Indian Democracy -7 Big Challenges - Problems - Issues -Social Factors

Indian Democracy:लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्व

इंडियन डेमोक्रेसी राजनीति विज्ञान

Indian Democracy भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्व – भारत में संविधान द्वारा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है । संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी ,धर्म-निरपेक्ष ,लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है । प्रस्तावना में यह भी कहा गया है कि संविधान का उद्देश्य भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय दिलाना ,विचार ,अभिव्यक्ति ,विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करना ,प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता की प्राप्ति कराना है ।

प्रस्तावना में व्यक्ति के गौरव को बनाए रखने की घोषणा की गई है । संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है जिनका उद्देश्य भारत में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना है । संविधान के चौथे भाग में दिए गए राज्यनीति निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य भारत में सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है ।

संविधान द्वारा ववयस्क मताधिकार की व्यवस्था की गई है । जिसके अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को , जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हैं , बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया गया है । संविधान में अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई है ।

Table of Contents विषय सूची

भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्व ( Social Factors of Conditioning Indian Democracy )

भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुए लगभग 71 वर्ष ( संविधान जसके द्वारा भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुई सन 1950 में लागू हुआ था ) हो चुके हैं , परंतु व्यवहार में इसे उतनी सफलता नहीं मिली है जो इंग्लैंड ,अमेरिका तथा कुछ अन्य देशों में प्राप्त हुई है । इसका मुख्य कारण भारत की सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियां हैं जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित किया है । ये परिस्थितियां या तत्व इस प्रकार हैं –

निरक्षरता ( Illiteracy )

निरक्षरता ( Illiteracy ) – भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग दरिद्र है । दरिद्रता के कारण निरक्षर होना स्वभाविक है । दरिद्र व्यक्ति जिसकी सारी शक्तियां केवल रोटी का साधन जुटाने में लग जाती है ,किस तरह स्वयं साक्षर हो सकता है या बच्चों को शिक्षा दिला सकता है । भारत में सन 1991 की जनगणना के अनुसार साक्षरता का और 52.11% था जो 1998 में लगभग 60% अनुमानित है ।

सन 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार साक्षरता प्रतिशत 65.38 % है । इस प्रतिशत में धनी व मध्यम वर्ग के लोग भी शामिल हैं जिनमें साक्षरता शत -प्रतिशत होती है । इन आंकड़ों में निर्धन लोगों में तो साक्षरता बहुत ही कम होगी । निरक्षरता लोकतंत्र के लिए एक अभिशाप है । निरक्षर व्यक्ति राष्ट्र की राजनीति में किसी प्रकार की भागीदारी नहीं कर सकता ।

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भारतीय लोकतंत्र पर निरक्षरता का प्रभाव Impact of Illiteracy on Indian Democracy

भारतीय लोकतंत्र पर निरक्षरता के निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं –

राजनीतिक जागृति का अभाव ( Lack of Political Awareness )

राजनीतिक जागृति का भाव ( Lack of Political Awareness in Hindi ) लोकतंत्रीय शासन -प्रणाली को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा हो, परंतु यह तभी संभव है जब वे साक्षर हो । निरक्षर व्यक्ति राष्ट्र की राजनीति को न हीं समझ सकता है । वह विवेक के साथ मतदान भी नहीं कर सकता हैं । ना तो वह अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है , ना ही अपने कर्तव्यों का पालन कर सकता है और ना ही देश की राजनीति में भागीदारी कर सकता है । वर्तमान भारतीय राजनीति में अधिकतर बुराइयां निरक्षरता के कारण है ।

नेताओं द्वारा नागरिकों को बहकाने की प्रवृति ( Tendency of Political Leaders to befool the Public )

नेताओं द्वारा नागरिकों को बहकाने की प्रवृति ( Tendency of Political Leaders to befool the Public ) – राजनीतिक दलों के नेता अपने भाषणों द्वारा निरक्षर लोगों की भावनाओं को सरलता से उभार देते हैं और सत्तारूढ़ होकर देश का शासन चलाते रहते हैं । भारत इस बात का साक्षी है कि लोकतंत्र में जनमत सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाता है ।

जनमत के भय के कारण सरकार जनता के हित के लिए नीतियों का निर्माण करती है , परंतु भारत में अनपढ़ता के कारण स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता । अनपढ़ व्यक्ति राजनीतिक दलों के नारों , झूठे वायदों ,जातिवाद ,संप्रदायवाद तथा भाषावाद आदि से प्रभावित होकर अपने मत का गलत प्रयोग करते हैं । भारत में चूंकि बड़ी संख्या में लोग अनपढ़ हैं । इसलिए यहां लोकतंत्र पूरी तरह से सफल नहीं हो सका है ।

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सामाजिक असमानता Social Inequality

सामाजिक असमानता ( Social Inequality in Hindi ) – भारतीय समाज में कई शताब्दियों से सामाजिक असमानता पाई जाती रही है जो लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में एक बड़ी बाधा है । सामाजिक असमानता का अर्थ है कि नागरिकों में जाति, धर्म ,लिंग तथा वंश आदि के आधार पर भेदभाव किया जाता है । यद्यपि भारतीय संविधान द्वारा देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है ,परंतु आज भी देश में नागरिकों में सामाजिक असमानता पाई जाती है ।

जाति के आधार पर सामाजिक असमानता अब भी मौजूद है जिसमें जन्म के आधार पर उच्च व निम्न जातियां पाई जाती हैं । समाज के एक बड़े भाग को अब भी निम्न जाति का तथा अछूत समझा जाता है ,यधपि भारतीय संविधान अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है । समाज के उच्च वर्ग के लोग अब भी निम्न वर्ग के लोगों को अपने समान स्तर पर लाने के लिए तैयार नहीं है ।

विवाह आदि अब भी प्रायः जातीय आधार पर ही होते हैं । हरिजनों तथा अन्य पिछड़ी जातियों से संबंध रखने वाले व्यक्तियों पर आज भी अत्याचार हो रहे हैं । इस प्रकार की असमानता लोगों में निराशा तथा असंतोष को बढ़ावा देती है। इससे लोगों का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है और प्रत्येक वर्ग अपने हित का ही सोचता है ना कि समूचे समाज के हित की । इस असमानता के वातावरण में समाज का एक बड़ा वर्ग राजनीति के प्रति उदासीन रहता है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है ।

संप्रदायिकता Communalism

संप्रदायिकता ( Communalism in Hindi ) – भारतीय लोकतंत्र शुरू से ही सांप्रदायिकता का शिकार रहा है । भारत का विभाजन भी संप्रदायिकता के कारण ही हुआ था । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय यह आशा की गई थी कि भारत में सांप्रदायिकता का अंत हो जाएगा परंतु सांप्रदायिक तत्व आज भी देश में मौजूद है । सांप्रदायिकता का अर्थ है ( Communalism Meaning in Hindi ) – धर्म के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव रखना । आज भी देश विभिन्न के बीच झगड़ों का अखाड़ा बना हुआ है ।

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संप्रदायिकता ने भारतीय लोकतंत्र को निम्नलिखित ढंग से प्रभावित किया है – Bad effects of communalism on Indian democracy

संप्रदायिकता के आधार पर मतदान ( Voting pattern on the basis of Communalism )

संप्रदायिकता के आधार पर मतदान ( Voting pattern on the basis of Communalism ) – राजनीतिक दल चुनाव के समय लोगों की संप्रदायिक भावनाओं को उभारते हैं और अपने उम्मीदवारों का चुनाव भी संप्रदायिकता के आधार पर करते हैं ताकि उनके जीतने की पूरी संभावना बनी रहे । बहुत बड़ी संख्या में मतदाता भी संप्रदायिकता से प्रभावित होकर मतदान करते हैं

संप्रदायिकता पर आधारित राजनीतिक दल ( Political Parties based on Communalism )

संप्रदायिकता पर आधारित राजनीतिक दल ( Political Parties based on Communalism ) – भारत में संप्रदायिकता ने राजनीतिक दलों को प्रभावित किया है । बहुत से दल तो संप्रदायिकता पर ही आधारित है । कुछ राष्ट्रीय दल भी संप्रदायिकता को हवा देते हैं । इससे लोगों में राष्ट्र के प्रति निष्ठा का होने लगती है और राष्ट्रीय हितों की स्पष्ट अवहेलना होने लगती हैं । कुछ राजनीतिक दलों का संगठन संप्रदायिकता के आधार पर किया गया है । इनमें शिव सेना , मुस्लिम लीग , हिन्दू महासभा तथा अकाली दल प्रमुख हैं ।

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राष्ट्रीय एकता को खतरा ( Danger to National Unity )

राष्ट्रीय एकता को खतरा ( Danger to National Unity ) – संप्रदायिकता ने भारतीय लोगों की राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर दिया है और प्रत्येक अपने हितों की बात सोचता और कहता है। भारत में सांप्रदायिक दंगे और हिंसा इसी के कारण हुए हैं और कुछ लोग तो राष्ट्र से अलग होने की बात भी करने लगते हैं । पंजाब की समस्या इसी की देन थी ।

जातिवाद तथा छुआछूत ( Casteism and Untouchability )

जातिवाद तथा छुआछूत ( Casteism and Untouchability ) – भारत में जातिवाद की समस्या प्राचीन काल से चली आ रही है। वर्तमान भारत में भारत में 3000 से अधिक जातियां तथा उप-जातियां पाई जाती है। जातिवाद ने भारत की राजनीति को बहुत प्रभावित किया है। स्वतंत्रता से पूर्व भी भारत में जातिवाद मौजूद था ,परंतु स्वतंत्रता के पश्चात इसका प्रभाव पहले से बहुत बढ़ा हैं ।

भारतीय लोकतंत्र पर जातिवाद के प्रभाव का वर्णन करते हुए मॉरिस जॉन्स ( Morris Jones ) ने लिखा है , ” पहले की अपेक्षा राजनीति जातियों के लिए अधिक महत्व रखती है और जातियां राजनीति के लिए अधिक महत्व रखती है। चाहे देश के बड़े-बड़े नेता जाति – रहित समाज का नारा बुलंद करते हैं, परंतु ग्रामीण समाज के नए मतदाता केवल परंपरागत राजनीति की भाषा को ही जानते हैं। परंपरागत राजनीति की भाषा जाति के चारों तरफ ही चक्कर लगाती है। “

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जातिवाद ने भारतीय राजनीति तथा लोकतंत्र को अग्रलिखित ढंग से प्रभावित किया है –

  • चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों का चयन प्राय : जाति के आधार पर किया जाता है ।
  • चुनाव प्रचार में जातिवाद पर बहुत अधिक बल दिया जाता है।
  • मतदाता प्राय:जाति के आधार पर ही मतदान करते हैं ।
  • सरकार द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्यों में भी जातिवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जातिवाद हिंसा की राजनीति को जन्म देता हैं ।
  • जातिवाद का सबसे भयंकर रूप को छुआछूत की भावना है जिसने भारतीय समाज को बहुत कलंकित किया है ।

भाषावाद ( Linguistism )

भाषावाद ( Linguistism in Hindi ) – भारत में 179 भाषाएं और 544 स्थानीय उप भाषाएं पाई जाती हैं इनमें से 22 भाषाएं ऐसी हैं जो जनसंख्या के एक बड़े भाग द्वारा बोली जाती है। संविधान में भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। सभी को अपनी भाषा और लिपि सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। प्राइमरी स्तर तक बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

आयोग संसद में चुने गए प्रतिनिधि अपनी भाषा में बोल सकते हैं । राज्य लोक सेवा की परीक्षाओं में राज्य की मुख्य भाषा को माध्यम बनाया गया है। अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए इन्होंने राजसत्ता प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाया और भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की ।

सन 1956 में भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण किया गया इससे मांगो की ऐसी शुरुआत हुई जो किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान है। भाषा के नाम पर भारत उत्तर और दक्षिण दो क्षेत्रों में बट गया है और दोनों क्षेत्रों में खुलकर आंदोलन होते रहते हैं। वास्तव में भाषावाद ने क्षेत्रीयवाद को और अधिक बढ़ावा ही नहीं दिया, बल्कि इसे एक गंभीर समस्या भी बना दिया है ।

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सामन्तवादी मूल्य ( Feudal Values )

सामन्तवादी मूल्य ( Feudal Values ) – भारत में आज भी सामंतवादी मूल्य मौजूद है। भारतीय नौकरशाही -विशेष रूप से भारतीय प्रशासनिक सेवाओं ( I.A.S ) के सदस्य अपने आपको अन्य नागरिकों से बहुत श्रेष्ठ समझते हैं। अंग्रेजी पब्लिक स्कूलों में पढ़े बच्चे तथा उनके माता-पिता अपने बच्चों को अन्य सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चों से श्रेष्ठ समझते हैं। गांवों में आज भी ब्राह्मण, राजपूत तथा ठाकुर आदि वर्ग के लोग अपने को अन्य लोगों से श्रेष्ठ समझते हैं और यह हरिजनों को तो इंसान भी नहीं समझते। यह प्रवृत्ति भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है, क्योंकि लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत नागरिकों में समानता है।

सामाजिक तनाव व हिंसा ( Social Tension and Violence )

सामाजिक तनाव व हिंसा ( Social Tension and Violence ) – लोकतंत्र की सफलता की एक मुख्य शर्त देश में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना है परंतु भारत में जाति, धर्म , धन तथा सामाजिक असमानता के कारण लोगों में आपसी तनाव बना हुआ है। जिसके कारण देश में समय-समय पर हिंसात्मक घटनाएं होती रहती है। इस प्रकार का सामाजिक तनाव तथा हिंसा का वातावरण भी भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।

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भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सफल तथा सुदृढ़ बनाने के लिए उपरोक्त कारकों से उत्पन्न खतरे का सामना करना आवश्यक है। इन बुराइयों से लड़ने के लिए राष्ट्रीय एकता -अखंडता की भावना को विकसित करना प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक है । दोस्तों उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आई होगी ऐसे ही रोचक जानकारियों के लिए ज्ञान फॉरएवर पर बने रहें । धन्यवाद ।

FAQ Checklist

लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्व कौन से हैं ?

लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्व निम्नलिखित हैं –
1. निरक्षरता ( Illiteracy )
2 ) सामाजिक असमानता Social Inequality
3) संप्रदायिकता Communalism
4) जातिवाद तथा छुआछूत ( Casteism and Untouchability )
5 ) भाषावाद ( Linguistism )

भारतीय लोकतंत्र पर निरक्षरता का प्रभाव कितना गहरा पड़ा हैं ?

भारतीय लोकतंत्र पर निरक्षरता के निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं –
i) राजनीतिक जागृति का अभाव ( Lack of Political Awareness )
ii ) नेताओं द्वारा नागरिकों को बहकाने की प्रवृति ( Tendency of Political Leaders to befool the Public )

भारत में निरक्षरता ( Illiteracy ) के क्या कारण हैं ?

निरक्षरता ( Illiteracy ) – भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग दरिद्र है । दरिद्रता के कारण निरक्षर होना स्वभाविक है । दरिद्र व्यक्ति जिसकी सारी शक्तियां केवल रोटी का साधन जुटाने में लग जाती है ,किस तरह स्वयं साक्षर हो सकता है या बच्चों को शिक्षा दिला सकता है । भारत में सन 1991 की जनगणना के अनुसार साक्षरता का और 52.11% था जो 1998 में लगभग 60% अनुमानित है । सन 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार साक्षरता प्रतिशत 65.38 % है । इस प्रतिशत में धनी व मध्यम वर्ग के लोग भी शामिल हैं जिनमें साक्षरता शत -प्रतिशत होती है । इन आंकड़ों में निर्धन लोगों में तो साक्षरता बहुत ही कम होगी । निरक्षरता लोकतंत्र के लिए एक अभिशाप है । निरक्षर व्यक्ति राष्ट्र की राजनीति में किसी प्रकार की भागीदारी नहीं कर सकता ।

सामाजिक असमानता ( Social Inequality ) के मुख्य कारण क्या हैं ?

सामाजिक असमानता ( Social Inequality in Hindi ) – भारतीय समाज में कई शताब्दियों से सामाजिक असमानता पाई जाती रही है जो लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में एक बड़ी बाधा है । सामाजिक असमानता का अर्थ है कि नागरिकों में जाति, धर्म ,लिंग तथा वंश आदि के आधार पर भेदभाव किया जाता है । यद्यपि भारतीय संविधान द्वारा देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है ,परंतु आज भी देश में नागरिकों में सामाजिक असमानता पाई जाती है ।
जाति के आधार पर सामाजिक असमानता अब भी मौजूद है जिसमें जन्म के आधार पर उच्च व निम्न जातियां पाई जाती हैं । समाज के एक बड़े भाग को अब भी निम्न जाति का तथा अछूत समझा जाता है ,यधपि भारतीय संविधान अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है । समाज के उच्च वर्ग के लोग अब भी निम्न वर्ग के लोगों को अपने समान स्तर पर लाने के लिए तैयार नहीं है ।

संप्रदायिकता ( Communalism in Hindi ) का अर्थ क्या हैं ?

संप्रदायिकता ( Communalism in Hindi ) – भारतीय लोकतंत्र शुरू से ही सांप्रदायिकता का शिकार रहा है । भारत का विभाजन भी संप्रदायिकता के कारण ही हुआ था । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय यह आशा की गई थी कि भारत में सांप्रदायिकता का अंत हो जाएगा परंतु सांप्रदायिक तत्व आज भी देश में मौजूद है । सांप्रदायिकता का अर्थ है ( Communalism Meaning in Hindi ) – धर्म के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव रखना । आज भी देश विभिन्न के बीच झगड़ों का अखाड़ा बना हुआ है ।

संप्रदायिकता ने भारतीय लोकतंत्र को कितना प्रभावित किया है ?

संप्रदायिकता ने भारतीय लोकतंत्र को निम्नलिखित ढंग से प्रभावित किया है –
i ) संप्रदायिकता के आधार पर मतदान ( Voting pattern on the basis of Communalism )
ii ) संप्रदायिकता पर आधारित राजनीतिक दल ( Political Parties based on Communalism )
iii ) राष्ट्रीय एकता को खतरा ( Danger to National Unity )

जातिवाद ने भारतीय राजनीति तथा लोकतंत्र को कैसे प्रभावित किया है ?

जातिवाद तथा छुआछूत ( Casteism and Untouchability ) – भारत में जातिवाद की समस्या प्राचीन काल से चली आ रही है। वर्तमान भारत में भारत में 3000 से अधिक जातियां तथा उप-जातियां पाई जाती है। जातिवाद ने भारत की राजनीति को बहुत प्रभावित किया है।
जातिवाद ने भारतीय राजनीति तथा लोकतंत्र को अग्रलिखित ढंग से प्रभावित किया है –

1) चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों का चयन प्राय : जाति के आधार पर किया जाता है ।
2) चुनाव प्रचार में जातिवाद पर बहुत अधिक बल दिया जाता है।
3) मतदाता प्राय:जाति के आधार पर ही मतदान करते हैं ।
4) सरकार द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्यों में भी जातिवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5) जातिवाद हिंसा की राजनीति को जन्म देता हैं ।
6) जातिवाद का सबसे भयंकर रूप को छुआछूत की भावना है जिसने भारतीय समाज को बहुत कलंकित किया है ।

भारत में भाषावाद का प्रभाव बताओं। ( Linguistism in Hindi )

भाषावाद ( Linguistism in Hindi ) – भारत में 179 भाषाएं और 544 स्थानीय उप भाषाएं पाई जाती हैं। इनमें से 22 भाषाएं ऐसी हैं जो जनसंख्या के एक बड़े भाग द्वारा बोली जाती है। संविधान में भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। सभी को अपनी भाषा और लिपि सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। प्राइमरी स्तर तक बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। आयोग संसद में चुने गए प्रतिनिधि अपनी भाषा में बोल सकते हैं । राज्य लोक सेवा की परीक्षाओं में राज्य की मुख्य भाषा को माध्यम बनाया गया है। अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए इन्होंने राजसत्ता प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाया और भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की ।

सामन्तवादी मूल्य ( Feudal Values ) से आप क्या समझते हो ?

सामन्तवादी मूल्य ( Feudal Values ) – भारत में आज भी सामंतवादी मूल्य मौजूद है। भारतीय नौकरशाही -विशेष रूप से भारतीय प्रशासनिक सेवाओं ( I.A.S ) के सदस्य अपने आपको अन्य नागरिकों से बहुत श्रेष्ठ समझते हैं। अंग्रेजी पब्लिक स्कूलों में पढ़े बच्चे तथा उनके माता-पिता अपने बच्चों को अन्य सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चों से श्रेष्ठ समझते हैं। गांवों में आज भी ब्राह्मण, राजपूत तथा ठाकुर आदि वर्ग के लोग अपने को अन्य लोगों से श्रेष्ठ समझते हैं और यह हरिजनों को तो इंसान भी नहीं समझते। यह प्रवृत्ति भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है, क्योंकि लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत नागरिकों में समानता है।

भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में सामाजिक तनाव व हिंसा का कितना प्रभाव हैं ?

सामाजिक तनाव व हिंसा ( Social Tension and Violence ) – लोकतंत्र की सफलता की एक मुख्य शर्त देश में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना है परंतु भारत में जाति, धर्म , धन तथा सामाजिक असमानता के कारण लोगों में आपसी तनाव बना हुआ है। जिसके कारण देश में समय-समय पर हिंसात्मक घटनाएं होती रहती है। इस प्रकार का सामाजिक तनाव तथा हिंसा का वातावरण भी भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।

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