Future of Democracy in India भारतीय लोकतंत्र का भविष्य – भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुए अर्धशताब्दी से अधिक समय बीत चुका है और इसकी सफलता के बारे में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। कई विद्वानों द्वारा यह विचार पेश किया गया है कि भारतीय राजनीति में कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो इसकी जड़ों को खोखला करती जा रही है।
भारत में गरीबी ,अनपढ़ता, जातिवाद,क्षेत्रवाद ,साप्रदायिकता तथा अन्य कुछ ऐसी समस्या है जो लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बड़ी बाधाएं बनी हुई है। अधिकतर राजनीतिक नेता ऐसे हैं जो अपने स्वार्थ सिद्धि की पूर्ति के लिए काम करते हैं और जनता की भलाई की ओर कोई ध्यान नहीं देते। उनकी दल-बदल की प्रवृत्ति ने राजनीतिक वातावरण को बहुत ही दूषित कर रखा है।
भारत में बहु-दलीय प्रणाली होने के कारण किसी एक दल को विधानमंडल में पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता जिसके परिणाम -स्वरूप सत्ता को हथियाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बहुत ही असैद्धान्तिक समझौते किए जाते हैं । अधिकतर राजनीतिक नेता स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी है । यह कहा जाता है कि यदि शीघ्र ही इन समस्याओं का कोई हल नहीं निकाला गया तो भारत में लोकतंत्र का भविष्य और अधिक धुंधला हो जाएगा परंतु वास्तविकता इससे अलग है और देश में लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल है।
भारतीय लोकतंत्र का भविष्य ( Future of Democracy in India )
भारत में लोकतंत्र का भविष्य उज्जल है हम इस आधार पर कह सकते हैं –
चुनावों की निष्पक्षता ( Impartial Elections )
चुनावों की निष्पक्षता ( Impartial Elections ) – भारत में अब तक 17 आम चुनाव हो चुके हैं जो सफलतापूर्वक संपन्न हुए हैं। चुनावों की निष्पक्षता तथा स्वतंत्रता के लिए भारत की विश्व भर में सराहना की जाती है। चुनाव एक चुनाव आयोग के द्वारा करवाए जाते हैं जिसकी निष्पक्षता के बारे में कभी संदेह प्रकट नहीं किया गया है ।
लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति दृढ़ विश्वास ( Firm Belief in Democratic Principles )
लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति दृढ़ विश्वास ( Firm Belief in Democratic Principles ) – भारतीयों में लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति दृढ़ विश्वास है और जब कभी भी इस पर आघात होता है उसे सहन नहीं किया जाता। सन 1977 में हुए लोकसभा के चुनाव से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है। आपातकालीन स्थिति के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों के कारण ही इन चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा।
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स्वतंत्रता तथा समानता लोकतंत्र के मुख्य आधार ( Freedom and equality are the mainstays of Democracy )
स्वतंत्रता तथा समानता लोकतंत्र के मुख्य आधार ( Freedom and equality are the mainstays of Democracy ) – स्वतंत्रता तथा समानता लोकतंत्र के दो मुख्य आधार है। भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से प्रत्येक प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। सामाजिक समानता की स्थापना की गई है और आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं। सभी नागरिकों को अपने विचार प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता है और समाचार पत्रों को भी स्वतंत्रता प्राप्त है कि उन्हें निष्पक्ष रुप से प्रकाशित करें । छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है।
स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary )
स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary ) – लोकतंत्र की सफलता के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक होता है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है और व्यवहार में भी अभी तक तो यह स्वतंत्र काफी हद तक बनी हुई है। नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की रक्षा करने में स्वतंत्र न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है।
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वयस्क मताधिकार ( Adult franchise )
वयस्क मताधिकार ( Adult franchise ) – मौलिक प्रभुसत्ता के सिद्धांत के अनुसार सभी 18 वर्ष के नागरिकों को मत देने का अधिकार दिया गया है। एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर प्रत्येक नागरिक चुनाव में भाग ले सकता है। इस प्रकार सभी नागरिकों को राजनीतिक समानता प्रदान की गई हैं जो लोकतंत्र के प्रमुख तत्व है। यधपि भारतीय जनता का एक बड़ा भाग अशिक्षित है परंतु नागरिकों में मतदान तथा चुनाव के प्रति पूरी जागरूकता है। वें अपने मत का प्रयोग सोच समझकर करते हैं। देश में हुए अनेक चुनावों ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है।
निष्कर्ष ( Conclusions )
उपरोक्त विवरण के आधार पर यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारत में लोकतंत्र को संचालन के लिए अनुकूल वातावरण मौजूद है और भारत में लोकतंत्र का भविष्य उज्जल है। भारत में लोकतंत्र के मार्ग में कुछ चुनौतियां अवश्य है और यदि उन पर काबू पा लिया जाए तो देश में लोकतंत्र का भविष्य और उज्जवल हो सकता है। ऐसे ही रोचक जानकारियों के लिए आप सभी ज्ञान फॉरएवर पर बने रहिए । धन्यवाद ।
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FAQ Checklist
भारत मे लोकतंत्र का भविष्य क्या है ?
यधपि भारत में लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में कई बाधाएं हैं, परंतु भारत में हुए अब तक के 17 लोकसभा चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल है। ये सभी चुनाव प्राय: स्वतंत्र और निष्पक्ष रुप से कराए जाते हैं । ना केवल भारतीय जनता बल्कि राजनीतिक दलों का भी लोकतंत्र में दृढ़ विश्वास है। भारतीय मतदाता अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए आंदोलन करने तथा बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं जो 2002 के जम्मू कश्मीर की विधानसभा के चुनाव से स्पष्ट हो गया है। चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग की स्थापना की गई है जो पूर्ण रूप से निष्पक्ष होकर कार्य करता है। भारत में न्यायपालिका भी स्वतंत्र है जो लोकतंत्र पर होने वाले किसी भी आघात को रोकती है। यधपि भारत के अधिकांश लोग अशिक्षित है परंतु वे राजनीतिक दृष्टि से जागरूक है। ऐसी स्थिति में भारतीय लोकतंत्र के सफल भविष्य के बारे में चिंता की कोई बात नहीं है।
भारत में अब तक कितने आम चुनाव हो चुके हैं ?
भारत में अब तक 17 लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुकी है जो कि निष्पक्ष रुप से चुनाव आयोग के द्वारा करवाए गए हैं।
लोकतंत्र के दो मुख्य आधार क्या है ?
स्वतंत्रता तथा समानता लोकतंत्र के दो मुख्य आधार है। भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से प्रत्येक प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। सामाजिक समानता की स्थापना की गई है और आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं। सभी नागरिकों को अपने विचार प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता है और समाचार पत्रों को भी स्वतंत्रता प्राप्त है कि उन्हें निष्पक्ष रुप से प्रकाशित करें । छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है।
लोकतंत्र की सफलता के लिए न्यापालिका का स्वतंत्र होना कितना जरूरी हैं ?
लोकतंत्र की सफलता के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक होता है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है और व्यवहार में भी अभी तक तो यह स्वतंत्र काफी हद तक बनी हुई है। नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की रक्षा करने में स्वतंत्र न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है।
संगठित विरोधी दल का अभाव से क्या तात्पर्य है।
लोकतंत्र की सफलता के लिए संगठित विरोधी दल का होना आवश्यक होता है। विरोधी दल संसद के अंदर तथा संसद के बाहर सरकार की कड़ी आलोचना करते रहते हैं और उसे मनमानी करने से रोकते हैं। वे संसद में सरकार से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ कर उस पर दबाव डालते रहते हैं । विपक्ष द्वारा की गई आलोचना सरकार की नीतियों एवं निर्णयों को काफी हद तक प्रभावित करती है। कई बार विरोधी दल की आलोचना के कारण सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना पड़ता है।
लोकतंत्र में जनता की भागीदारी से आप क्या समझते हैं।
लोकतंत्र जनता की, जनता द्वारा तथा जनता के लिए सरकार है। अतः इसकी सफलता के लिए राजनीतिक गतिविधियों में लोगों की भागीदारी अति आवश्यक है। पश्चिमी देशों में जनता देश की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भागीदार रहती है और सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करती रहती है। जनता चुनाव में सक्रिय रूप से भाग लेती है और देश की समस्याओं पर अपना मत प्रकट करके जनमत के निर्माण में सहायक होती है। भारत में भी जनता की राजनीतिक गतिविधियों में इतनी अधिक रुचि नहीं है जितनी की होनी चाहिए। बड़ी संख्या में लोग राजनीतिक मामलों के प्रति उदासीन रहते हैं।
भारतीय लोकतंत्र पर निरक्षरता का क्या प्रभाव है?
भारत में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अनपढ़ है। अनपढ़ व्यक्ति देश की समस्याओं को समझ नहीं सकते। उन्हें तो अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का भी पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं होता। अनपढ़ व्यक्ति ना तो शासन की वास्तविकता को समझते हैं और ना ही स्वतंत्र रूप से अपने मत का प्रयोग कर पाते हैं। वे राजनीतिक दलों के झूठे प्रचार से आसानी से प्रभावित हो जाती हैं। यह लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बड़ी बाधा है। निरक्षरता के कारण देश में स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता और सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाना कठिन हो जाता है।
वयस्क मताधिकार ( Adult franchise ) से क्या तात्पर्य हैं ?
वयस्क मताधिकार ( Adult franchise ) – मौलिक प्रभुसत्ता के सिद्धांत के अनुसार सभी 18 वर्ष के नागरिकों को मत देने का अधिकार दिया गया है। एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर प्रत्येक नागरिक चुनाव में भाग ले सकता है। इस प्रकार सभी नागरिकों को राजनीतिक समानता प्रदान की गई हैं जो लोकतंत्र के प्रमुख तत्व है। यधपि भारतीय जनता का एक बड़ा भाग अशिक्षित है परंतु नागरिकों में मतदान तथा चुनाव के प्रति पूरी जागरूकता है। वें अपने मत का प्रयोग सोच समझकर करते हैं। देश में हुए अनेक चुनावों ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है।
भारत में अल्पसंख्यक सरकार को बाहर से समर्थन की धारणा से क्या भाव है
भारत में अल्पसंख्यक सरकार को बाहर से समर्थन देने की प्रथा सन 1979 में विकसित हुई जब चौ. चरण सिंह के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार को कांग्रेस द्वारा बाहर से समर्थन देने का निर्णय लिया गया। उसके पश्चात 1989 में वी.पी सिंह के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को, 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार को, 1996 में बनी देवे गौड़ा के नेतृत्व में बनी सरकार को तथा 1997 में इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में बनी सरकार को कांग्रेस द्वारा बाहर से समर्थन देने का निर्णय लिया गया था। इस प्रकार सन 1998 में हुए चुनाव के पश्चात अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बनी सरकार को तेलुगू देशम तथा कई अन्य दल बाहर से समर्थन दे रहे थे ।
सरकार को बाहर से समर्थन देने की प्रथा भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक है क्योंकि बाहर से समर्थन देने वाले दल को दायित्व के बिना ही राजनीतिक सत्ता के लाभ उठाने के अवसर मिल जाते हैं। शासक दल भी बाहर से समर्थन देने वाले दल को सदैव खुश करने का प्रयत्न करते हैं जो सदा ही शासक दल के साथ सौदेबाजी में लगी रहती हैं। शासक दल द्वारा जब भी उनकी कोई मांग चाहे वह कितनी ही नाजायज क्यों न हो अगर नहीं मानी जाती तो वह अपना समर्थन वापस ले लेते हैं। इससे सरकार की सत्ता की अस्थिरता बनी रहती है ।
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