Indian Foreign Policy Main Principles in Hindi भारत की विदेश नीति के 14 मुख्य सिद्धांत

Indian Foreign Policy : भारत की विदेश नीति के 14 मुख्य सिद्धांत

राजनीति विज्ञान विदेश नीति

Indian Foreign Policy Main Principles in Hindi भारत की विदेश नीति के 14 मुख्य सिद्धांत – विदेश नीति का अर्थ उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा अन्य राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। जिस प्रकार एक व्यक्ति के लिए समाज से अलग रह कर अपना जीवन व्यतीत करना संभव नहीं है उसी प्रकार कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता।

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प्रत्येक देश को अपनी आर्थिक ,राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन संबंधों को स्थापित करने के लिए देश जिस नीति का अनुसरण करता है उसे देश की विदेश नीति कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि विदेश नीति उन सिद्धांतों तथा क्रियाओं का समूह है जिनके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों से संबंधों को निश्चित करता है।

Table of Contents विषय सूची

भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांत ( Main Principles of Indian Foreign Policy )

भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं –

गुट -निरपेक्षता ( Non-Alignment )

भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता उसकी गुटनिरपेक्षता है। दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व के अधिकतर देश दो परस्पर विरोधी गुटों में विभाजित हो गए। इन में से एक पश्चिमी देशों का गुट था जिसमें अमेरिका ,इंग्लैंड ,फ्रांस आदि देश शामिल थे और दूसरा साम्यवादी देशों का गुट था जिसका नेतृत्व सोवियत संघ द्वारा किया जा रहा था। दोनों ही गुट सैनिक संधियों से बंधे हुए हैं।

भारत ने इन दोनों ही सैनिक गुटों से अलग रहने की नीति अपनाई। भारत सरकार ने यह निश्चय किया कि वह इनमें से किसी सैनिक गठबंधन का सदस्य नहीं बनेगा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा और दोनों गुटों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित करेगा।

उपनिवेशवाद का विरोध ( Anti – Colonialism )

उपनिवेशवाद का अर्थ है कमजोर राष्ट्र को गुलाम बनाकर उसका शोषण करना। भारत औपनिवेशिक नीति का शिकार रहा है इसलिए यह उपनिवेश विरोधी है। भारत नामीबिया की स्वतंत्रता की मांग को खुला समर्थन दे रहा है और उसकी स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयासों में लगा हुआ है। इसके लिए भारत दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार के विरुद्ध सभी प्रकार के प्रयत्नों का समर्थन करता है।

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साम्राज्यवाद का विरोध ( Opposition to Imperialism )

भारत काफी लंबे समय तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शिकार रहा है जिसके कारण इसे साम्राज्यवाद के बुरे बुरे परिणामों का पूरा ज्ञान है। अंतः स्वतंत्र होते ही भारत ने सदा अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले देशों का समर्थन किया है। भारत ने इंडोनेशिया को स्वतंत्रता कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने जब क्यूबा पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न किया तो भारत ने उसका खुलकर विरोध किया।

जाती अथवा रंग पर आधारित भेदभाव की नीति का विरोध ( Opposition to the Policy of Discrimination on the basis of Caste and Colour )

भारत ने जाति अथवा रंग पर आधारित भेदभाव की नीति का विरोध अपनी विदेश नीति का आधार माना है। इसी कारण से ही भारत दक्षिणी अफ्रीका की सरकार द्वारा जातीय भेदभाव के आधार पर अपनाई जाने वाली नीति का कड़ा विरोध करता रहा है।

पंचशील ( Panchsheel )

भारत की ब्रिटिश नीति का एक महत्वपूर्ण आधार पंचशील है। 1954 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रथम बार इन 5 सिद्धांतों की घोषणा की थी जिसके आधार पर संसार में अशांति और भय के वातावरण को दूर करने में सहायता मिल सकी है।

इसका सर्वप्रथम प्रयोग चीन के प्रधानमंत्री श्री चाउ-एन-लाई के साथ तिब्बत के मामले पर समझौता करते समय श्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था और दोनों प्रधानमंत्रियों ने इन सिद्धांतों के प्रति आस्था प्रकट की थी । पंचशील के पांच सिद्धांत निम्नलिखित हैं –

  • एक दूसरे की अखंडता और प्रभुसत्ता बनाये रखना ।
  • एक दूसरे पर आक्रमण न करना ।
  • एक दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना ।
  • आपस में समानता और मित्रता की भावना बनाये रखना ।
  • शांतिपूर्ण सह अस्तित्व ।

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निशस्त्रीकरण ( Disarmament )

भारत का यह विश्वास है कि शस्त्रों की होड़ से युद्ध की संभावना बढ़ती है। अतः भारत ने निशस्त्रीकरण पर बल दिया है। भारत चाहता है कि लड़ाई के खतरनाक हथियारों का निर्माण बंद हो और परमाणु शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया जाए। यह परमाणु शक्ति को रचनात्मक और विकास के कार्यों में प्रयोग करने का समर्थन करता है। यद्यपि भारत अणु शक्ति संपन्न देश बन गया है परंतु इसने अनेक बार यह घोषणा की है कि यह अणु शक्ति का प्रयोग केवल अपने आर्थिक विकास के लिए ही करेगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन ( Support to United Nations Organization )

भारत का विश्वास है कि विभिन्न राज्यों के आपसी झगड़ों को निपटाने ,युद्ध की संभावना को कम करने तथा संसार के विभिन्न देशों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए संयुक्त राज्य संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस कारण से यह इसकी सफलता में पूर्ण सहयोग देने की नीति का समर्थन करता है।

इसके द्वारा लिए गए निर्णय को मानना तथा इसके विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग देना भारत आवश्यक समझता है । इसी कारण से कोरिया, हिंद-चीन ,हंगरी, स्वेज नाहर, चीन की संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता आदि के प्रश्नों पर भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में भी भारत ने सक्रिय भाग लिया है।

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सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध ( Friendly Relations with all the Countries )

भारतीय नेताओं को इस देश की विरासत का पूरा ज्ञान था । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत ने विश्व के सभी देशों विशेष रूप से अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रता पूर्ण संबंध रखने की नीति का अनुसरण किया है। आगे चलकर भारत की इस नीति को शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति का नाम दिया गया।

भारत यही चाहता है कि सभी राष्ट्र शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति को अपनाएं ताकि विश्व शांति बनी रहे। भारत ने फिलिस्तीनी आंदोलन को इसी नीति के अंतर्गत समर्थन प्रदान किया है। भारत ने शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति अपनाते हुए अधिक से अधिक राष्ट्रों के साथ मैत्री संधिया की है।

भारत की परमाणु नीति ( India’s Nuclear Policy )

भारत की सदैव यह नीति रही है कि वह परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाशकारी उद्देश्यों की नहीं बल्कि शांतिपूर्ण एवं रचनात्मक कार्यों के लिए करेगा। सन 1974 में भारत ने एक परमाणु विस्फोट किया था जिसने विश्व की प्रमुख शक्तियों को असमंजस में डाल दिया था। भारत सरकार ने बड़े जोरदार शब्दों में यह घोषणा की थी कि परमाणु विस्फोट सैनिक उद्देश्यों के लिए नहीं अपितु शांतिमय और सुरक्षा उद्देश्यों के लिए है।

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मानव अधिकारों के प्रति सम्मान ( Respect for Human Rights )

भारत की विदेश नीति में मानव अधिकारों के प्रति सम्मान को विशेष महत्व दिया गया है। 1948 के मानव अधिकारों की घोषणा को न केवल भारत ने स्वीकार किया है बल्कि संसार के देशों में इन अधिकारों को सम्मान प्राप्त हो इस और भी ध्यान दिया है। लगभग 4 दशक बीतने के बाद भी संसार के विकसित व विकासशील दोनों प्रकार के देशों में मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।

साम्यवादी देशों में जन-जीवन को साम्यवादी ढांचे में जोर जबरदस्ती से ढाला जा रहा है और विरोध करने वालों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। मुस्लिम अधिनायकवाद देशों में लोकतंत्र का गला घोट दिया गया है। उक्त परिस्थिति में भारत ना केवल मानव अधिकारों की पताका के ऊपर लहरा रहा है बल्कि अन्य देशों में इनके हनन पर घोर विरोध प्रकट करता है।

क्षेत्रीय सहयोग में विश्वास ( Faith in Regional Co-operation )

भारत ने सदैव अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुर संबंध कायम रखने के प्रयास किए हैं। भारत किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का विरोधी रहा है। इसी विश्वास के आधार पर भारत ने क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए विशेषता: 1985 में नेपाल, बांग्लादेश ,भूटान ,मालदीव ,श्रीलंका व पाकिस्तान के साथ मिलकर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क ) दक्षेस विकसित करने में विशेष प्रयास किए ताकि पारस्परिक सहयोग के आधार पर दक्षिण एशिया के देशों द्वारा विभिन्न क्षेत्र में विकास किया जा सके।

नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर बल ( Stress on New International Economic Order )

भारत का पिछले कुछ वर्षों से निरंतर या प्रयास रहा है कि विश्व के विकसित देशों के हितों के अनुकूल स्थापित वर्तमान अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की जगह ऐसी नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बनाई जाए जो न्याय और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित हो और जिसके द्वारा विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर किए जाने वाले प्रत्येक तरह के आर्थिक शोषण को समाप्त करना संभव हो।

अतः विकसित देशों द्वारा विकासशील या तीसरी दुनिया के देशों की तकनीकी सहायता, व्यापार की अनुकूल शर्तें ,बिना शर्त आर्थिक सहायता ,अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक में विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व आदि मांगों को स्वीकार किए जाने पर विशेष बल दिया जाता है।

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अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का विरोध ( Opposition of International Terrorism )

भारत पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर संभव प्रयास में रहा है कि आतंकवाद को समूल रूप से समाप्त करने के सामूहिक प्रयास किए जाएं। भारत इस समस्या की ओर लगातार क्षेत्रीय संगठनों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ में भी ज्वलंत समस्या के रूप में विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित करता रहा है।

भारत ने अपनी इसी नीति के आधार पर ही 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद इस समस्या को विश्व से पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिए ही अमेरिका को आतंक विरोधी कार्यवाही में हर संभव सहयोग देने की अपनी वचनबद्धता बार-बार दोहराई थी।

राष्ट्रमंडल की सदस्यता ( Membership of Common Wealth of Nations )

प्रारंभ में इस संघ को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का नाम दिया गया था लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू जी के जोर डालने पर 1949 में इसे राष्ट्रमंडल का नाम दिया गया। राष्ट्रमंडल में अधिकांश वे राष्ट्र ( एशिया एवं अफ्रीका ) के शामिल है जो कभी ब्रिटेन के अधीन रहे हैं। भारत ने अपने राष्ट्र हित में राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सहयोग स्थापित करने के उद्देश्य से उसका सदस्य बनने का निर्णय प्रारंभ से ही लिया।

इस संबंध में पंडित नेहरू जी ने संविधान सभा के समक्ष राष्ट्रमंडल के सदस्य बनने संबंधी प्रस्ताव पर बोलते हुए स्पष्ट कहा था कि हमने राष्ट्रमंडल का सदस्य रहना इसलिए चुना है क्योंकि हम अकेले नहीं रहना चाहते। राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने से हमें कुछ ऐसे लाभ प्राप्त होते हैं जो कि हमारी प्रभुसत्ता को हमसे छीनते नहीं है।

भारत की विदेश नीति का आलोचनात्मक मूल्यांकन ( Critical Evaluation of the India’s Foreign Policy )

भारत ने ऐसी विदेश नीति के सिद्धांतों को अपनाया है जिससे संसार में शांति रह सके और तनावपूर्ण स्थिति कम हो सके। आज भारत के सुझाव को यदि संसार के राज्य सुनते हैं भले ही वे महान शक्तियां क्यों ना हो उस का प्रमुख कारण उसकी नीति या सिद्धांत है। परंतु भारत की विदेश नीति आलोचना एवं निंदा का शिकार होने से बची नहीं है।

भारत अपने सबसे बड़े हित राष्ट्र की अखंडता की रक्षा करने में असफल रहा है। आज भी चीन एवं पाक ने भारत के सैकड़ों वर्ग में क्षेत्र को दबा रखा है और हम उन्हें मुक्त करवाने में असफल रहे हैं। भारत विदेशी आक्रमणों का शिकार रहा है । इसके अतिरिक्त पड़ोसी देशों से विवादों का ज्यों का त्यों बने रहना एवं अभी भी सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य बनने में महा शक्तियों को अपने पक्ष में लेने में विफलता यह दर्शाती है कि हमारी विदेश नीति एक तरह से असफल रही है।

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FAQ Checklist

गुट-निरपेक्षता से क्या अभिप्राय हैं ?

गुटनिरपेक्षता भारत की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसका अर्थ है कि किसी सैनिक गुट में शामिल ना होना और निष्पक्ष तथा निर्गुट होकर प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय समस्या पर उसके गुणों तथा दोषों को देखकर स्वतंत्र रूप से अपनी राय बनाना। गुटनिरपेक्षता एक सकारात्मक नीति है जिसका उद्देश्य समान विचारों वाले राज्यों के साथ मिलकर शांति, स्वतंत्रता तथा मित्रता के उद्देश्यों को प्राप्त करना है।

उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है

उपनिवेशवाद का अर्थ है कमजोर राष्ट्र को गुलाम बनाकर उसका शोषण करना।

भारत की विदेश नीति साम्राज्यवाद का विरोध क्यों करती है

भारत काफी लंबे समय तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शिकार रहा है जिसके कारण इसे साम्राज्यवाद के बुरे परिणामों का पूरा ज्ञान है। अंतः स्वतंत्र होते ही भारत ने सदा अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले देशों का समर्थन किया है। भारत ने इंडोनेशिया को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने जब क्यूबा पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न किया तो भारत ने उसका खुलकर विरोध किया।

पंचशील सिद्धान्त क्या है ?

भारत की ब्रिटिश नीति का एक महत्वपूर्ण आधार पंचशील है। 1954 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रथम बार इन 5 सिद्धांतों की घोषणा की थी जिसके आधार पर संसार में अशांति और भय के वातावरण को दूर करने में सहायता मिल सकी है। इस का सर्वप्रथम प्रयोग चीन के प्रधानमंत्री श्री चाउ-एन-लाई के साथ तिब्बत के मामले पर समझौता करते समय श्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था और दोनों प्रधानमंत्रियों ने इन सिद्धांतों के प्रति आस्था प्रकट की थी ।

पंचशील के पांच सिद्धांत कौन से है ?

1 ) परस्पर प्रादेशिक अखंडता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
2 ) दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण ना करना।
3 ) एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल ना देना।
4 ) सभी राष्ट्रों की समानता तथा उनमें परस्पर सहयोग की भावना।
5 ) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व।

भारत निशस्त्रीकरण का समर्थक क्यों है ?

भारत का यह विश्वास है कि शस्त्रों की होड़ से युद्ध की संभावना बढ़ती है। अतः भारत ने निशस्त्रीकरण पर बल दिया है। भारत चाहता है कि लड़ाई के खतरनाक हथियारों का निर्माण बंद हो और परमाणु शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया जाए।

भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन क्यों करता है ?

भारत का विश्वास है कि विभिन्न राज्यों के आपसी झगड़ों को निपटाने ,युद्ध की संभावना को कम करने तथा संसार के विभिन्न देशों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए संयुक्त राज्य संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस कारण से यह इसकी सफलता में पूर्ण सहयोग देने की नीति का समर्थन करता है।

भारत की विदेश नीति में मानव अधिकारों को विशेष महत्व क्यों दिया गया है ?

भारत की विदेश नीति में मानव अधिकारों के प्रति सम्मान को विशेष महत्व दिया गया है। 1948 के मानव अधिकारों की घोषणा को न केवल भारत ने स्वीकार किया है बल्कि संसार के देशों में इन अधिकारों को सम्मान प्राप्त हो इस और भी ध्यान दिया है। लगभग 4 दशक बीतने के बाद भी संसार के विकसित व विकासशील दोनों प्रकार के देशों में मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।

भारत नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर बल क्यों देता है।

भारत का पिछले कुछ वर्षों से निरंतर या प्रयास रहा है कि विश्व के विकसित देशों के हितों के अनुकूल स्थापित वर्तमान अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की जगह ऐसी नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बनाई जाए जो न्याय और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित हो और जिसके द्वारा विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर किए जाने वाले प्रत्येक तरह के आर्थिक शोषण को समाप्त करना संभव हो।

भारत की विदेश नीति का संवैधानिक आधार क्या है

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में विदेश नीति के संबंध में निम्नलिखित निर्देश दिए गए हैं- 1) अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बढ़ावा देना 2) अन्य राज्यों के साथ उचित और न्याय पूर्ण संबंध बनाए रखना । 3 ) अंतरराष्ट्रीय संधियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।

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