। राजनीति का प्रत्येक क्षेत्र जातिवाद से प्रभावित दिखाई देता है। कुछ विद्वानों का कथन है कि भारत में जाति का राजनीतिकरण कर दिया गया है। देश के कई भागों में अब भी कथित उच्च जातियों के लोग कथित निम्न जातियों के लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। ऐसी स्थिति राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक बड़ी चुनौती है।
यह भी पढ़े –
- Democratic System: लोकतंत्र को मजबूत करने वाले तत्व
- Indian Democracy: भारतीय लोकतंत्र की समस्यांए- चुनौतियां
सांप्रदायिकता ( Communalism )
भारत एक बहु धर्मी राज्य है जिसमें अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। पाकिस्तान की स्थापना के पश्चात यह सोचा गया कि भारत में सांप्रदायिकता की समस्या का अंत हो जाएगा परंतु हुआ इसके विपरीत। यद्यपि संविधान द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है परंतु धर्म आज भी राजनीति का एक महत्वपूर्ण अंग बना हुआ है।
धर्म पर आधारित राजनीतिक दल लोगों की धार्मिक भावनाओं को उकसाकर सत्ता में आने का प्रयास करते रहते हैं। यहां तक कि कुछ कट्टर साप्रदायिकतावादी धर्म के आधार पर एक पृथक राज्य की मांग कर रहे हैं। जम्मू व कश्मीर में स्वतंत्र कश्मीर की मांग इस बात का मुख्य उदाहरण है। इस प्रकार सांप्रदायिकता राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा बनी हुई है।
क्षेत्रवाद ( Regionalism )
भारतीय राजनीति क्षेत्रवाद की संकुचित भावनाओं से पीड़ित है। भारत में अनेक ऐसे राजनीतिक दल है जिनका आधार ही क्षेत्रवाद है। हर क्षेत्र में रहने वाला राष्ट्र के विकास के स्थान पर अपने क्षेत्र के विकास के विषय में सोचता है। क्षेत्रीय ता के आधार पर आज अनेक क्षेत्रों से स्वतंत्र राज्य की मांग की जा रही है।
क्षेत्रवाद का एक और उदाहरण ‘धरती के लाल ‘ का नारा जो अलग-अलग राज्यों में प्रचलित है। इस प्रकार लोगों में राष्ट्रीय एकता का अभाव होता जा रहा है और क्षेत्रीय भावनाएं तीव्र होती जा रही है। क्षेत्रीय तथा सांप्रदायिक दलों ने लोगों में क्षेत्रीय भावनाओं को बढ़ावा दिया है अतः यह प्रवृत्ति भी राष्ट्रीय एकता तथा एकीकरण के रास्ते में बाधा है।
यह भी पढ़े –
- Political Culture : राजनीतिक संस्कृति के महत्व ,उपयोगिता
- Political Culture : राजनीतिक संस्कृति की आलोचना
भाषावाद ( Linguism )
भारत एक बहुभाषी राज्य हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत वर्ष में 367 मातृ भाषाएं और 58 स्कूली स्तर की शैक्षणिक भाषाएं हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। भाषा की इस विभिन्नता के कारण लोगों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। भाषा के आधार पर ही सारा भारत उत्तरी और दक्षिणी भारत में बटा हुआ है ।
उत्तरी भारत हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करने के पक्ष में है और दक्षिणी भारत इसका विरोध करता है। 1956 में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया लेकिन अनेक राज्यों में आज भी असंतुष्ट भाषाई समूह विद्यमान है जो भाषा के आधार पर अलग राज्यों की मांग कर रहे हैं। भाषा ने पृथकवादी शक्तियों को बढ़ावा दिया है जिसके कारण लोगों में राष्ट्रीयता की भावना समाप्त होती जा रही है।
निर्धनता ( Poverty )
भारत एक निर्धन देश है जहां पर अधिकांश जनसंख्या को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। निर्धन व्यक्ति के लिए राष्ट्रीयता की भावना का कोई महत्व नहीं है और उसे राष्ट्र-प्रेम की शिक्षा देना व्यर्थ है। भारत आज दो विरोधी गुटों गरीब और अमीर में बटा हुआ दिखाई देता है।
अमीर लोग राज्य को साधन बनाकर निर्धन लोगों का शोषण कर रहे हैं जिसके कारण लोगों में प्रेम प्यार की भावना के स्थान पर परस्पर घृणा की भावना बढ़ रही है। यह भावना भी राष्ट्रीय एकीकरण को प्राप्त करने में बहुत बड़ी बाधा है।
यह भी पढ़े –
- United Nations : संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापना,उद्देश्य, सिद्धान्त
- SAARC : सार्क के विभिन्न शिखर सम्मेलनों की सूची
अल्पसंख्यकवाद ( Minoritism )
राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक अन्य बाधा अल्पसंख्यकवाद की है। सरकार के द्वारा अल्पसंख्यकों को प्रसन्न करने के लिए ऐसी नीतियां अपनाई गई है जिसके कारण अल्पसंख्यक की समस्या तीव्र हो गई है।
यह समस्या केवल विभिन्न वर्गों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अनुसूचित जातियों में भी अब अल्पसंख्यकवाद की भावना तीव्र होती जा रही है। बहुजन समाज पार्टी का निर्माण और उसके द्वारा उत्तर प्रदेश की पिछले चुनाव में प्राप्त सफलता इसका उदाहरण है। राजनीतिक दल इनके प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाते हैं ताकि उन्हें उनके वोट प्राप्त हो सके।
विदेशी शक्तियों की भूमिका ( Role of Foreign Powers )
गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण और संसार का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के कारण भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त है। यह अंतरराष्ट्रीय कई देशों के लिए असहनीय बना हुआ है। कई देश भारत में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं और इस उद्देश्य से भारत में उग्रवादी तथा विघटनकारी तत्वों की सहायता करते हैं।
हमारे कुछ पड़ोसी देश तो उग्रवादियों की धन तथा हथियारों से सहायता भी करते हैं और भारत में तोड़फोड़ की कार्यवाहीया करने के लिए उग्रवाद को भी बढ़ावा देते हैं। इन विदेशी शक्तियों की यह नकारात्मक भूमिका भी भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है।
- India-Pakistan Relations : भारत-पाकिस्तान संबंध इतिहास से वर्तमान तक
- India-Bangladesh: भारत-बांग्लादेश संबंध इतिहास से वर्तमान तक
राजनीतिक अवसरवादिता ( Opportunism )
राजनीतिक अवसरवादिता के कारण भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न हो रही है। आज हमारे नेता राष्ट्रहित के स्थान पर अपने स्वार्थ को महत्व देते हुए कुर्सी प्राप्त होने और उस से चिपके रहने के लिए प्रत्येक भ्रष्ट साधन अपनाने के लिए तैयार है। नेताओं की इस अवसरवादी राजनीति के कारण भी राष्ट्रीय एकता को काफी ठेस पहुंची है।
असंतुलित आर्थिक विकास ( Imbalanced Economic Development )
आर्थिक दृष्टि से भारत को पांच खंडों में बांटा जा सकता है। स्वतंत्रता के पश्चात इन पांचों खंडों में आर्थिक विकास का स्तर एक समान नहीं रहा है। कुछ खंड बिल्कुल पिछड़े हुए जबकि कुछ खंडों में बहुत अधिक विकास हुआ है।
अर्थात सारे देश में आर्थिक विकास का स्तर एक सा नहीं है जिसके कारण अलग-अलग खंडों में नए नए राज्यों की मांग की जा रही है। इस प्रकार असंतुलित आर्थिक विकास राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार ( Political Curruption )
आज भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चारों ओर रिश्वत तथा भाई भतीजावाद का बोल बाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार हमारे जीवन का एक अंग बन गया है। इसके परिणामस्वरूप आम जनता का राजनीतिक व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है। भ्रष्टाचार के कारण लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना समाप्त होती जा रही है और स्वार्थ की भावना तीव्र होती जा रही है।
यह भी पढ़े –
- Pressure Groups: दबाव समूहों के कार्य , महत्व एवं उपयोगिता
- Pressure Groups: दबाव समूहों के दोष या आलोचना
राष्ट्रीय चरित्र की कमी ( Lack of National Character )
भारतीय लोगों में राष्ट्रीय चरित्र की कमी भी राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक समस्या बनी हुई है। जाति ,धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं ने लोगों के दृष्टिकोण को बहुत संकुचित बना दिया है। लोग राष्ट्रीय हितों से अधिक अपनी जाति ,धर्म तथा क्षेत्र के हितों को अधिक महत्व देते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय एकीकरण के रास्ते में यह एक बड़ी समस्या है।
क्षेत्रीय राजनीतिक दल ( Regional Political Parties )
भारत में अनेक क्षेत्रीय दलों की स्थापना तथा विकास भी राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बाधा है। क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय हितों के स्थान पर क्षेत्र हितों को अधिक प्राथमिकता देते हैं और उसके लिए क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काते हैं। इस प्रकार क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय एकीकरण को हानि पहुंचाते हैं।
राजनीतिक हिंसा ( Political Violence )
भारतीय राजनीति में हिंसा का बढ़ता हुआ वेग राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक बड़ा खतरा है। आज जनता में समस्या के समाधान के लिए संवैधानिक साधनों को ना अपना कर हिंसा को प्राथमिकता दे रही है। आज राजनीतिक हत्याएं तथा हिंसात्मक आंदोलन आम बात बन गई है। इस हिंसावादी प्रवृत्ति ने भी राष्ट्रीय एकीकरण को गहरी चोट पहुंचाई है।
यह भी पढ़े –
- Comparative Politics : तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति
- Comparative Politics: तुलनात्मक शासन तथा तुलनात्मक राजनीति में अंतर
FAQ Checklist
राष्ट्रीय एकीकरण की भारत को क्यों जरूरत है
भारत एक विशाल देश है। यहां के लोगों में भाषा ,जाति ,धर्म, संस्कृति तथा विकास के आधार पर बहुत सी भिन्नताएं पाई जाती है। भारत के अनेक भागों में पाई जाने वाली अलगाववादी प्रवृत्तियां ,संप्रदायिकता तथा जातिवाद की भावना, भाषावाद ,क्षेत्रवाद ,भ्रष्टाचार ,हिंसा तथा असंतुलित क्षेत्रीय विकास आदि अनेक ऐसी समस्याएं मौजूद है जो भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बड़ी समस्याएं बनी हुई है। इसलिए भारत को अपनी एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय एकीकरण की जरूरत है ।
भारत मे राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में आने वाली दो बाधाओं का वर्णन करें ।
1 ) आज भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चारों ओर रिश्वत तथा भाई भतीजावाद का बोल बाला है।
2 ) भारत में अनेक क्षेत्रीय दलों की स्थापना तथा विकास भी राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बाधा है।
सांप्रदायिकता का राष्ट्रीय एकीकरण पर क्या प्रभाव है
संप्रदायिकता वर्तमान भारत की एक महत्वपूर्ण समस्या है। धर्म के आधार पर लोग परस्पर विरोधी संप्रदायिक समूहों में बैठ जाते हैं तथा उनमें दिन प्रतिदिन दंगे फसाद होते रहते हैं। संप्रदायिकता लोगों में आपस में अविश्वास तथा घृणा की भावना को पैदा करती है जो राष्ट्रीय एकता को नष्ट करती है।
क्षेत्रीयवाद के सिद्धांत राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में कैसे रुकावट बनते हैं ।
भारतीय राजनीति क्षेत्रवाद की संकुचित भावनाओं से पीड़ित है। भारत में अनेक ऐसे राजनीतिक दल है जिनका आधार ही क्षेत्रवाद है। हर क्षेत्र में रहने वाला राष्ट्र के विकास के स्थान पर अपने क्षेत्र के विकास के विषय में सोचता है। क्षेत्रीय ता के आधार पर आज अनेक क्षेत्रों से स्वतंत्र राज्य की मांग की जा रही है।
जातिवाद राष्ट्रीय एकीकरण को कैसे प्रभावित करता है फुल
राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा जातिवाद है। भारतीय समाज प्राचीन काल से ही जातिवाद की भावना का शिकार रहा है। राजनीति का प्रत्येक क्षेत्र जातिवाद से प्रभावित दिखाई देता है। कुछ विद्वानों का कथन है कि भारत में जाति का राजनीतिकरण कर दिया गया है।
भाषावाद की समस्या ने राष्ट्रीय एकता को कितना प्रभावित किया है ?
भारत एक बहुभाषी राज्य हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत वर्ष में 367 मातृ भाषाएं और 58 स्कूली स्तर की शैक्षणिक भाषाएं हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। भाषा की इस विभिन्नता के कारण लोगों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। भाषा के आधार पर ही सारा भारत उत्तरी और दक्षिणी भारत में बटा हुआ है ।
वर्तमान समय मे राष्ट्रीय एकीकरण के लिए सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
भारतीय राजनीति में हिंसा का बढ़ता हुआ वेग राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक बड़ा खतरा है। आज भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चारों ओर रिश्वत तथा भाई भतीजावाद का बोल बाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार हमारे जीवन का एक अंग बन गया है। इसके परिणामस्वरूप आम जनता का राजनीतिक व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है।
अल्पसंख्यकवाद सिद्धांत ने राष्ट्रीय एकीकरण को कितना प्रभावित किया है ?
राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक अन्य बाधा अल्पसंख्यकवाद की है। सरकार के द्वारा अल्पसंख्यकों को प्रसन्न करने के लिए ऐसी नीतियां अपनाई गई है जिसके कारण अल्पसंख्यक की समस्या तीव्र हो गई है।
राजनीतिक अवसरवादिता से क्या समझते हैं ?
राजनीतिक अवसरवादिता के कारण भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न हो रही है। आज हमारे नेता राष्ट्रहित के स्थान पर अपने स्वार्थ को महत्व देते हुए कुर्सी प्राप्त होने और उस से चिपके रहने के लिए प्रत्येक भ्रष्ट साधन अपनाने के लिए तैयार है। नेताओं की इस अवसरवादी राजनीति के कारण भी राष्ट्रीय एकता को काफी ठेस पहुंची है।
भारतीय लोगों में राष्ट्रीय चरित्र की कमी के क्या कारण हैं ?
भारतीय लोगों में राष्ट्रीय चरित्र की कमी भी राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक समस्या बनी हुई है। जाति ,धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं ने लोगों के दृष्टिकोण को बहुत संकुचित बना दिया है। लोग राष्ट्रीय हितों से अधिक अपनी जाति ,धर्म तथा क्षेत्र के हितों को अधिक महत्व देते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय एकीकरण के रास्ते में यह एक बड़ी समस्या है।