Democracy भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले आर्थिक तत्व – भारत में संविधान द्वारा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है । संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी ,धर्म-निरपेक्ष ,लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है । प्रस्तावना में यह भी कहा गया है कि संविधान का उद्देश्य भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय दिलाना ,विचार ,अभिव्यक्ति ,विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करना ,प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता की प्राप्ति कराना है ।
प्रस्तावना में व्यक्ति के गौरव को बनाए रखने की घोषणा की गई है । संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है जिनका उद्देश्य भारत में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना है । संविधान के चौथे भाग में दिए गए राज्यनीति निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य भारत में सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है ।
संविधान द्वारा ववयस्क मताधिकार की व्यवस्था की गई है । जिसके अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को , जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हैं , बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया गया है । संविधान में अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई है ।
भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुए लगभग 71 वर्ष ( संविधान जसके द्वारा भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुई सन 1950 में लागू हुआ था ) हो चुके हैं , परंतु व्यवहार में इसे उतनी सफलता नहीं मिली है जो इंग्लैंड ,अमेरिका तथा कुछ अन्य देशों में प्राप्त हुई है । इसका मुख्य कारण भारत की सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियां हैं जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित किया है । ये परिस्थितियां या तत्व इस प्रकार हैं –
Table of Contents विषय सूची
भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले आर्थिक तत्व ( Economic Factors Affecting Indian Democracy )
भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले आर्थिक तत्व अग्रलिखित हैं –
1 ) आर्थिक असमानता ( Economic Inequality )
आर्थिक असमानता ( Economic Inequality ) – लोकतंत्र की सफलता में आर्थिक असमानता भी घातक होती है। विश्व में जितनी भी क्रांतियां हुई है उनका मुख्य कारण आर्थिक असमानता ही था। स्वतंत्रता के इतने वर्षों पश्चात भी भारत में आर्थिक विषमताएँ बनी हुई है। धनी वर्ग के थोड़े से लोग पूरे देश का आर्थिक शोषण कर रहे हैं और लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठता जा रहा है। भारतीय समाज निम्नलिखित आधारों पर आर्थिक असमानता का शिकार है ।
- देश के थोड़े से लोग देश की सारी संपत्ति के मालिक हैं जबकि देश की जनता के एक बड़े भाग को न्यूनतम आवश्यक वस्तुएं भी नहीं मिलती। इस प्रकार संपूर्ण समाज धनी वर्ग और निर्धन वर्ग में बटा हुआ है।
- वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों के कारण साधारण जनता बहुत कठिनाई में है
- औद्योगिक मजदूरों, कृषि मजदूरों और छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वे ऋण के बाहर से दबे रहते हैं।
- 9 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी है ,परंतु उससे साधारण जनता का कोई भला नहीं हुआ है।
- अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जन-जातियों को दी गई सुविधाओं का लाभ केवल कुछ परिवारों तक सीमित रहा है। इन जातियों के लिए आरक्षित किए गए बहुत से पर अभी खाली पड़े हैं।
आर्थिक असमानता ने निम्नलिखित ढंग से लोकतंत्र को प्रभावित किया है –
( i ) धनी वर्ग का शासन पर नियंत्रण ( Privileged Classes Holding Power ) –
धनी वर्ग का शासन पर नियंत्रण ( Privileged Classes Holding Power ) – देश में आर्थिक असमानता के कारण साधारण साधनों वाला व्यक्ति कितना ही योग्य ,इमानदार और राष्ट्रभक्त क्यों ना हो , वह चुनाव नहीं लड़ सकता । चुनाव में धनी वर्ग दलों की सहायता करते हैं और दल सत्ता प्राप्त करने पर पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करते हैं। इससे साधारण जनता के हितों की अवहेलना होनी स्वाभाविक है।
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( ii ) जनता शासकीय मामलों में उदासीन रहती है ( Political Indifference of Public towards Administration )
जनता शासकीय मामलों में उदासीन रहती है ( Political Indifference of Public towards Administration ) – यधपि भारत में वयस्क मताधिकार अपनाया गया है ,परंतु जो लोग सामाजिक असमानता से घिरे हो और आर्थिक असमानता के कारण जीवन – निर्वाह के साधनों को प्राप्त करने के लिए लगे रहते हो, वह देश की शासन व्यवस्था के विषय में उदासीन हो जाते हैं। नागरिकों की यह उदासीनता लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाती है , क्योंकि तानाशाही प्रवृत्तियों का सत्ताधारी दल कभी भी तानाशाही शासन की स्थापना कर सकता है।
भारतीय जनता की उदासीनता इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि आज तक जितने भी चुनाव हुए हैं उन सब में मुश्किल से 50 से 60% मतदाताओं ने भाग लिया है। 12 वीं लोकसभा चुनाव 1999 में मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि हुई और अब यह बढ़कर 62.2 प्रतिशत हो गई है । 13 वीं तथा 14 वीं लोकसभा संख्या कम हो गई है ।
( iii ) हिंसात्मक कार्य में वृद्धि ( Increase in Violence )
हिंसात्मक कार्य में वृद्धि ( Increase in Violence ) – सामाजिक और आर्थिक विषमता के कारण भारतीय समाज में अमीर -गरीब की खाई अत्यधिक चौड़ी हो गई है। इस कारण वर्ग – संघर्ष और भी तेज हो गया है। सामाजिक मेल-जोल समाप्त हो गया है। साधारण लोगों में निराशा और असंतोष की भावना बढ़ गई है। प्रत्येक वर्ग अपनी मांगों के लिए हड़तालें , तोड़- फोड़ ,प्रदर्शन ,घेराव और हिंसात्मक आंदोलन करते हैं।
सार्वजनिक संपत्ति, बसों आदि को आग लगा दी जाती है। रेल की पटरियों और नहरों को तोड़ दिया जाता है। मांगों की ना माने जाने पर बम विस्फोट किए जाते हैं। सरकार और पुलिस को विवश होकर आंसू गैस छोड़नी और गोली चलानी पड़ती है। यह सब सामाजिक और आर्थिक विषमता का परिणाम है ।
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( iv ) भ्रष्टाचार में वृद्धि ( Increase in Corruption )
भ्रष्टाचार में वृद्धि ( Increase in Corruption ) – आर्थिक असमानता से प्रशासन और समाज में भ्रष्टाचार फैलने का वातावरण बनता है। यद्यपि संविधान में सभी नागरिकों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त है, प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव में खड़े होने और मतदान करने का अधिकार प्राप्त है , किंतु गरीबी के कारण अधिकांश लोग इन अधिकारों का स्वतंत्रता -पूर्वक प्रयोग नहीं कर सकते। चुनाव के दिनों में धनी लोग धन या अन्य प्रकार के लालच देकर गरीबों मतों को प्राप्त करते हैं। धन का प्रयोग केवल मत प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं, बल्कि प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका बोलबाला है। अतः आर्थिक असमानता से भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है ।
( v ) शिक्षा के असमान अवसर ( Unequal Opportunities of Education )
शिक्षा के असमान अवसर ( Unequal Opportunities of Education ) – आर्थिक और सामाजिक विषमता के कारण सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा के समान अवसर नहीं मिलते। गरीब लोगों के बच्चों को पब्लिक स्कूलों ,अच्छे कॉलेजों और विदेशों में भी शिक्षा ग्रहण करने के अवसर नहीं मिलते। बेचारे गरीब लोग अपने बच्चों का सरकारी शिक्षा संस्थाओं का खर्चा भी सहन नहीं कर सकते। गरीब लोगों के बच्चे अच्छे डॉक्टर -इंजीनियर नहीं बन सकते ,चाहे वह कितने योग्य ही क्यों न हो।
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2 ) गरीबी ( Poverty )
गरीबी ( Poverty ) – गरीबी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा अभिशाप है। भारत ,जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था ,आज विश्व के गरीब देशों में गिना जाता है। प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से आज भारत का नाम पहले 100 देशों में भी नहीं आता। लगभग 30% लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं जिन्हें जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएं रोटी ,कपड़ा तथा मकान भी उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा सन् 2003 में जारी की गई 14वीं मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से भारत 127वें स्थान पर है ।
गरीबी के भारतीय लोकतंत्र पर निम्नलिखित प्रभाव है –
( i ) लोकतंत्र में अविश्वास ( Loss of Faith in Democracy )
लोकतंत्र में अविश्वास ( Loss of Faith in Democracy ) – भारत को स्वतंत्र हुए अर्धशताब्दी से अधिक समय बीत चुका है। यद्यपि इस काल में 9 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी है, परंतु देश की जनता का एक बड़ा भाग दरिद्र है। दरिद्रता के कारण उसका राजनीतिक तंत्र में विश्वास घटना स्वभाविक है।
( ii ) राजनीतिक दलों द्वारा गरीबों को बहकाकर लाभ उठाने की प्रवृत्ति ( Tendency of Political Parties to befool the Poor )
राजनीतिक दलों द्वारा गरीबों को बहकाकर लाभ उठाने की प्रवृत्ति ( Tendency of Political Parties to befool the Poor ) – भारत में लोकतंत्र पर गरीबी का एक बुरा प्रभाव है। विभिन्न दलों के नेता गण गरीबों को झूठे आश्वासन देते हैं और वे उनके बहकावे में आकर उन्हें मत भी दे देते हैं। राजनीतिक दल सत्ता में आकर अपने वादे भूल जाते हैं और दरिद्र लोग दरिद्र ही रह जाते हैं। उदाहरण के लिए ,सन 1971 में लोकसभा के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘ गरीबी हटाओ ‘ का नारा बुलंद किया, परंतु यह केवल नारा ही रहा। यही बात दूसरे दलों पर भी लागू होती है ।
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( iii ) देश में धनी वर्ग का शासन ( Rule of the Rich People )
देश में धनी वर्ग का शासन ( Rule of the Rich People ) – भारत में लोकतंत्र का शासन ,जो कि जनता का शासन होना चाहिए ,वह थोड़े से उद्योगपतियों और पूंजीपतियों का शासन हो गया है। चुनाव में यह वर्ग राजनीतिक दलों की धन से सहायता करता है और यह दल सत्ता प्राप्त करने पर पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करते हैं और दरिद्र लोगों की अवहेलना करते हैं।
चुनाव और चुनाव प्रचार में इतना अधिक खर्च होता है कि दरिद्र व्यक्ति कभी चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकता। इस व्यवस्था का प्रभाव यह होता है कि दरिद्र वर्ग के लोग देश की राजनीति के प्रति उदासीन हो जाते हैं । लोकतंत्रीय देश के लिए यह व्यवस्था अच्छी नहीं कही जा सकती ।
( iv ) तानाशाही शासन का भय ( Fear of Dictatorship )
तानाशाही शासन का भय ( Fear of Dictatorship ) – गरीबी राज्य में तानाशाही प्रवृत्तियों को विकसित करती है। गरीबी से आर्थिक समस्याएं व्यापक होती है। ऐसी स्थिति में कोई भी दल गरीबों का समर्थन प्राप्त करके तानाशाही शासन की स्थापना कर लेता है। भूतपूर्व सोवियत संघ में साम्यवादी तानाशाही की स्थापना और प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी तथा इटली में तानाशाही की स्थापना इसके प्रमुख उदाहरण है।
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( v ) हिंसात्मक आंदोलन का जन्म ( Rise to Violent Movements )
हिंसात्मक आंदोलन का जन्म ( Rise to Violent Movements ) – राज्य में गरीबी के कारण ही नक्सलवादी जैसे हिंसात्मक आंदोलन शुरू हो जाते हैं। व्यक्ति के सामने जब भोजन की समस्या होती है तो वह हिंसा पर उतारू हो जाता है। स्पष्ट है कि गरीबी भारतीय लोकतंत्र के लिए अभिशाप है ।
3 ) बेरोजगारी ( Unemployment )
बेरोजगारी ( Unemployment ) – भारत में देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीब है। इस गरीबी का एक प्रमुख कारण भारत में बढ़ती हुई बेरोजगारी है यह बेरोजगारी शिक्षित ,तकनीक रूप से शिक्षित ,अशिक्षित ,नगरों व ग्रामों में पाई जाती है। पंचवर्षीय योजनाओं के बावजूद भी बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। ग्रामों में भूमिहीन मजदूर एक लंबे समय तक बेकार रहते है । नगरों में भी उद्योगों में मजदूरों को ना तो उचित मजदूरी मिलती है और ना ही उन्हें सुविधाएं प्राप्त है। शिक्षा के प्रसार के कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
बेकारी की समस्या ने भारतीय लोकतंत्र को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। बेरोजगार व्यक्ति को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों की कोई परवाह नहीं होती और वह अपने वोट तक भी बेच डालता है। बेकारी नैतिक पतन का दूसरा नाम है। एक भूखे तथा बेरोजगार व्यक्ति के लिए जीवन के मूल्यों का कोई प्रश्न ही नहीं होता। बेकार व्यक्ति में अपराध करने की प्रवृत्ति भी जागृत होती है जो, लोकतंत्र के लिए अभिशाप बन जाती है ।
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4 ) क्षेत्रीय असंतुलन ( Regional Imbalance )
क्षेत्रीय असंतुलन ( Regional Imbalance ) – भारत एक विशाल देश है। यहां पर भौगोलिक ,भाषायी, जातियां तथा सांप्रदायिक आधार पर अनेक वविभिन्नताएं पाई जाती है। एक और राजस्थान का मरुस्थल है तो दूसरी ओर पंजाब -हरियाणा की उपजाऊ भूमि। यदि उत्तर में पहाड़ है तो दक्षिण में पठार। एक ओर बिहार व उड़ीसा प्राकृतिक संपदा के होते हुए भी दरिद्र है तो दूसरी ओर पंजाब तथा हरियाणा उपजाऊ भूमि के कारण सर्वाधिक समृद्ध एक ओर मध्य प्रदेश ,असम ,मणिपुर इत्यादि में लोग आदिवासी जीवन जी रहे हैं तो दूसरी ओर मुंबई ,केरल, मद्रास में आधुनिक सभ्यता पूरे यौवन पर है।
क्षेत्रीय असंतुलन के कारण भारत को उन्नत व पिछड़े दो इलाकों में बांटा जा सकता है। यह क्षेत्रीय असंतुलन भारतीय लोकतंत्र को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है –
- क्षेत्रीय असंतुलन जनता में मनोवैज्ञानिक असंतुलन उत्पन्न करता है जिसके अंतर्गत जनता अपने क्षेत्रीय हितों को राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा अधिक महत्व देती है। चंडीगढ़ और उससे जुड़े इलाकों के हस्तांतरण से जुड़ी राजनीति इस तथ्य को प्रदर्शित करती है।
- मतदाता क्षेत्रवाद के आधार पर वोट डालते हैं और राष्ट्रीय हितों की अनदेखी कर देते हैं।
- पिछड़े इलाकों में पृथकतावाद की भावना पनपती है।
- पिछड़े इलाकों के लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास समाप्त होता है और वह अलोकतांत्रिक तरीके अपनाने लगते ।
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5 ) भ्रष्टाचार Corruption
भ्रष्टाचार Corruption – भ्रष्टाचार एक अन्य ऐसा कारण है जिसने भारतीय लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव डाला है। भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जो भारत के सामाजिक ,आर्थिक तथा राजनीतिक ढांचे की जड़ों को पूरी तरह से खोखला कर रहा है। प्रशासन तथा राजनीति का शायद कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जिसमें भ्रष्टाचार नहीं पाया जाता। भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण भारतीय लोगों का नैतिक चरित्र है।
भ्रष्टाचार से व्यक्ति में लालच की भावना बढ़ती है तथा उसमें नैतिक गिरावट आती है। एक भ्रष्ट व्यक्ति अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन करने के योग्य नहीं रहता। भ्रष्टाचार से पूर्ण समाज का वातावरण दूषित होता है जिसका प्रशासन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। लोगों में प्रशासन के प्रति निष्ठा कम होती है। यधपि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं परंतु अभी इसमें अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई है।
FAQ checklist
भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले आर्थिक तत्व कौन से हैं ?
भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले आर्थिक तत्व अग्रलिखित हैं –
1 ) आर्थिक असमानता ( Economic Inequality )
2 ) गरीबी ( Poverty )
3 ) बेरोजगारी ( Unemployment )
4 ) क्षेत्रीय असंतुलन ( Regional Imbalance )
आर्थिक असमानता ने लोकतंत्र को कैसे प्रभावित किया हैं ?
आर्थिक असमानता ने निम्नलिखित ढंग से लोकतंत्र को प्रभावित किया है –
( i ) धनी वर्ग का शासन पर नियंत्रण ( Privileged Classes Holding Power )
( ii ) जनता शासकीय मामलों में उदासीन रहती है ( Political Indifference of Public towards Administration )
( iii ) हिंसात्मक कार्य में वृद्धि ( Increase in Violence )
( v ) शिक्षा के असमान अवसर ( Unequal Opportunities of Education )
जनता शासकीय मामलों में उदासीन क्यों रहती है ?
जनता शासकीय मामलों में उदासीन रहती है ( Political Indifference of Public towards Administration ) – यधपि भारत में वयस्क मताधिकार अपनाया गया है ,परंतु जो लोग सामाजिक असमानता से घिरे हो और आर्थिक असमानता के कारण जीवन – निर्वाह के साधनों को प्राप्त करने के लिए लगे रहते हो, वह देश की शासन व्यवस्था के विषय में उदासीन हो जाते हैं। नागरिकों की यह उदासीनता लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाती है , क्योंकि तानाशाही प्रवृत्तियों का सत्ताधारी दल कभी भी तानाशाही शासन की स्थापना कर सकता है।
भ्रष्टाचार में वृद्धि क्यों होती जा रही हैं ?
भ्रष्टाचार में वृद्धि ( Increase in Corruption ) – आर्थिक असमानता से प्रशासन और समाज में भ्रष्टाचार फैलने का वातावरण बनता है। यद्यपि संविधान में सभी नागरिकों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त है, प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव में खड़े होने और मतदान करने का अधिकार प्राप्त है , किंतु गरीबी के कारण अधिकांश लोग इन अधिकारों का स्वतंत्रता -पूर्वक प्रयोग नहीं कर सकते। चुनाव के दिनों में धनी लोग धन या अन्य प्रकार के लालच देकर गरीबों मतों को प्राप्त करते हैं। धन का प्रयोग केवल मत प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं, बल्कि प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका बोलबाला है। अतः आर्थिक असमानता से भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है ।
शिक्षा के असमान अवसर के मुख्य कारण बताओं।
शिक्षा के असमान अवसर ( Unequal Opportunities of Education ) – आर्थिक और सामाजिक विषमता के कारण सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा के समान अवसर नहीं मिलते। गरीब लोगों के बच्चों को पब्लिक स्कूलों ,अच्छे कॉलेजों और विदेशों में भी शिक्षा ग्रहण करने के अवसर नहीं मिलते। बेचारे गरीब लोग अपने बच्चों का सरकारी शिक्षा संस्थाओं का खर्चा भी सहन नहीं कर सकते। गरीब लोगों के बच्चे अच्छे डॉक्टर -इंजीनियर नहीं बन सकते ,चाहे वह कितने योग्य ही क्यों न हो।
बेरोजगारी ने भारतीय लोकतंत्र को कितना प्रभावित किया है ?
बेरोजगारी ( Unemployment ) – भारत में देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीब है। इस गरीबी का एक प्रमुख कारण भारत में बढ़ती हुई बेरोजगारी है यह बेरोजगारी शिक्षित ,तकनीक रूप से शिक्षित ,अशिक्षित ,नगरों व ग्रामों में पाई जाती है। पंचवर्षीय योजनाओं के बावजूद भी बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। ग्रामों में भूमिहीन मजदूर एक लंबे समय तक बेकार रहते है । नगरों में भी उद्योगों में मजदूरों को ना तो उचित मजदूरी मिलती है और ना ही उन्हें सुविधाएं प्राप्त है। शिक्षा के प्रसार के कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
बेकारी की समस्या ने भारतीय लोकतंत्र को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। बेरोजगार व्यक्ति को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों की कोई परवाह नहीं होती और वह अपने वोट तक भी बेच डालता है।
भ्रष्टाचार ने भारतीय लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव कैसे डाला है।
भ्रष्टाचार Corruption – भ्रष्टाचार एक अन्य ऐसा कारण है जिसने भारतीय लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव डाला है। भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जो भारत के सामाजिक ,आर्थिक तथा राजनीतिक ढांचे की जड़ों को पूरी तरह से खोखला कर रहा है। प्रशासन तथा राजनीति का शायद कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जिसमें भ्रष्टाचार नहीं पाया जाता। भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण भारतीय लोगों का नैतिक चरित्र है।
भ्रष्टाचार से व्यक्ति में लालच की भावना बढ़ती है तथा उसमें नैतिक गिरावट आती है। एक भ्रष्ट व्यक्ति अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन करने के योग्य नहीं रहता। भ्रष्टाचार से पूर्ण समाज का वातावरण दूषित होता है जिसका प्रशासन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। लोगों में प्रशासन के प्रति निष्ठा कम होती है। यधपि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं परंतु अभी इसमें अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई है।