National Integration : Steps taken towards national integration in india भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए उठाए गए कदम – भारत अनेक विभिन्नताओं वाला देश हैं , जिसमे भिन्न-भिन्न जातियों ,धर्मो ,भाषाओं तथा संस्कृतियों के लोग रहते हैं।
भारत के लोगों के रीति रिवाज ,रहन-सहन के ढंग तथा व्यवहारों में बहुत सी भिन्नताएं पाई जाती है। भारत को स्वतंत्र हुए 76 वर्ष हो चुके हैं परंतु इसके संबंध में आज भी यह सवाल उठाया जाता है कि क्या भारत एक राष्ट्र है।
राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा जातिवाद है। इसके साथ ही सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद , निर्धनता , राजनीतिक अवसरवादिता , राजनीतिक भ्रष्टाचार , हिंसा तथा आंदोलन की राजनीति , राष्ट्रीय चरित्र की कमी तथा विदेशी शक्तियों की नकारात्मक भूमिकाओं के कारण राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा उत्पन्न होती रहती है ।
Table of Contents विषय सूची
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए उठाए गए कदम ( Steps Taken towards National Integration in India )
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएं हैं जिन्हें दूर करने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर अनेक प्रयत्न किए गए हैं। इस प्रकार है –
सरकारी स्तर पर प्रयत्न ( Efforts at Government Level )
राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकारी स्तर पर निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं-
सरकारी कानून ( Laws Made by Government )
भारत में सांप्रदायिकता, भाषावाद तथा क्षेत्रवाद के कारण उत्पन्न हुई पृथकवादी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए 1961 में सरकार द्वारा दो कानून बनाए गए । एक कानून के अंतर्गत विभिन्न धार्मिक, जातियां व भाषाई समूह या संप्रदायों में शत्रुता तथा घृणा फैलाने की प्रवृत्ति को अपराध घोषित किया गया और उसके लिए 3 वर्ष तक के दंड की व्यवस्था की गई।
दूसरे कानून द्वारा धर्म ,वंश ,संप्रदाय ,जाति अथवा भाषाई भावना को उत्तेजित करके वोट मांगने वालों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इन कानूनों के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई कि जिस व्यक्ति को इन कानूनों के अंतर्गत दंड मिलेगा वह ना तो चुनाव में मतदान कर सकता है और ना ही चुनाव लड़ सकता है।
1963 में संविधान में 16वां संशोधन पास किया गया जिसका उद्देश्य भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता को सुरक्षित रखना है। इस संशोधन द्वारा यह निश्चित किया गया कि संसद अथवा राज्य विधानमंडल का चुनाव लड़ने से पहले तथा चुने जाने के बाद प्रत्येक उम्मीदवार को यह शपथ लेनी पड़ती है कि मैं भारतीय संविधान के प्रति वफादार रहूंगा और भारत की प्रभुसत्ता व अखंडता को बनाए रखूंगा।
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राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन 1961 ( National Integration Conference 1961 )
- राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या पर विचार करने के लिए 28 सितंबर से 1 अक्टूबर 1961 तक नई दिल्ली में राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री ,मंत्रिमंडल के सदस्यों ,राज्यों के मंत्रियों ,राजनीतिक दलों के नेताओं ,प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्रियों, लेखकों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया।
- इस सम्मेलन में यह विचार व्यक्त किया गया कि राजनीतिक दलों तथा नेताओं ने अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए संप्रदायिकता, जातिवाद ,भाषावाद क्षेत्र संबंधी विवादों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अतः इस सम्मेलन में राजनीतिक दलों के लिए एक आचार संहिता तैयार की गई जिसमें मुख्य रुप से निम्नलिखित बातें शामिल थी –
- राजनीतिक दलों को अन्य राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की गई सभाओं और जुलूस में कोई गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए।
- सरकार को कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उपाय करते समय नागरिकों की स्वतंत्रताओं पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए और ना ही राजनीतिक दलों की सामान्य गतिविधियों में कोई दखल देना चाहिए।
- राजनीतिक सत्ता का दलीय स्वार्थों को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- राजनीतिक दलों को संप्रदायिक, जातिगत ,क्षेत्रीय तथा भाषाई समस्याओं पर कोई ऐसा आंदोलन शुरू नहीं करना चाहिए जिससे सार्वजनिक शांति एवं व्यवस्था भंग हो और लोगों के विभिन्न वर्गों में शत्रुता और तनाव उत्पन्न हो।
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राष्ट्रीय एकीकरण परिषद 1961 ( National Integration Council 1961 )
राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का निर्माण किया गया जिसमें प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री राज्यों के मुख्यमंत्री , राजनीतिक दलों के नेता ,विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष , 2 शिक्षा शास्त्री ,अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का आयुक्त तथा प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त सात अन्य व्यक्तियों को स्थान दिया गया।
इस परिषद को सामान्य लोगों, विद्यार्थियों तथा प्रेस के लिए आचार संहिता तैयार करने का काम सौंपा गया। इस परिषद का कार्य अल्पसंख्यकों की शिकायतों पर विचार करना तथा उन्हें दूर करने के लिए प्रयत्न करना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एकीकरण परिषद को राष्ट्रीय एकीकरण के सभी पहलुओं पर विचार करने और उनकी संबंध में अपने झुकाव देने का निर्देश दिया।
राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन, 1968 ( Reconstruction of National Council 1968 )
राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन द्वारा तैयार की गई आचार संहिता पर किसी भी राजनीतिक दल ने अमल नहीं किया और ना ही राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की सिफारिशों को कोई ठोस रूप देने के लिए कदम उठाए गए। परिणामस्वरूप सन 1960 तथा 1970 के दशक के बीच अनेक स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे हुए और भाषा तथा क्षेत्रीय मामलों पर तनाव बढ़ गया।
ऐसी स्थिति में केंद्रीय सरकार ने राष्ट्रीय एकीकरण परिषद को पुनर्गठित किया और उसमें व्यापार उद्योग तथा मजदूर संघों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया जिससे परिषद के सदस्यों की संख्या 39 से बढ़कर 55 हो गई। इस परिषद की 20 से 22 जून 1968 तक श्रीनगर में एक बैठक हुई। इस बैठक में उन प्रवृत्तियों की निंदा की गई जो राष्ट्रीय एकीकरण को आघात पहुंचा रही थी।
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राष्ट्रीय एकीकरण के लिए 7 सूत्री कार्यक्रम ( Seven Points Action Programme for National Integration )
1976 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के कार्यकारी समूह की एक बैठक नई दिल्ली में हुई जिसमें राष्ट्रीय एकीकरण के लिए 7 सूत्री कार्यक्रम तैयार किया गया। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित थी –
- विद्यार्थियों की उचित मांगों पर विचार किया जाना चाहिए और छात्रों को राजनीति से दूर रहने के लिए कहां जाना चाहिए।
- मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में आधुनिकता के सकारात्मक तत्वों का विकास भी किया जाए।
- हिंसा को रोकना तथा अल्पसंख्यकों को शिक्षा तथा रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए पिछड़े क्षेत्रों को केंद्रीय सहायता देने की बात की गई।
- जनसंचार के माध्यम द्वारा उन शक्तियों को प्रकाश में लाया जाए जो विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों को एक-दूसरे के नजदीक लाती है।
- आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों का आर्थिक विकास किया जाए।
- अल्पसंख्यक समुदायों के बारे में शंकाओं और द्वेष की भावनाओं को समाप्त किया जाए।
- लोगों पर रूढ़िवादी तथा उग्रवादी तत्वों के प्रभाव को कम किया जाए।
संविधान की प्रस्तावना में परिवर्तन 1976 ( Amendment in the Preamble of the Constitution )
1976 में संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में परिवर्तन किए गए । प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल करके भारत को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रस्तावना में एकता शब्द के साथ अखंडता शब्द जोड़ा गया। इन दोनों शब्द राष्ट्र की एकता को मजबूत करने पर बल देती हैं।
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राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन 1980 ( Reconstruction of National Integration Council 1980 )
1980 में पुनः सत्ता में आने पर पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन किया गया जिसकी बैठक 12 नवंबर 1980 को नई दिल्ली में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की। इस बैठक में भी परिषद की एक स्थाई समिति की स्थापना की गई।
इस समिति का मुख्य कार्य संप्रदायिकता तथा अलगाववादी प्रवृत्तियां जो राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा करती है की गतिविधियों पर निगाहें रखना और परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए उचित कार्यवाही करना था।
इस बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा दो अन्य समितियों की स्थापना के बारे में भी घोषणा की गई। इन में से एक समिति देश में बार-बार होने वाले सांप्रदायिक दंगों के कारणों का पता लगाएगी तथा दूसरी समिति धर्मनिरपेक्षता को निश्चित बनाने के लिए शिक्षा को साधन के रूप में अपनाए जाने के संबंध में अपने सुझाव पेश करेगी।
राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक 1984 ( Meeting of National Integration Council 1984 )
राष्ट्रीय एकीकरण की प्राप्ति तथा इससे संबंधित समस्याओं पर विचार करने के लिए 20 जनवरी 1984 को स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक हुई। इस बैठक में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाओं तथा समस्याओं पर विचार किया गया। परिषद की इस बैठक में निम्नलिखित सुझाव पेश किए गए –
- जातिवाद ,भाषावाद तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं के विरुद्ध जन्म तैयार करना।
- धर्म तथा राजनीति को एक दूसरे से अलग रखना।
- विदेशी शक्तियों एवं भारत विरोधी गतिविधियों का मुकाबला करने के आंतरिक सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्थाओं को मजबूत करना।
- राजनीतिक दलों को हिंसात्मक गतिविधियों से दूर करने के लिए उनके लिए आचार संहिता तैयार करना।
- केंद्र तथा राज्यों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए कदम उठाना।
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राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक 1986 ( Meeting of National Integration Council 1986 )
1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन किया गया। इस नई परिषद की बैठक 9 अप्रैल 1986 को हुई जिसमें बाबू जगजीवन राम की अध्यक्षता में एक स्थाई समिति की स्थापना की गई । इस समिति को राष्ट्रीय एकीकरण से संबंधित सभी घटनाओं पर विचार करने तथा अपने सुझाव देने का काम सौंपा गया।
परंतु श्री जगजीवन राम अपनी बीमारी के कारण इस समिति की बैठक नहीं बुला सके। तत्पश्चात 12 सितंबर 1986 को राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में हुई। इस बैठक में राष्ट्रीय एकीकरण को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए –
- सरकारी समारोह में कोई धार्मिक रस्में नहीं होनी चाहिए और इन समारोह में धार्मिक रीति-रिवाजों को कोई महत्व नहीं दिया जाएगा।
- धार्मिक जुलूस ऊपर कोई पाबंदी नहीं लगाई जाएगी परंतु उन्हें कानून द्वारा नियमित किया जा सकता है।
- धार्मिक सम्मेलनों में लाउड स्पीकरों के प्रयोग को नागरिक कानूनों द्वारा नियमित किया जाना चाहिए।
- सांप्रदायिकता का सामना करने के लिए राजनीतिक दलों को नए ढंग अपनाने चाहिए और चुनाव के समय सांप्रदायिक दृष्टिकोण का परित्याग करना चाहिए।
- निष्पक्ष पुलिस की व्यवस्था को निश्चित बनाना चाहिए
- अल्पसंख्यक लोगों की भलाई और सुरक्षा के लिए उचित प्रशासनिक कदम उठाने पर भी परिषद में जोड़ दिया गया।
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राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन 1990 ( Reorganization of National Integration Council 1990 )
1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन किया गया। इसमें लगभग 100 सदस्य थे जिनमें 7 केंद्रीय मंत्री 8 राष्ट्रीय दलों के प्रमुख तथा अन्य विभिन्न क्षेत्रों में से लिए गए सदस्य थे। इस बैठक में सांप्रदायिकता और पृथक तावाद पर काबू पाने के लिए कार्य योजना समिति बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया।
कांग्रेस के सत्ता में आने पर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन किया गया। इसकी बैठक 2 नवंबर 1991 को हुई जिसमें राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के कारण देश में सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखने के उपायों पर विचार किया गया।
दिसंबर 1991 को राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक में सभी राजनीतिक दलों ने सरकार के पंजाब में चुनाव करवाने के निर्णय का स्वागत किया और सरकार से जम्मू और कश्मीर में भी राजनीतिक प्रक्रिया के बहाल करने का आग्रह किया। दिसंबर 1992 में राष्ट्रीय एकीकरण परिषद का पुनर्गठन किया गया था।
गैर सरकारी स्तर पर प्रयत्न ( Efforts at Non Government Level )
राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकारी स्तर पर प्रयासों के अतिरिक्त कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी इसके लिए प्रयत्न किए गए जो इस प्रकार है –
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इंसानी बिरादरी का निर्माण ( Formation of Insani Biradri )
भारत में सांप्रदायिकता का मुकाबला करने तथा राष्ट्रीय एकता को कायम करने के लिए 1970 में इंसानी बिरादरी की स्थापना की गई है। श्री जयप्रकाश नारायण को इसका अध्यक्ष तथा जम्मू व कश्मीर के शेख अब्दुल्ला को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया।
इस संगठन में प्रत्येक जाति ,क्षेत्र , वर्ग तथा धर्म के लोग शामिल हो सकते थे। इस संगठन का उद्देश्य सांप्रदायिकता और राष्ट्रीय एकता को भंग करने वाली शक्तियों का विरोध करना तथा राष्ट्रीय एकता का विकास करने के लिए प्रयत्न करना था।
सर्वभारतीय सांप्रदायिकता विरोधी समिति ( All India Sampradayikta Virodhi Committee )
सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति को निश्चित करने के लिए सन 1970 में सर्व भारतीय संप्रदायिकता विरोधी समिति की स्थापना की गई । इस समिति की बैठक 11 से 13 नवंबर 1970 को श्रीमती सुभद्रा जोशी की अध्यक्षता में हुई।
इस समिति ने सुझाव दिया कि देश की शिक्षा प्रणाली को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए सरकार द्वारा ढृढ़ कदम उठाए जाने चाहिए परंतु राष्ट्रीय एकीकरण की प्राप्ति में यह समिति भी कोई विशेष भूमिका नहीं निभा पाए।
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FAQ Checklist
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए कौन से कदम उठाए गए ?
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएं हैं जिन्हें दूर करने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर अनेक प्रयत्न किए गए जो इस प्रकार है- सरकारी कानून ,राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन 1961 ,राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की स्थापना, राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के लिए 7 सूत्री कार्यक्रम तैयार करना, राष्ट्रीय एकीकरण का पुनर्गठन 1992 तथा इंसानी बिरादरी का निर्माण और सर्व भारतीय संप्रदायिकता विरोधी समिति की स्थापना की गई ।
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए सरकारी स्तर पर कौन से प्रयत्न किए गए हैं ?
भारत में सांप्रदायिकता, भाषावाद तथा क्षेत्रवाद के कारण उत्पन्न हुई पृथक वादी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए 1961 में सरकार द्वारा कानून बनाए गए । इस कानून के अंतर्गत विभिन्न धार्मिक, जातियां और भाषाई समूह में शत्रुता तथा घृणा फैलाने की प्रवृत्ति को अपराध घोषित किया गया। 1976 में संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में परिवर्तन किए गए । प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल करके भारत को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया।
भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए गैर सरकारी स्तर पर कौन से प्रयत्न किए गए हैं ?
1 ) सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति को निश्चित करने के लिए सन 1970 में सर्व भारतीय संप्रदायिकता विरोधी समिति की स्थापना की गई ।
2 ) भारत में सांप्रदायिकता का मुकाबला करने तथा राष्ट्रीय एकता को कायम करने के लिए 1970 में इंसानी बिरादरी की स्थापना की गई है। श्री जयप्रकाश नारायण को इसका अध्यक्ष तथा जम्मू व कश्मीर के शेख अब्दुल्ला को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया।
भारतीय संविधान का 16वां संशोधन का उद्देश्य क्या है ?
1963 में संविधान में 16वां संशोधन पास किया गया जिसका उद्देश्य भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता को सुरक्षित रखना है। इस संशोधन द्वारा यह निश्चित किया गया कि संसद अथवा राज्य विधानमंडल का चुनाव लड़ने से पहले तथा चुने जाने के बाद प्रत्येक उम्मीदवार को यह शपथ लेनी पड़ती है कि मैं भारतीय संविधान के प्रति वफादार रहूंगा और भारत की प्रभुसत्ता व अखंडता को बनाए रखूंगा।
आचार संहिता की मुख्य शर्तें क्या है ?
1 ) राजनीतिक दलों को अन्य राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की गई सभाओं और जुलूस में कोई गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए।
2 )सरकार को कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उपाय करते समय नागरिकों की स्वतंत्रताओं पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए और ना ही राजनीतिक दलों की सामान्य गतिविधियों में कोई दखल देना चाहिए।
3 )राजनीतिक दलों को संप्रदायिक, जातिगत ,क्षेत्रीय तथा भाषाई समस्याओं पर कोई ऐसा आंदोलन शुरू नहीं करना चाहिए जिससे सार्वजनिक शांति एवं व्यवस्था भंग हो और लोगों के विभिन्न वर्गों में शत्रुता और तनाव उत्पन्न हो।
भारतीय संविधान का 42वें संशोधन का उद्देश्य क्या है ?
1976 में संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में परिवर्तन किए गए । प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल करके भारत को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रस्तावना में एकता शब्द के साथ अखंडता शब्द जोड़ा गया। इन दोनों शब्द राष्ट्र की एकता को मजबूत करने पर बल देती हैं।
इंसानी बिरादरी का निर्माण कब और क्यों किया गया ?
भारत में सांप्रदायिकता का मुकाबला करने तथा राष्ट्रीय एकता को कायम करने के लिए 1970 में इंसानी बिरादरी की स्थापना की गई है। श्री जयप्रकाश नारायण को इसका अध्यक्ष तथा जम्मू व कश्मीर के शेख अब्दुल्ला को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया। इस संगठन में प्रत्येक जाति ,क्षेत्र , वर्ग तथा धर्म के लोग शामिल हो सकते थे। इस संगठन का उद्देश्य सांप्रदायिकता और राष्ट्रीय एकता को भंग करने वाली शक्तियों का विरोध करना तथा राष्ट्रीय एकता का विकास करने के लिए प्रयत्न करना था।
सर्वभारतीय सांप्रदायिकता विरोधी समिति की स्थापना कब और क्यों हुआ ?
सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति को निश्चित करने के लिए सन 1970 में सर्व भारतीय संप्रदायिकता विरोधी समिति की स्थापना की गई । इस समिति की बैठक 11 से 13 नवंबर 1970 को श्रीमती सुभद्रा जोशी की अध्यक्षता में हुई।
राष्ट्रीय एकीकरण परिषद क्या है ?
राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की स्थापना सन 1961 में की गई थी। इस परिषद का मुख्य कार्य राष्ट्रीय एकीकरण के सभी पहलुओं पर विचार करना और इसके संबंध में अपनी सिफारिशें करना है। इस परिषद में प्रधानमंत्री ,केंद्रीय गृहमंत्री ,राज्यों के मुख्यमंत्री, राजनीतिक दलों के नेता, प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्ति ,अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों का आयुक्त और प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किए गए 7 अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
इंसानी बिरादरी क्या है ?
इंसानी बिरादरी एक गैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1970 में सांप्रदायिकता का मुकाबला करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण को कायम करने के लिए की गई थी। श्री जयप्रकाश नारायण को इसका अध्यक्ष तथा जम्मू व कश्मीर के शेख अब्दुल्ला को इसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सांप्रदायिक तत्व को नष्ट करके लोगों में राष्ट्रीय भावना को विकसित करना था।