SAARC Main Problems ,Suggestions to overcome the obstacles of SAARC सार्क की 5 मुख्य समस्याएं -सार्क की बाधाओं को दूर करने के सुझाव

SAARC : सार्क की 5 मुख्य समस्याएं | सार्क की कठिनाइयों को दूर करने के सुझाव

भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध राजनीति विज्ञान सार्क

SAARC Main Problems ,Suggestions to overcome the obstacles of SAARC सार्क की 5 मुख्य समस्याएं ,सार्क की बाधाओं को दूर करने के सुझाव – सार्क ( SAARC ) का विकास धीरे-धीरे हुआ है। ( SAARC ) सार्क का पूरा नाम दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ है। दक्षिण एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर रहमान ने दिया था। उन्होंने सन 1977 से सन 1980 के बीच भारत ,पाकिस्तान ,नेपाल और श्रीलंका की यात्रा की थी।

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उसके बाद ही उन्होंने 1980 में आपसी सहयोग के लिए 10 विषयों वाला एक दस्तावेज तैयार किया। जिस पर विचार करने के लिए सार्क के विदेश सचिवों की बैठक 1981 में हुई। इसके पश्चात एक 2 अगस्त 1983 में सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक नई दिल्ली में हुई। जिसमें दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग की पहली औपचारिक घोषणा हुई।

सन 1984 में मालदीव व सन 1985 में भूटान में भी सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। सन 1985 में ही दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना हुई और इसका संवैधानिक स्वरूप 7-8 दिसंबर 1985 को ढाका में 7 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के सम्मेलन में निश्चित किया गया। 8 दिसंबर 1985 को सार्क ( SAARC ) की स्थापना हुई ।

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सार्क की समस्याएं ( Main Problems of SAARC in Hindi )

सार्क देशों के एकजुटता के प्रयास में बाधा डालने वाली मुख्य समस्याएं या कठिनाइयां निम्नलिखित हैं-

  1. सार्क के सदस्य देशों में आपसी विवाद एवं संघर्ष के अनेक मुद्दे विद्यमान हैं जैसे भारत-पाकिस्तान के मध्य कश्मीर विवाद, भारत-बांग्लादेश के मध्य गंगा पानी के बंटवारे का मुद्दा, भारत-श्रीलंका में तमिल प्रवासियों की समस्या आदि अनेक मुद्दे इस क्षेत्र में विद्यमान है जो इन की एकजुटता में बाधा पैदा करते हैं।
  2. सार्क सदस्य देशों में अत्यधिक विविधता भी इन सदस्य देशों को एक सूत्र में बांधने से रोकती है जैसे नेपाल भूटान में राजतंत्र ,पाकिस्तान में सैनिक तंत्र ,भारत ,बांग्लादेश ,श्रीलंका ,मालदीव में लोकतंत्र है। इसके साथ इनमें तीन इस्लामिक देश है जो बौद्ध है, एक हिंदू तथा एक धर्मनिरपेक्ष देश है।
  3. इन व्यवस्थाओं के कारण इनकी नीतियां और कार्यक्रम एक दूसरे के विरोधी हैं और अंतरराष्ट्रीय मंच पर आपस में सहयोग की बजाय टकराव की नीति अपनाते हैं जिससे इनकी एकजुटता में बाधा आती है।
  4. सार्क देशों में भारत की औद्योगिक प्रगति, सैनिक क्षमता ,कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता , तकनीकी विकास आदि ने भारत की सार्क देशों में बिग ब्रदर की स्थिति बना दी है जिससे अन्य सदस्य देशों में भय एवं शंका की स्थिति उत्पन्न हो गई है जो इनकी एकजुटता के प्रयास को ध्वस्त करती है।
  5. भारत के द्वारा प्राप्त की गई परमाणु परीक्षणों के माध्यम से परमाणु कुशलता ने भी इस क्षेत्र में भारत-पाक के मध्य क्षेत्र में दौड़ को एक नया आयाम दिया है जिससे इस क्षेत्र के अन्य देशों में भी असुरक्षा की भावना विकसित हुई है।
  6. सार्क के सदस्य देश आज भी बाहरी शक्तियों के प्रभाव व हस्तक्षेप को रोकने में असफल रहे हैं जिससे सदस्य देशों में सहयोग के बजाय महा शक्तियों के पिछलग्गू बनने की प्रवृत्तियां विकसित हो रही है जैसे पाक-अमेरिका व चीन की ओर तथा नेपाल चीन की ओर व भारत ,रूस व अमेरिका की ओर अधिक निकट आने का प्रयत्न करते हैं। ऐसी प्रवृत्तियां ही पारस्परिक सहयोग में बाधाएं पैदा करती है।

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सार्क की कठिनाइयों ,समस्याओं को दूर करने के सुझाव ( Suggestions to overcome the difficulties or Problems of SAARC in Hindi )

उपर्युक्त बाधाओं के पश्चात भी हम यह कह सकते हैं कि सार्क उस क्षेत्रीय सहयोग के आधार पर अपना महत्वपूर्ण स्थान विश्व व्यवस्था में बना सकता है यदि निम्नलिखित सुझाव पर अमल किया जाए-

  • सार्क के सदस्य देश महा शक्तियों को इस क्षेत्र से दूर रखने का प्रयास करें।
  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर टकराव व संघर्ष की बजाय पारस्परिक सहयोग एवं सर्व सम्मत दृष्टिकोण को अपनाएं।
  • संघर्ष के आपसी मुद्दों को टालने की बजाय पारस्परिक विचार विमर्श के द्वारा समाधान करने का प्रयास किया जाए।
  • द्वि-पक्षीय एवं बहु-पक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाए।
  • सांस्कृतिक संपर्क एवं एक दूसरे देश के लोगों की आवाजाही को प्रोत्साहन देने का कार्य किया जाए।
  • सार्क के सदस्य देशों को सहयोग के नए क्षेत्र जैसे व्यापार ,उद्योग ,उर्जा आदि क्षेत्रों को ढूंढने का प्रयास किया जाए और सामूहिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने का प्रयास किया जाए।

निष्कर्ष ( Conclusion )

यदि सार्क के इतिहास को देखा जाए तो स्पष्ट है कि इसकी स्थापना 1985 में हुई थी । सार्क के सदस्य देश पारस्परिक द्वंद को छोड़कर एवं भूलकर यदि पारस्परिक सहयोग का रास्ता बनाए तो निश्चित रूप से यह विशाल संगठन 21वीं सदी की शांति ,सद्भाव एवं शोषण मुक्त अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए मार्ग प्रशस्त करने में सफल हो सकता है।

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FAQ Checklist

सार्क में भारत की क्या भूमिका हैं ?

सार्क देशों में भारत की औद्योगिक प्रगति ,सैनिक क्षमता, कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता तकनीकी विकास आदि ने भारत की सार्क देशों में बिग ब्रदर की स्थिति बना दी है । बेशक भारत के पाकिस्तान , श्रीलंका तथा नेपाल के साथ आपसी विवाद हैं , उसके बावजूद भारत ने सार्क के सभी देशों की सहायता की हैं ।

सार्क के सदस्य देशों में आपसी विवाद एवं संघर्ष के क्या कारण हैं ?

सार्क के सदस्य देशों में आपसी विवाद एवं संघर्ष के अनेक मुद्दे विद्यमान हैं जैसे भारत-पाकिस्तान के मध्य कश्मीर विवाद, भारत-बांग्लादेश के मध्य गंगा पानी के बंटवारे का मुद्दा, भारत-श्रीलंका में तमिल प्रवासियों की समस्या आदि अनेक मुद्दे इस क्षेत्र में विद्यमान है जो इन की एकजुटता में बाधा पैदा करते हैं।

सार्क देशों में अत्यधिक विविधता से एकजुटता पर क्या प्रभाव पड़ा हैं ?

सार्क सदस्य देशों में अत्यधिक विविधता भी इन सदस्य देशों को एक सूत्र में बांधने से रोकती है जैसे नेपाल भूटान में राजतंत्र ,पाकिस्तान में सैनिक तंत्र ,भारत ,बांग्लादेश ,श्रीलंका ,मालदीव में लोकतंत्र है। इसके साथ इनमें तीन इस्लामिक देश है जो बौद्ध है, एक हिंदू तथा एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

सार्क की समस्याएं क्या हैं ?

सार्क के सदस्य देश आज भी बाहरी शक्तियों के प्रभाव व हस्तक्षेप को रोकने में असफल रहे हैं जिससे सदस्य देशों में सहयोग के बजाय महा शक्तियों के पिछलग्गू बनने की प्रवृत्तियां विकसित हो रही है जैसे पाक-अमेरिका व चीन की ओर तथा नेपाल चीन की ओर व भारत ,रूस व अमेरिका की ओर अधिक निकट आने का प्रयत्न करते हैं। ऐसी प्रवृत्तियां ही पारस्परिक सहयोग में बाधाएं पैदा करती है।

सार्क की कठिनाइयों ,समस्याओं को दूर करने के सुझाव दीजिए ।

1.सार्क के सदस्य देश महा शक्तियों को इस क्षेत्र से दूर रखने का प्रयास करें।
2. सार्क के सदस्य देशों को सहयोग के नए क्षेत्र जैसे व्यापार ,उद्योग , उर्जा आदि क्षेत्रों को ढूंढने का प्रयास किया जाए और सामूहिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने का प्रयास किया जाए। 3. द्वि-पक्षीय एवं बहु-पक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाए।

सार्क का पूरा नाम क्या है?

SAARC की फुल फॉर्म South Asian Association for Regional Cooperation होती है। जिसको हिंदी में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन भी कहा जाता है। इस समूह में दक्षिण एशिया के आठ देश शामिल है ।

सार्क का मुख्यालय कहां पर स्थित हैं ?

सार्क आठ दक्षिण एशियाई देशों का एक वैश्विक संघ है। इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमांडू में है।

कौन सा देश सार्क में शामिल नहीं हैं ?

थाईलैंड सार्क का सदस्य नहीं हैं। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना 8 दिसंबर 1985 को ढाका में सार्क चार्टर के हस्ताक्षर के साथ की गई थी। इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमांडू में है।

सार्क की असफलता के मुख्य कारण बताएं ।

सार्क के सदस्य देश आज भी बाहरी शक्तियों के प्रभाव व हस्तक्षेप को रोकने में असफल रहे हैं जिससे सदस्य देशों में सहयोग के बजाय महा शक्तियों के पिछलग्गू बनने की प्रवृत्तियां विकसित हो रही है । सार्क सदस्य देशों में अत्यधिक विविधता भी इन सदस्य देशों को एक सूत्र में बांधने से रोकती है

सार्क में भारत की क्या स्थिति हैं ?

सार्क देशों में भारत की औद्योगिक प्रगति, सैनिक क्षमता ,कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता , तकनीकी विकास आदि ने भारत की सार्क देशों में बिग ब्रदर की स्थिति बना दी है जिससे अन्य सदस्य देशों में भय एवं शंका की स्थिति उत्पन्न हो गई है जो इनकी एकजुटता के प्रयास को ध्वस्त करती है।

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