Parliamentary System in India Defects Disadvantages Issues Challenges

Parliamentary System: भारतीय संसदीय प्रणाली के 12 दोष

राजनीति विज्ञान पार्लियामेंट्री सिस्टम

Parliamentary System in India -Defects ,Disadvantages ,Issues ,Challenges -भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई हैं । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया हैं । प्रस्तावना में यह बात स्पष्ट रूप से कही गयी हैं कि सत्ता का अंतिम स्त्रोत जनता हैं और संविधान का निर्माण करने वाले तथा उसे अपने ऊपर लागू करने वाले भारत के लोग हैं ।

इसमें कोई शक नहीं है की भारतीय संसदीय प्रणाली की अनेकों विशेषताएं पाई जाती है परन्तु इसके कुछ दोष भी है जिसके कारण भारत में संसद प्रणाली उतनी सफल नहीं हो पाई जितनी इंग्लैंड में संसदीय प्रणाली सफल है। संसदीय प्रणाली के दोषों को आइये विस्तार से जानते है –

Table of Contents विषय सूची

संसदीय शासन प्रणाली व्यवस्था का परिचय ( Parliamentary System in Hindi )

संसदीय शासन प्रणाली व्यवस्था Parliamentary System वह व्यवस्था हैं जिसमें सरकार के दो अंगों – विधानमंडल तथा कार्यपालिका में घनिष्ठ संबंध होता हैं ।
कार्यपालिका ( मंत्री – परिषद ) का निर्माण विधानमंडल में से किया जाता है और वह अपनी नीतियों तथा कार्यों के लिए विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी होता हैं । मंत्री – परिषद के सदस्य उतने समय तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें विधानमंडल में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है ।

जिस समय मंत्री – परिषद विधानमंडल में बहुमत का समर्थन खो देता हैं ,उसे अपने पद से त्याग – पत्र देना पड़ता हैं । इस शासन प्रणाली में राज्य का मुखिया -राजा /रानी , राष्ट्रपति अथवा गवर्नर – जनरल – नाममात्र का अध्यक्ष होता हैं और वास्तविक रूप में शासन की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री तथा मंत्री – परिषद के अन्य सदस्यों ( मंत्रियों ) के द्वारा किया  है ।

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भारत में संसदीय प्रणाली के दोष Defects in the working of Parliamentary System in India

भारत में संसदीय प्रणाली को कार्य करते हुए अर्धशताब्दी से अधिक वर्ष हो चुके हैं ,परन्तु यहाँ पर यह प्रणाली इतनी अधिक सफल नहीं हुई जितनी कि इंग्लैंड में हुई हैं । इसका मुख्य कारण यह हैं कि इसमें अनेक त्रुटियां एवं दोष मैजूद हैं और कई बार तो भारत में इस प्रणाली की सफलता के बारे में शंकाएँ प्रकट की जाती हैं । भारत की संसदीय – प्रणाली की कार्यविधि में निम्नलिखित दोष हैं  –

बहुत अधिक राजनीतिक दलों का अस्तित्व Existence of too Many Political Parties

बहुत अधिक राजनीतिक दलों का अस्तित्व Existence of too Many Political Parties-भारत में संसदीय प्रणाली के अधिक सफल न होने का पहला कारण यहां पर बहुत अधिक राजनीतिक दलों का होना है । संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं कि देश में दो अथवा तीन राजनीतिक दल हों ताकि स्थायी सरकार की स्थापना हो सके और सरकार को मनमानी करने से रोकने के लिए विरोधी दल भी संगठित तथा मजबूत हो ।

भारत मे आरंभ से ही बहु-दलीय प्रणाली मैजूद रही हैं । विभिन्न राष्ट्रीय दलों में विभाजन के परिणाम -स्वरूप दलों की संख्या और अधिक बढ़ी है । वर्तमान समय में भारत में लगभग 650 राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता दी गई हैं ।

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संगठित विरोधी दल का अभाव Lack of Organized Opposition

संगठित विरोधी दल का अभाव Lack of Organized Opposition-भारत में बहु-दलीय प्रणाली के होने के कारण संगठित विरोधी दल का अभाव रहा हैं । सन 1969 तक तो किसी भी दल को विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं थी । सन 1969 में कांग्रेस ( ओ ) को पहली बार यह सम्मान प्राप्त हुआ , परन्तु सन 1971 में हुए लोकसभा चुनावों के पश्चात पुनः पहले जैसी स्थिति स्थापित हो गयी । इसका मुख्य कारण यह था कि विरोधी दल आपस में इस प्रकार से बटे हुए थे कि कोई भी दल विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं कर सका ।

सन 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की सरकार बनी और काँग्रेस को विरोधी दल का स्थान प्राप्त हुआ । जब जब सरकार बदली तब तब विरोधी दल भी बदले । क्योंकि जो राजनीतिक दल  सरकार बनाती तो दूसरी बड़ी राजनीतिक दल विरोधी के रूप में काम करते आ रहे हैं ।  इस समय केंद्र में बीजेपी की सरकार हैं तो कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टी विरोधी के रूप में कार्य कर रही हैं ।

उचित परम्पराओं और रीति – रिवाजों की कमी Lack of Proper and Healthy Traditions

उचित परम्पराओं और रीति – रिवाजों की कमी Lack of Proper and Healthy Traditions-शासन -प्रणाली की सफलता काफी हद तक देश में स्थापित परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों पर आधारित होती हैं । इंग्लैंड में संसदीय प्रणाली की सफलता का एक मुख्य कारण वहाँ पर अच्छी परम्पराओं का होना है , परंतु भारत में न तो सत्तारूढ़ दल और न ही विरोधी दल ने परम्पराओं को स्थापित करने में कोई योगदान दिया हैं ।

अनेक मन्त्रियों और कई प्रधानमंत्रियों के विरूद्ध भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं और उनमें से कुछ के विरुद्ध तो ये आरोप साबित भी हुए हैं , परंतु फिर भी वे अपने पद से त्याग – पत्र न देकर अपने पदों पर बने हुए हैं ।

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सामूहिक उत्तरदायित्व की कमी Lack of Collective Responsibility

सामूहिक उत्तरदायित्व की कमी Lack of Collective Responsibility-संसदीय शासन प्रणाली में मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता हैं । इसका अर्थ यह हैं कि संसद यदि किसी एक मंत्री के विरुद्ध भी अविश्वास का प्रस्ताव पास कर देती हैं तो समस्त मन्त्रि – परिषद को अपना त्याग – पत्र देना पड़ता हैं । मन्त्रि – परिषद का संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन – प्रणाली की आधारशिला है ।

परंतु भारत में कई बार इस सिद्धांत की उल्लंघना की गई हैं । उदारहण स्वरूप सन 1962 में जब भारत – चीन युद्ध में भारत को अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा तो उसका उत्तरदायित्व समस्त मन्त्रि – परिषद पर न डालकर केवल तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्णमैनन को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उसका त्याग – पत्र ले लिया गया ।

संसद के सदस्यों की निष्क्रिय भूमिका Passive role of Members of Parliament

संसद के सदस्यों की निष्क्रिय भूमिका Passive role of Members of Parliament-संसदीय शासन – प्रणाली में मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति उत्तरदायी होता हैं । संसद सदस्य मन्त्रियों से उनके विभागों के संबंध में प्रश्न व अनुपूरक प्रश्न पूछकर , काम रोको प्रस्ताव , ध्यानाकर्षण प्रस्ताव तथा निंदा प्रस्ताव आदि पास करके मन्त्रियों के कार्यों की आलोचना करते रहते हैं और उन्हें जनता के सामने लाते हैं , परन्तु ऐसा तभी सम्भव होता हैं यदि संसद सदस्य अपने कार्य में सक्रिय रहें । भारत में इसकी बहुत कमी है ।

प्रधानमंत्री की प्रमुख स्थिति Dominant Position of the Prime Minister

प्रधानमंत्री की प्रमुख स्थिति Dominant Position of the Prime Minister-भारतीय संसदीय प्रणाली की एक विशेषता यह हैं कि इसमें प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है । देश का समस्त शासन प्रबंध प्रधानमंत्री के इर्द – गिर्द घूमता हैं । भारत का प्रधानमंत्री इंग्लैंड के प्रधानमंत्री की भांति समान व्यक्तियों में प्रथम न होकर अमेरिकन राष्ट्रपति की भांति अपने मन्त्रिमण्डल का स्वामी हैं ।

प्रधानमंत्री ही वास्तविक कार्यपालिका का मुखिया होता हैं । परंतु इतनी अधिक शक्ति प्रधानमंत्री को देना संसदीय शासन प्रणाली को कमजोर बना देती हैं क्योंकि इससे शक्ति केंद्रित हो जाती हैं । जिस कारण राष्ट्रपति केवल नाममात्र का मुखिया कहलाता हैं ।

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अध्यादेशों द्वारा शासन Administration by Ordinances

अध्यादेशों द्वारा शासन Administration by Ordinances-भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को संसद के अधिवेशन के अवकाशकाल में आकस्मिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया हैं । यह अध्यादेश मन्त्रिमण्डल के परामर्श पर जारी किए जाते हैं और उनका वही प्रभाव होता हैं और ये उसी रूप से लागू होते हैं , जैसे संसद द्वारा पास किये गए कानून लागू होते हैं । अधिक अध्यादेशों से संसद की शक्ति में कमी आती हैं ।

लोगों का उदासीन दृष्टिकोण Indifferent Attitude of the People

लोगों का उदासीन दृष्टिकोण Indifferent Attitude of the People-संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक होता हैं कि लोग बढ़ – चढ़ कर देश की समस्याओं तथा राजनीति में रुचि रखें । भारत में राजनीतिक कार्यों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण उदासीन रहता है । बहुत से मतदाता तो इतना कष्ट उठाने के लिए भी तैयार नहीं होते कि मतदान – केंद्र तक जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करें । लोकसभा के हुए विभिन्न चुनावों का रिकॉर्ड देखने से यह बात सामने आती हैं कि प्रत्येक चुनाव में लगभग 60 % मतदाता ही अपने मत का प्रयोग करते हैं ।

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लोकसभा अध्यक्ष का पक्षपातपूर्ण रवैया Partisan attitude of the speaker of Lok Sabha

लोकसभा अध्यक्ष का पक्षपातपूर्ण रवैया Partisan attitude of the speaker of Lok Sabha-संसदीय प्रणाली के संचालन में लोकसभा का अध्यक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं । अतः अध्यक्ष का पूर्ण रूप से निष्पक्ष होना अति आवश्यक है । परंतु भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों की निष्पक्षता पर प्रायः संदेह प्रकट किया जाता हैं ।

इंग्लैंड में परम्परा के आधार पर स्पीकर के पद पर चुना जाने वाला सभी राजनीतिक दलों से अपना संबंध तोड़ लेता है । वह किसी पार्टी का सदस्य नहीं रहता और न ही किसी दल के विरोध में अथवा पक्ष में कोई काम करता है , परन्तु भारत में अभी यह परम्परा स्थापित नहीं हो पाई है ।

कई बार स्पीकर के निर्णय का विरोध करने के लिए विरोधी दल के सदस्य सदन से उठकर बाहर चले जाते हैं । यह स्थिति भारतीय संसदीय प्रणाली शासन की एक त्रुटि हैं ।

अनुशासनहीनता तथा दल – बदल Lack of Discipline and Defections

अनुशासनहीनता तथा दल – बदल Lack of Discipline and Defections-भारत में संसदीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में एक अन्य बाधा विधायकों में अनुशासनहीनता तथा दल – बदल की राजनीति हैं । सत्ता प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा सिद्धान्तहीन समझौते किये जाते हैं । इसका एक कारण देश में बहुत अधिक राजनीतिक दलों का मैजूद होना है जिसके परिणामस्वरूप किसी एक दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं होता हैं ।

सन 1989 में हुए लोकसभा चुनावों , 1991 , 1998 , 1999 तथा 2004 में किसी एक दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त न कर सकने के कारण किसी भी एक दल की सरकार नहीं बन सकी और कई दलों के सहयोग से सरकार का गठन हुआ ।

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अल्पसंख्यक सरकार को बाहर से समर्थन देने की प्रथा Practice of giving outside support to the Government

अल्पसंख्यक सरकार को बाहर से समर्थन देने की प्रथा Practice of giving outside support to the Government-सन 1989 के लोकसभा चुनावों के समय से भारत में त्रिशंक लोकसभा अस्तित्व में आ रही हैं । इसका अर्थ ऐसी लोकसभा हैं जिसमें एक किसी राजनीतिक दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं होता ।

ऐसी स्थिति में प्रायः जो भी सरकार बनी , वह अल्पमत की सरकार बनी , जिसे अन्य राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन प्रदान किया गया । कुछ दल तो सरकार में शामिल हो जाते हैं , परंतु कई दल ऐसी सरकार का बाहर से समर्थन देने की नीति अपनाते हैं । ऐसी स्थिति भारतीय संसदीय प्रणाली  के लिए बड़ी खतरनाक हैं क्योंकि बाहर से समर्थन देने वाले अपनी बात को मनवाने के लिए सरकार पर अनुचित दबाव डालते रहते हैं और उनका उत्तरदायित्व भी कुछ नहीं होता ।

राजनीतिक अपराधीकरण Criminalization of Politics

राजनीतिक अपराधीकरण Criminalization of Politics-भारत में संसदीय लोकतंत्र की सफलता का एक अन्य खतरा राजनीतिक अपराधीकरण हैं । संसद तथा राज्य विधानमंडल अपराधियों के लिए सुरक्षा तथा आश्रय के स्थान बनते जा रहे हैं । चुनाव आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 11वीं लोकसभा में 40 तथा विभिन्न राज्यों के विधानमण्डलों में 700 से अधिक सदस्य ऐसे थे ,जिन्हें किसी न किसी अपराध के अंतर्गत सजा मिल चुकी थी । वास्तव में एक शरीफ और ईमानदार व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना ही बहुत कठिन हो गया है ।

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FAQ Checklist

संसदीय शासन प्रणाली व्यवस्था क्या हैं ?

संसदीय शासन प्रणाली व्यवस्था Parliamentary System वह व्यवस्था हैं जिसमें सरकार के दो अंगों – विधानमंडल तथा कार्यपालिका में घनिष्ठ संबंध होता हैं ।

भारत में संसदीय प्रणाली के दोष कौन से हैं ?

संसदीय – प्रणाली की कार्यविधि में निम्नलिखित दोष हैं  -राजनीतिक अपराधीकरण,अल्पसंख्यक सरकार को बाहर से समर्थन देने की प्रथा,अनुशासनहीनता तथा दल – बदल,लोकसभा अध्यक्ष का पक्षपातपूर्ण रवैया ,लोगों का उदासीन दृष्टिकोण

संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक तत्व बताएं।

भारत में संसदीय प्रणाली के अधिक सफल न होने का पहला कारण यहां पर बहुत अधिक राजनीतिक दलों का होना है । संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं कि देश में दो अथवा तीन राजनीतिक दल हों ताकि स्थायी सरकार की स्थापना हो सके और सरकार को मनमानी करने से रोकने के लिए विरोधी दल भी संगठित तथा मजबूत हो ।

बहुत अधिक राजनीतिक दलों का अस्तित्व के नुकसान बताएं।

बहुत अधिक राजनीतिक दलों का अस्तित्व Existence of too Many Political Parties-भारत में संसदीय प्रणाली के अधिक सफल न होने का पहला कारण यहां पर बहुत अधिक राजनीतिक दलों का होना है । संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं कि देश में दो अथवा तीन राजनीतिक दल हों ताकि स्थायी सरकार की स्थापना हो सके और सरकार को मनमानी करने से रोकने के लिए विरोधी दल भी संगठित तथा मजबूत हो ।

संगठित विरोधी दल का अभाव से क्या तात्पर्य हैं ?

संगठित विरोधी दल का अभाव Lack of Organized Opposition-भारत में बहु-दलीय प्रणाली के होने के कारण संगठित विरोधी दल का अभाव रहा हैं । सन 1969 तक तो किसी भी दल को विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं थी । सन 1969 में कांग्रेस ( ओ ) को पहली बार यह सम्मान प्राप्त हुआ , परन्तु सन 1971 में हुए लोकसभा चुनावों के पश्चात पुनः पहले जैसी स्थिति स्थापित हो गयी । इसका मुख्य कारण यह था कि विरोधी दल आपस में इस प्रकार से बटे हुए थे कि कोई भी दल विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं कर सका ।

सामूहिक उत्तरदायित्व की कमी का अर्थ बताएं।

सामूहिक उत्तरदायित्व की कमी Lack of Collective Responsibility-संसदीय शासन प्रणाली में मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता हैं । इसका अर्थ यह हैं कि संसद यदि किसी एक मंत्री के विरुद्ध भी अविश्वास का प्रस्ताव पास कर देती हैं तो समस्त मन्त्रि – परिषद को अपना त्याग – पत्र देना पड़ता हैं । मन्त्रि – परिषद का संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन – प्रणाली की आधारशिला है ।

संसदीय शासन-प्रणाली की आधारशिला क्या हैं ?

संसद यदि किसी एक मंत्री के विरुद्ध भी अविश्वास का प्रस्ताव पास कर देती हैं तो समस्त मन्त्रि – परिषद को अपना त्याग – पत्र देना पड़ता हैं । मन्त्रि – परिषद का संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन – प्रणाली की आधारशिला है ।

प्रधानमंत्री की प्रमुख स्थिति क्या हैं ?

प्रधानमंत्री की प्रमुख स्थिति Dominant Position of the Prime Minister-भारतीय संसदीय प्रणाली की एक विशेषता यह हैं कि इसमें प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है । देश का समस्त शासन प्रबंध प्रधानमंत्री के इर्द – गिर्द घूमता हैं । भारत का प्रधानमंत्री इंग्लैंड के प्रधानमंत्री की भांति समान व्यक्तियों में प्रथम न होकर अमेरिकन राष्ट्रपति की भांति अपने मन्त्रिमण्डल का स्वामी हैं ।

राजनीतिक अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए खतरा कैसे बन सकती हैं ?

राजनीतिक अपराधीकरण -भारत में संसदीय लोकतंत्र की सफलता का एक अन्य खतरा राजनीतिक अपराधीकरण हैं । संसद तथा राज्य विधानमंडल अपराधियों के लिए सुरक्षा तथा आश्रय के स्थान बनते जा रहे हैं । चुनाव आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 11वीं लोकसभा में 40 तथा विभिन्न राज्यों के विधानमण्डलों में 700 से अधिक सदस्य ऐसे थे ,जिन्हें किसी न किसी अपराध के अंतर्गत सजा मिल चुकी थी । वास्तव में एक शरीफ और ईमानदार व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना ही बहुत कठिन हो गया है ।

लोकतंत्र की सफलता के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट कौन सी हैं ?

राजनीतिक अपराधीकरण -भारत में संसदीय लोकतंत्र की सफलता का एक अन्य खतरा राजनीतिक अपराधीकरण हैं । संसद तथा राज्य विधानमंडल अपराधियों के लिए सुरक्षा तथा आश्रय के स्थान बनते जा रहे हैं ।

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