Indian Foreign Policy Meaning , Definition , Determinants in Hindi भारत की विदेश नीति का अर्थ और निर्धारक तत्व

Indian Foreign Policy : भारत की विदेश नीति का अर्थ और निर्धारक तत्व

राजनीति विज्ञान विदेश नीति

Indian Foreign Policy Meaning , Definition , Determinants in Hindi भारत की विदेश नीति का अर्थ और निर्धारक तत्व – भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ और इसने विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी कांग्रेस द्वारा समय-समय पर भारत की विदेश नीति के बारे में विचार किया गया था।

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सन 1946 में मंत्रिमंडल मिशन योजना के अनुसार जिस अंतरिम सरकार का गठन किया गया उसमें विदेशी मामलों का विभाग पंडित जवाहरलाल नेहरु के पास था।

17 अक्टूबर 1949 को कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका को संबोधित करते हुए श्री नेहरू जी ने भारत की विदेश नीति को इस प्रकार स्पष्ट किया कि शांति का अनुसरण करना, किसी बड़ी शक्ति अथवा गुटके साथ संलग्न करके नहीं वरन विवाद पूर्ण मामलों में स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाना, अधीन जातियों को स्वतंत्र करना, व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता को बनाए रखना ,प्रजातियां भेदभाव को दूर करना तथा भूख बीमारी तथा निरक्षरता को दूर करना जो कि संसार के अधिकतर भागों को प्रभावित करते हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से लेकर अब तक भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुटनिरपेक्षता रहा है जिसके द्वारा भारत ने विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

पंचशील के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए भारत ने विश्व शांति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्व के सभी देशों मुख्य रूप से अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाए रखना भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार रहा है।

Table of Contents विषय सूची

विदेश नीति का अर्थ ( Meaning of Foreign Policy )

विदेश नीति का अर्थ उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा अन्य राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। जिस प्रकार एक व्यक्ति के लिए समाज से अलग रह कर अपना जीवन व्यतीत करना संभव नहीं है उसी प्रकार कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता।

प्रत्येक देश को अपनी आर्थिक राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन संबंधों को स्थापित करने के लिए देश जिस नीति का अनुसरण करता है उसे देश की विदेश नीति कहा जाता है।

इस प्रकार विदेश नीति का साधारण अर्थ है उन सिद्धांतों का समूह जो एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों के दौरान अपने राष्ट्रीय हितो को प्राप्त करने के लिए अपनाता है।

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विदेश नीति की परिभाषाएं ( Definitions of Foreign Policy )

रुथनस्वामी के अनुसार – विदेश नीति उन सिद्धांतों तथा क्रियाओं का समूह है जिनके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्य से संबंधों को निश्चित करता है।

हार्टमैन के अनुसार – विदेश नीति सोच समझकर चुने हुए राष्ट्रीय हितों का सूत्रबद्ध विवरण है।

डॉ महेंद्र कुमार के शब्दों में विदेश नीति कार्यों की सोची समझी दिशा है जिससे राष्ट्रीय हित की विचारधारा के अनुसार विदेशी संबंधों में उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व ( Determinants of Indian Foreign Policy )

प्रत्येक राष्ट्र की नीति निर्माता अपने राष्ट्रीय हितों आंतरिक तथा बाहरी वातावरण और राष्ट्रीय मूल्यों को ध्यान में रखते हुए विदेश नीति का निर्माण करते हैं। इनका विश्लेषण करते समय उनकी अपनी धारणाएं तथा अपने अधिमान होते हैं । इन सब से विदेश नीति के निर्माण का कार्य बड़ा कठिन हो जाता है।

विदेश नीति का निर्धारण अनेक तत्व ,राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति ,दृष्टिकोण ,राजनीतिक परिस्थितियां इत्यादि से होता है। प्रत्येक राष्ट्र की विशिष्ट परिस्थितियां ही उस राष्ट्र की विदेश नीति का निर्धारण करती है। भारत इसका अपवाद नहीं है।

भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाले तत्वों का अध्ययन को दो भागों में बांट कर किया जा सकता हैं । आंतरिक कारक और बाहरी कारक भारतीय विदेश नीति के दो कारक हैं जिनका अध्ययन निम्नलिखित हैं –

आंतरिक कारक ( Internal Factors )

आंतरिक कारक वे कारक कहलाती हैं जो किसी राष्ट्र के आंतरिक ढांचे या वातावरण में विद्यमान होते हैं जो कि एक राष्ट्र की विदेश नीति को मूल्य एवं महत्व प्रदान करते हैं। ऐसे कारक निम्नलिखित है –

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भौगोलिक परिस्थितियां ( Geographical Conditions )

किसी भी देश की विदेश नीति पर उसकी भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है। विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य प्रादेशिक सुरक्षा से होता है जिसका संबंध देश के भूगोल से होता है। भारत के उत्तर में दो प्रमुख साम्यवादी देश चीन तथा रूस है। दक्षिण पूर्व तथा दक्षिण पश्चिम में भारत समुद्र से घिरा हुआ है। इस समुद्री तट की रक्षा करने के लिए भारत को बड़ी नौसेना की आवश्यकता है।

भारत के एक छोर पर पाकिस्तान है तो दूसरे छोर पर उसकी सीमा समुद्र से घिरी हुई है। स्वतंत्रता के बाद लंबी सीमाओं की सुरक्षा भारत के लिए चिंता का विषय था। यदि भारत साम्यवादी युद्ध का सदस्य बन जाता तो हिंद महासागर पर पश्चिमी गुट की नौसेना के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता और यदि पश्चिमी गुट में शामिल हो जाता तो उत्तरी सीमा पर साम्यवादी राष्ट्रों से खतरा उत्पन्न हो जाता। अत: भारत ने अपने भौगोलिक स्वरूप के कारण ही पश्चिमी एवं साम्यवादी दोनों गुटों से मैत्रीपूर्ण संबंध कायम किए।

आर्थिक परिस्थितियां ( Economic Conditions )

ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत का खूब आर्थिक शोषण किया गया जिसके कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। देश के विभाजन के कारण शरणार्थियों की विकट समस्या भारत के सामने पैदा हो गई।

इसके तुरंत बाद कश्मीर के प्रशन पर भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा जिससे भारत की आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त हो गई। ऐसी स्थिति में भारत को विश्व के अन्य देशों से आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़ी क्योंकि भारत विश्व की सभी धनी देशों से आर्थिक सहायता चाहता था इसलिए उसे सभी देशों के साथ मित्रता पूर्ण संबंध रखना आवश्यक था।

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ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परम्पराएं ( Historical and Cultural Traditions )

भारत प्राचीन समय से ही एक शांतिप्रिय देश रहा है। भारत के चिंतन पर महावीर, बुद्ध ,नानक ,गांधी आदि के विचारों की छाप रही है। भारत सदा ही सहनशीलता तथा विचारों की स्वतंत्रता का समर्थन करता रहा है । इस कारण से भारत की विदेश नीति में अहिंसा सह अस्तित्व पर बल दिया जाना स्वाभाविक ही है।

राष्ट्रीय नेताओं को प्रेरित करने वाले आदर्श ( Ideals which Inspired our National Leaders )

जिन नेताओं ने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन का संचालन किया वह सभी उदारवाद तथा विश्व मैत्री के समर्थक थे तथा साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करते थे। वें रंगभेद की नीति का विरोध करते थे और अन्य देशों में चलाए जा रहे हैं स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करते थे।

राष्ट्रीय हित ( National Interest )

अन्य राष्ट्रों की तरह ही भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को भी ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती है। सत्ताधारी दल ही राष्ट्रीय हितों को निश्चित करता है और उसी के अनुसार विदेश नीति के सिद्धांत तय किए जाते हैं। राष्ट्रीय हितों में राष्ट्रीय अखंडता, देश की सुरक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक हित शामिल है। उसी राष्ट्रीय हित के आधार पर किसी राष्ट्र से मित्रता या संधि की जाती है। विदेश नीति तय करने का यह तत्व सबसे प्रभावशाली तत्व कहा जा सकता है।

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राष्ट्रीय संघर्ष ( National Struggle )

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन ने विदेश नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया जैसे राष्ट्रीय आंदोलन ने भारत में महा शक्तियों के संघर्ष का मोहरा बनने से बचने का संकल्प उत्पन्न किया। अंतरराष्ट्रीय राजनीति क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की भावना जागृत हुई। प्रत्येक तरह के उपनिवेशवाद जातिवाद और रंगभेद का विरोध करने का साहस उत्पन्न हुआ। स्वाधीनता संघर्ष के लिए सहानुभूति उत्पन्न हुए ।

विचारधारा का प्रभाव ( Impact of Ideology )

राष्ट्रीय आंदोलन में विकसित विचारों का हमारी विदेश नीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। आंदोलन काल में कांग्रेस ने अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के संबंध में अपने विचार प्रकट किए , साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया , विश्व के सभी भागों में स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया। अतः 1947 में सत्तारूढ़ होने पर कांग्रेस की विदेश नीति के निर्धारण ने इन सभी आदर्शों पर ध्यान दिया।

सैनिक तत्व ( Military Factors )

सैनिक तत्वों ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत सैनिक दृष्टि से बहुत निर्बल था। इसलिए भारत ने दोनों गुटों से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। 1954 में अमेरिका और पाकिस्तान में एक सैनिक संधि हुई जिस कारण पाकिस्तान को अमेरिका से बहुत अधिक सैनिक सहायता मिली। भारत ने अमेरिका की इस नीति का विरोध किया और सैनिक सहायता सोवियत संघ से प्राप्त करनी शुरू कर दी।

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का साथ दिया और भारत पर दबाव डालने के लिए अपना सातवां जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया तो अपनी सुरक्षा हेतु भारत को सोवियत संघ से 20 वर्षीय संधि करनी पड़ी।

आजकल अमेरिका पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दे रहा है जिसका भारत ने अमेरिका से विरोध जताया पर अमेरिका अपनी नीति पर अटल है। अत: भारत को भी अपनी रक्षा के लिए रूस तथा अन्य देशों से आधुनिकतम हथियार खरीदने पढ़ रहे हैं।

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संवैधानिक व्यवस्थाएं ( Constitutional Provisions )

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में विदेश नीति के संबंध में सिद्धांत निश्चित किए गए हैं वह भी भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व है । वह इस प्रकार है –

  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रों के बीच न्याय संगत और सम्मान पूर्ण संबंधों को बनाए रखना।
  • अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थ द्वारा निपटाने का।
  • संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संबंधों के प्रति आदर बनाए रखना।

बाहरी कारक ( External Factors )

बाहरी कारकों से अभिप्राय अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से है। किसी देश की विदेश नीति को प्रभावित करने में अंतरराष्ट्रीय वातावरण में उत्पन्न परिस्थितियों एवं दबाव भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे कारकों का उल्लेख निम्नलिखित रुप से किया जा सकता है –

अंतर्राष्ट्रीय तत्व ( International Factors )

भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अंतरराष्ट्रीय तत्वों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय सोवियत गुट और अमेरिकी गुट में शीत युद्ध चल रहा था। संसार के प्राय सभी देश उस समय दो गुटों में विभाजित है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किसी एक गुट में शामिल होने के स्थान पर दोनों गुटों से अलग रहना ही देश के हित में समझा। अतः भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण किया।

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आतंकवाद ( Terrorism )

वर्तमान में आतंकवाद एक विश्व समस्या बन चुकी है। विश्व के शक्तिशाली देश भी इस के कुप्रभाव से अछूते नहीं हैं। भारत भी इस समस्या से लंबे समय से ग्रस्त रहा है। अतः इस समस्या पर नियंत्रण हेतु आज अंतर्राष्ट्रीय सहयोग राष्ट्रों के लिए अपरिहार्य बन चुका है। इसलिए भारत की तरह अन्य राष्ट्र भी विदेश नीति का निर्माण करते समय इस समस्या पर नियंत्रण हेतु पारस्परिक सहयोग का आश्वासन देते हैं।

विश्व शांति ( World Peace )

आधुनिक आणविक एवं निशस्त्रीकरण की बढ़ती प्रतिस्पर्धा में विश्वा शांति की स्थापना भी एक चुनौती बनी हुई है। भारत भी अपनी विदेश नीति के निर्माण में सदैव से ही विश्व शांति को प्राथमिकता देता रहा है। इस आधार पर भारत अपनी परमाणु क्षमता हासिल करने के पश्चात भी अपनी परमाणु शक्ति को विश्व शांति की स्थापना के साधन के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत करता रहा है।

अफ्रीकी एशियाई देशों का नया युग ( Newly Emerging World of Afro-Asian Countries )

भारत की भांति अफ्रीका तथा एशिया के बहुत से देश ऐसे थे जो ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन होते हुए उनके अत्याचारों तथा दुर्व्यवहार से बहुत तंग आए हुए थे । द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात इनमें से अनेक देशों ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली जिससे अफ्रीका तथा एशिया के ऐसे देशों का एक नया विश्व जन्म ले रहा था। यह विश्वास था उन देशों का जिन्होंने रंगभेद तथा नस्ली भेदभाव के कारण बहुत ही अपमानजनक व्यवहार सहन किया था।

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FAQ Checklist

विदेश नीति का क्या अर्थ है ?

विदेश नीति का साधारण अर्थ है उन सिद्धांतों का समूह जो एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों के दौरान अपने राष्ट्रीय हितो को प्राप्त करने के लिए अपनाता है।

विदेश नीति की दो परिभाषाएं ।

1.हार्टमैन के अनुसार – विदेश नीति सोच समझकर चुने हुए राष्ट्रीय हितों का सूत्रबद्ध विवरण है।
2.डॉ महेंद्र कुमार के शब्दों में विदेश नीति कार्यों की सोची समझी दिशा है जिससे राष्ट्रीय हित की विचारधारा के अनुसार विदेशी संबंधों में उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

भारत की विदेश नीति के तीन निर्धारक तत्व कौन से हैं

1. भौगोलिक परिस्थितियां 2. ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परंपराएं 3. आर्थिक परिस्थितियां

विदेश नीति के लिए भौगोलिक परिस्थितियां क्यों आवश्यक है

किसी भी देश की विदेश नीति पर उसकी भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है। विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य प्रादेशिक सुरक्षा से होता है जिसका संबंध देश के भूगोल से होता है। भारत के उत्तर में दो प्रमुख साम्यवादी देश चीन तथा रूस है। दक्षिण पूर्व तथा दक्षिण पश्चिम में भारत समुद्र से घिरा हुआ है। इस समुद्री तट की रक्षा करने के लिए भारत को बड़ी नौसेना की आवश्यकता है।

भारतीय विदेश नीति में ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परंपराओं का क्या योगदान रहा है

भारत प्राचीन समय से ही एक शांतिप्रिय देश रहा है। भारत के चिंतन पर महावीर, बुद्ध ,नानक ,गांधी आदि के विचारों की छाप रही है। भारत सदा ही सहनशीलता तथा विचारों की स्वतंत्रता का समर्थन करता रहा है । इस कारण से भारत की विदेश नीति में अहिंसा सह अस्तित्व पर बल दिया जाना स्वाभाविक ही है।

भारत की राष्ट्रीय आंदोलन ने विदेश नीति के निर्माण में क्या योगदान दिया ?

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन ने विदेश नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया जैसे राष्ट्रीय आंदोलन ने भारत में महा शक्तियों के संघर्ष का मोहरा बनने से बचने का संकल्प उत्पन्न किया। अंतरराष्ट्रीय राजनीति क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की भावना जागृत हुई। प्रत्येक तरह के उपनिवेशवाद, जातिवाद और रंगभेद का विरोध करने का साहस उत्पन्न हुआ। स्वाधीनता संघर्ष के लिए सहानुभूति उत्पन्न हुए ।

भारतीय विदेश नीति को सैनिक तत्वों ने कितना प्रभावित किया

सैनिक तत्वों ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत सैनिक दृष्टि से बहुत निर्बल था। इसलिए भारत ने दोनों गुटों से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। 1954 में अमेरिका और पाकिस्तान में एक सैनिक संधि हुई जिस कारण पाकिस्तान को अमेरिका से बहुत अधिक सैनिक सहायता मिली। भारत ने अमेरिका की इस नीति का विरोध किया और सैनिक सहायता सोवियत संघ से प्राप्त करनी शुरू कर दी।

विदेश नीति में आंतरिक और बाहरी कारक से क्या अभिप्राय है ?

आंतरिक कारक वे कारक होते हैं जो किसी राष्ट्र के आंतरिक ढांचे या वातावरण में विद्यमान होते हैं जो कि एक राज्य की विदेश नीति को मूल्य एवं महत्व प्रदान करते हैं। बाहरी कारकों से अभिप्राय अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से है। किसी देश की विदेश नीति को प्रभावित करने में अंतरराष्ट्रीय वातावरण में उत्पन्न परिस्थितियों एवं दबाव भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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