Problems or Hindrances in the way of Disarmament in Hindi -CTBT -निशस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएं - कठिनाइयां- सीटीबीटी क्या है

Disarmament : नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएं या कठिनाइयां | CTBT क्या है ?

अंतरराष्‍ट्रीय मुद्दे निःशस्त्रीकरण राजनीति विज्ञान

Problems in the way of Disarmament नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएं, कठिनाइयां – परमाणु शस्त्रों का विकास संपूर्ण मानव जाति के लिए विध्वंसकारी स्वरूप है। इसलिए मानव जाति की सुरक्षा एवं विश्वशांति के लिए परमाणु शस्त्र पर नियंत्रण आवश्यक है। इस दिशा में जो प्रयास हुए हैं उनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित हैं-

YouTube Channel download
Telegram Group images

Table of Contents विषय सूची

परमाणु शस्त्रों पर नियंत्रण के प्रयास ( Attempts fir the Limitation and Reduction of Nuclear Arms )

अणु-अस्त्रों के विस्तार को रोकने, अंतरिक्ष और जलाशयों में अणु परीक्षणों पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने बहुत सराहनीय प्रयास किए हैं। इसी संदर्भ में 1963 में आंशिक परमाणु परीक्षक निषेध संधि और 1968 में परमाणु शस्त्र प्रसंग निषेध संधि पर राज्यों के हस्ताक्षर कराने में उसे बहुत सफलता प्राप्त हुई है।

एक सौ से भी अधिक राष्ट्रों ने परमाणु अस्त्र प्रसार संधि पर हस्ताक्षर करके अणु बम बनाने की घोषणा की है। सभी राष्ट्रों को अणु शक्ति का प्रयोग शांतिपूर्ण कार्यों में करने के लिए सहमत किया गया है। फिर भी यह मानना पड़ रहा है कि पूर्णा नि:शस्त्रीकरण नहीं हो पाया है लेकिन काफी सफलता प्राप्त हुई है।

1991 में इराक कुवैत युद्ध के बाद जिसमें इराक को कुवैत से अपना कब्जा समाप्त करना पड़ा, सुरक्षा परिषद के अनेक प्रस्तावों के आधार पर प्रतिबंध लगाकर उसे अपने रसायनिक एवं अन्य नशीले शस्त्रों का विनाश करना पड़ा।

25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ के विघटन के उपरांत अब अमेरिका और रूसी फेडरेशन दूर तक मार सपने वाले शस्त्रों का भी विनाश करने पर सहमत हो गए। अप्रैल 1992 में यूक्रेन ने यह घोषणा की कि वह स्टार्ट ( START ) का पालन करेगा ( यूक्रेन सोवियत संघ का पूर्व गणराज्य था ) ।

अमेरिका एवं रूस के बीच जनवरी 1994 में एक की संधि हुई जिसके तहत यह समझौता हुआ कि दोनों देशों ने एक दूसरे को लक्ष्य करते हुए जो लंबी दूरी के प्रक्षेपास्त्र एक दूसरे के विरुद्ध लगाए हैं उन्हें हटा लिया जाएगा। साथ ही दोनों देशों ने यूक्रेन के 1800 परमाणु अस्त्र समाप्त करने के लिए उस देश के राष्ट्रपति के साथ हस्ताक्षर किए । नि:शस्त्रीकरण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था।

यह भी पढ़ें –

नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएं, कठिनाइयां ( Problems in the way of Disarmament in Hindi )

नि:शस्त्रीकरण को विश्व शांति स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। परंतु नि:शस्त्रीकरण के रास्ते में कुछ बाधाएं उत्पन्न होती है । नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में मुख्य रूप से निम्नलिखित बाधाएं सामने आती हैं-

आतंकवाद की चुनौती ( Challange of Terrorism )

आज विश्व में व्याप्त आतंकवाद नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। आतंकवादी आज शस्त्रास्त्र निर्माता देशों से आधुनिक शस्त्रास्त्र प्राप्त कर रहे हैं। उनका सामना करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र को शस्त्रास्त्र की आवश्यकता होती है। जब तक आतंकवादियों को अधिक आधुनिक तकनीकी युक्त शस्त्र खुले बाजार में उपलब्ध होते रहेंगे तब तक नि:शस्त्रीकरण का कोई भी प्रयास किसी भी राष्ट्र के लिए आत्मघाती हो सकता है।

अविश्वासपूर्ण वातावरण ( Faithless Environment )

निशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा राष्ट्रों के मध्य अविश्वास पूर्ण वातावरण है। इसका कारण यह है कि संसार के विभिन्न राष्ट्र आपसी संदेह और अविश्वास के कारण इस दिशा में पहल करते हुए हिचकिचातेजाते हैं। उन्हें भय होता है कि कहीं एक पक्ष के द्वारा नि:शस्त्रीकरण की दिशा में पहल करने का लाभ दूसरा पक्ष ना उठा ले।

यह भी पढ़ें –

अस्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक रवैया ( Unhealthy Competative Attitudes )

महा शक्तियां अपने शस्त्रास्त्रों के आधुनिकीकरण का मोह छोड़ने को तैयार नहीं है। अतः स्वाभाविक है कि एक देश के आधुनिकतम आयुधों की प्रतिक्रिया में दूसरा देश उससे भी बढ़कर अत्याधुनिक आयुधों की खोज एवं निर्माण प्रक्रिया में लग जाता है। राष्ट्रों की यही प्रतिस्पर्धात्मक मानसिकता नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।

अनुपात की समस्या ( Problem of Proportion )

नि:शस्त्रीकरण से तात्पर्य है शस्त्रीकरण पर सीमा या नियंत्रण लगाना अथवा उनमें कटौती करना । नि:शस्त्रीकरण की मूल समस्या सभी देशों के शस्त्रों को अनुपातिक रूप से कम करना है। शस्त्रों की सीमा निर्धारण के समय प्रत्येक देश को दूसरे देश के प्रति आशंका रहती है कि शायद वह अपनी शक्ति को बढ़ाने तथा विरोधी पक्ष की शक्ति घटाने का प्रयत्न कर रहा है। प्राय नि:शस्त्रीकरण के प्रस्ताव भी एक पक्षीय होते हैं। ऐसे में अनुपातिक नि:शस्त्रीकरण की समस्या और भी कठिन हो जाती है।

राजनीतिक समस्या ( Political Problem )

नि:शस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता है। अतः पहले नि:शस्त्रीकरण किया जाए या राजनीतिक समस्याओं का समाधान किया जाए। यह दोनों एक दूसरे के मार्ग में बाधा डालते हैं और एक के हल हो जाने पर दूसरे का हल हो जाना शुगम है।

यदि नि:शस्त्रीकरण हो जाए तो राजनीतिक विवाद स्वयं सुलझ जाएंगे और राजनीतिक विवाद सुलझ जाएंगे तो नि:शस्त्रीकरण करना सरल हो जाएगा। हमारी धारणा यह है कि शस्त्रों की होड़ से तनाव ,भय,शंका और युद्ध का सूत्रपात होता है और राजनीतिक विवाद उत्पन्न होते हैं परंतु दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट है कि जब तक पारस्परिक राजनीति का विश्वास, मनमुटाव ,भय समाप्त करने की दिशा में ठोस प्रयास नहीं होगी तब तक नि:शस्त्रीकरण कर पाना कठिन है।

यह भी पढ़ें –

सी.टी.बी.टी और भारत ( India and Comprehensive Test Ban Treaty )

CTBT क्या है ? ( what is CTBT in Hindi ) – सीटीबीटी अथवा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध या निषेध संधि विश्व में परमाणु परीक्षणों विशेष रूप से परमाणु हथियार बनाने पर रोक लगाने के उद्देश्य से प्रस्तावित की गई है।

  • सीटीबीटी 1968 में अस्तित्व में आई तथा 1970 से प्रभावी हुई परमाणु अप्रसार संधि ( Nuclear Non-Proliferation Testy or NPT ) का ही अगला चरण है। एन.पी.टी के अनुसार परमाणु हथियार संपन्न देशों की परिभाषा में वे देश माने गए हैं जिन्होंने सन् 1967 से पूर्व परमाणु हथियार बना लिए हैं अथवा परमाणु विस्फोट कर लिए हैं।
  • इस वर्ग में 5 राष्ट्रों को मान्यता प्रदान की गई है, यह है- अमेरिका, रूस ,चीन ,फ्रांस तथा इंग्लैंड। एन.पी.टी द्वारा इन परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के लिए परमाणु हथियार रखने एवं परीक्षण करने का अधिकार दिया गया है।
  • लेकिन गैर परमाणु हथियार राष्ट्रों के परमाणु परीक्षण ना करने तथा परमाणु बम ना बनाने के वचनबद्ध होना अनिवार्य है। भारत ने इसी भेदभाव के कारण इसे स्वीकार नहीं किया है।
  • सन 1993 में अमेरिका तथा भारत ने सह प्रस्तावक के रूप में सी.टी.बी.टी का प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा 1994 में संयुक्त राष्ट्र में नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन में 37 देशों की सहायता से इसका प्रारूप तैयार किया।
  • सी.टी.बी.टी का मुख्य उद्देश्य एन.पी.टी पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों को इस संधि में सम्मिलित करके उनके परमाणु हथियार बनाने के विकल्प को समाप्त कर देना है। ऐसे प्रमुख राष्ट्र हैं -भारत ,पाकिस्तान तथा इजराइल ।
  • सी.टी.बी.टी के एंट्री इनटू फोर्स प्रावधान के अनुसार 18 जून 1996 को जेनेवा में हुए नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन में भाग लेने वाले परमाणु रिएक्टर संपन्न सभी 40 राष्ट्रों को सी.टी.बी.टी का अनुमोदन करना होगा ,यह तभी प्रभावी होगा। भारत ,पाकिस्तान इजराइल भी इसमें सम्मिलित है।

यह भी पढ़ें –

भारत के CTBT संधि पर हस्ताक्षर न करने के मुख्य कारण ( Main reasons for India not signing the CTBT treaty )

भारत ने ‘व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि ‘ पर जेनेवा सम्मेलन में 14 अगस्त 1996 को वीटो कर दिया। उसके पश्चात ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसके मसौदे को स्वीकार किए जाने का प्रस्ताव 7 सितंबर 1996 को रखा जिसे 10 दिसंबर 1996 को महासभा ने तीन के मुकाबले 158 मतों से स्वीकार कर लिया लेकिन भारत के असहमत होने के कारण यह तब तक अप्रभावी रहेगा जब तक भारत इसे स्वीकार नहीं करता।

भारतीय प्रतिनिधियों ने स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि भारत इस संधि के मौजूदा मसौदे पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। भारत का मानना है कि परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने के लक्ष्य से वह पूरी तरह सहमत है किंतु इसे परमाणु हथियारों को समाप्त करने की प्रक्रिया से जोड़ा जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है जबकि परमाणु संपन्न राष्ट्र यह स्वीकार करें कि एक निश्चित अवधि के भीतर वे अपने परमाणु भंडारों को नष्ट कर देंगे।

भारत ने परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों विशेषकर अमेरिका की सामरिक नीति का अनुमान लगाते हुए भेदभाव से भरी इस संधि के प्रति अपना सख्त रवैया अपनाया। भारत ने स्पष्ट रूप से इस संधि में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया । इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है-

  • भारत को आशंका है कि परमाणु शक्तियां उसकी परमाणु हथियार क्षमता को रोकने के लिए इस संधि पर जोर दे रही है।
  • फ्रांस तथा चीन के द्वारा परमाणु परीक्षण जारी रखने का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि परमाणु संपन्न राष्ट्र नि:शस्त्रीकरण के संदर्भ में स्वयं गंभीर नहीं है।
  • परमाणु परीक्षण स्थगन का स्वयं पालन करने वाले भारत को इस संधि पर हस्ताक्षर करने का कोई लाभ नजर नहीं आ रहा।
  • परमाणु हथियारों को समयबद्ध कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्ण समाप्त करने की मांग को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों ने ठुकरा दिया।
  • भारत ने इस संधि के साथ यह जोड़े जाने पर बल दिया कि परमाणु आयुध संपन्न देश कितने वर्षों में पूरी तरह परमाणु हथियारों का परित्याग करेंगे।

निष्कर्ष ( Conclusion )

नि:शस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता है। अतः पहले नि:शस्त्रीकरण किया जाए या राजनीतिक समस्याओं का समाधान किया जाए। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने से इसलिए स्पष्ट इनकार किया है क्योंकि वह इसे पक्षपात पूर्ण मानता है। उसके अनुसार यह संधि समग्र परमाणु परीक्षण के लिए अपर्याप्त प्रावधानों वाली संधि है जिसे 5 परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को हथियार रखने तथा बनाने की छूट दी गई है।

यह भी पढ़ें –

FAQ Checklist

सीटीबीटी क्या है ?

CTBT -सीटीबीटी अथवा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध या निषेध संधि विश्व में परमाणु परीक्षणों विशेष रूप से परमाणु हथियार बनाने पर रोक लगाने के उद्देश्य से प्रस्तावित की गई है।

सीटीबीटी संधि कब अस्तित्व में आई ?

सीटीबीटी 1968 में अस्तित्व में आई तथा 1970 से प्रभावी हुई परमाणु अप्रसार संधि ( Nuclear Non-Proliferation Testy or NPT ) का ही अगला चरण है।

सीटीबीटी संधि में कौन से 5 राष्ट्रों को मान्यता प्रदान की गई है ?

इस वर्ग में 5 राष्ट्रों को मान्यता प्रदान की गई है, यह है- अमेरिका, रूस ,चीन ,फ्रांस तथा इंग्लैंड। एन.पी.टी द्वारा इन परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के लिए परमाणु हथियार रखने एवं परीक्षण करने का अधिकार दिया गया है।

भारत ने सीटीबीटी संधि को स्वीकार क्यों नहीं किया ?

सीटीबीटी संधि में 5 राष्ट्रों को मान्यता प्रदान की गई है, यह है- अमेरिका, रूस ,चीन ,फ्रांस तथा इंग्लैंड। लेकिन गैर परमाणु हथियार राष्ट्रों के परमाणु परीक्षण ना करने तथा परमाणु बम ना बनाने के वचनबद्ध होना अनिवार्य है। भारत ने इसी भेदभाव के कारण इसे स्वीकार नहीं किया है।

सी.टी.बी.टी का मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?

सी.टी.बी.टी का मुख्य उद्देश्य एन.पी.टी पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों को इस संधि में सम्मिलित करके उनके परमाणु हथियार बनाने के विकल्प को समाप्त कर देना है। ऐसे प्रमुख राष्ट्र हैं -भारत ,पाकिस्तान तथा इजराइल ।

भारत के सी.टी.बी.टी संधि में हस्ताक्षर न करने के तीन प्रमुख कारण बताओं।

1.भारत को आशंका है कि परमाणु शक्तियां उसकी परमाणु हथियार क्षमता को रोकने के लिए इस संधि पर जोर दे रही है।
2.फ्रांस तथा चीन के द्वारा परमाणु परीक्षण जारी रखने का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि परमाणु संपन्न राष्ट्र नि:शस्त्रीकरण के संदर्भ में स्वयं गंभीर नहीं है।
3.परमाणु परीक्षण स्थगन का स्वयं पालन करने वाले भारत को इस संधि पर हस्ताक्षर करने का कोई लाभ नजर नहीं आ रहा।

नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में कौन सी बाधाएं या कठिनाइयां हैं ?

नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएं, कठिनाइयां- 1 ) नि:शस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता है। अतः पहले नि:शस्त्रीकरण किया जाए या राजनीतिक समस्याओं का समाधान किया जाए। यह दोनों एक दूसरे के मार्ग में बाधा डालते हैं और एक के हल हो जाने पर दूसरे का हल हो जाना शुगम है। 2 ) आज विश्व में व्याप्त आतंकवाद नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। आतंकवादी आज शस्त्रास्त्र निर्माता देशों से आधुनिक शस्त्रास्त्र प्राप्त कर रहे हैं।

आतंकवाद नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा क्यों है ?

आज विश्व में व्याप्त आतंकवाद नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। आतंकवादी आज शस्त्रास्त्र निर्माता देशों से आधुनिक शस्त्रास्त्र प्राप्त कर रहे हैं। उनका सामना करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र को शस्त्रास्त्र की आवश्यकता होती है। जब तक आतंकवादियों को अधिक आधुनिक तकनीकी युक्त शस्त्र खुले बाजार में उपलब्ध होते रहेंगे तब तक नि:शस्त्रीकरण का कोई भी प्रयास किसी भी राष्ट्र के लिए आत्मघाती हो सकता है।

नि:शस्त्रीकरण से क्या तात्पर्य है ?

नि:शस्त्रीकरण से तात्पर्य है शस्त्रीकरण पर सीमा या नियंत्रण लगाना अथवा उनमें कटौती करना ।

नि:शस्त्रीकरण की मूल समस्या क्या हैं ?

नि:शस्त्रीकरण की मूल समस्या सभी देशों के शस्त्रों को अनुपातिक रूप से कम करना है। शस्त्रों की सीमा निर्धारण के समय प्रत्येक देश को दूसरे देश के प्रति आशंका रहती है कि शायद वह अपनी शक्ति को बढ़ाने तथा विरोधी पक्ष की शक्ति घटाने का प्रयत्न कर रहा है। प्राय नि:शस्त्रीकरण के प्रस्ताव भी एक पक्षीय होते हैं। ऐसे में अनुपातिक नि:शस्त्रीकरण की समस्या और भी कठिन हो जाती है।

राजनीतिक समस्यायें नि:शस्त्रीकरण के लिए बाधक कैसे हैं ?

नि:शस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता है। अतः पहले नि:शस्त्रीकरण किया जाए या राजनीतिक समस्याओं का समाधान किया जाए। यह दोनों एक दूसरे के मार्ग में बाधा डालते हैं और एक के हल हो जाने पर दूसरे का हल हो जाना शुगम है।

परमाणु शस्त्रों पर नियंत्रण के कौन से प्रयास किये गए हैं ?

अणु-अस्त्रों के विस्तार को रोकने, अंतरिक्ष और जलाशयों में अणु परीक्षणों पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने बहुत सराहनीय प्रयास किए हैं। इसी संदर्भ में 1963 में आंशिक परमाणु परीक्षक निषेध संधि और 1968 में परमाणु शस्त्र प्रसंग निषेध संधि पर राज्यों के हस्ताक्षर कराने में उसे बहुत सफलता प्राप्त हुई है।

और पढ़े –