Public Corporation Advantages and Disadvantages in Hindi सार्वजनिक निगम के लाभ-हानि | गुण-दोष – सार्वजनिक निगम एक निगमिक संस्था है जो विधानमंडल द्वारा स्थापित की गई है जिस के अधिकार और कार्यों का स्पष्ट रूप में वर्णन किया जाता है।
इसे वित्तीय स्वतंत्रता होती है और इसका किसी विशेष क्षेत्र अथवा विशेष रूप की व्यापारिक गतिविधियों पर स्पष्ट अधिकार होता है।
सार्वजनिक निगमों की स्थापना सबसे पहले पश्चिमी देशों में हुई थी। भारत में भी सार्वजनिक निगमों का काफी विकास हुआ है और देश के सर्वांगीण विकास में इनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत का खाद्य निगम ,रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, दामोदर घाटी निगम आदि सार्वजनिक निगम के महत्वपूर्ण उदाहरण है।
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सार्वजनिक निगम के लाभ ( Public Corporation Advantages in Hindi )
आधुनिक युग में औद्योगिक और व्यापारिक कार्यों के लिए सार्वजनिक निगमों का अनुभव काफी सफल रहा है क्योंकि इसमें कई गुण पाए जाते हैं। सार्वजनिक निगम के लाभ और गुण इस प्रकार हैं –
1 ) सार्वजनिक निगमों का सबसे पहला लाभ यह है कि निजी उद्योगों की तरह इसमें स्वायत्तता और लचीलापन की विशेषताएं विद्यमान होती है। अपने दैनिक कार्यों के लिए यह मंत्री के नियंत्रण से मुक्त होता है। वित्तीय क्षेत्र भी इसकी काफी स्वायत्तता होती है। संक्षेप में सार्वजनिक निगमों पर विभाग प्रणाली के विपरीत संसदीय नियंत्रण भी काफी कम मात्रा में पाया जाता है।
2 ) सार्वजनिक निगमों की स्थापना से विधानमंडल के कार्य का भार घटता है । प्रत्येक सार्वजनिक निगम की स्थापना विधानमंडल के पृथक कानून के अधीन की जाती है जिसके अनुसार निगम के उद्देश्य, शक्तियां ,कार्य व प्रबंधन व्यवस्था निर्धारित की जाती है।
इस कानून के बाद विधानमंडल सार्वजनिक निगम के लिए कोई नियम आदि नहीं बनाता अपितु शेष कार्य सार्वजनिक निगम के करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। इस तरह विधानमंडल का अमूल्य समय बच जाता है।
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3 ) सार्वजनिक निगमों के कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति और प्रशिक्षण के लिए प्रभावशाली विधि अपनाई जाती है जो कि व्यापारिक कार्यों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होते हैं।
4 ) इस प्रणाली के अधीन कर्मचारियों में अपने कार्यों के प्रति रुचि पाई जाती है क्योंकि अच्छे कार्य के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। इसके साथ सार्वजनिक निगम की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है जिससे लोगों की सेवा करने में सहायता मिलती है।
5 ) सरकार अपनी तकनीकी और व्यापारिक सेवाओं का प्रयोग सार्वजनिक निगमों द्वारा करती है। सार्वजनिक निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सदस्यों का चुनाव राजनीति के आधार पर नहीं अपितु योग्यता के आधार पर किया जाता है। इससे व्यापारिक क्रियाओं के संबंध में निर्णय कुशल व्यक्तियों द्वारा लिए जाते हैं जो कि निगम के लिए काफी गुणवान सिद्ध होते हैं।
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सार्वजनिक निगम के दोष ( Public Corporation Disadvantages in Hindi )
सार्वजनिक संगठन के अनेकों गुण होने के बावजूद इसमें कुछ अवगुण भी पाए जाते हैं । सार्वजनिक निगमों के दोष इस प्रकार हैं-
1 ) सार्वजनिक निगम अपने दैनिक कार्यों में चाहे काफी सीमा तक स्वतंत्र होते हैं परंतु नीति संबंधी मामलों में मंत्री का इन पर नियंत्रण बना रहता है। परंतु समस्या यह है कि आधुनिक समय में यह बताना मुश्किल हो जाता है कि नीति का मामला कौन सा है और दैनिक कौन सा है। इसके परिणाम स्वरूप या तो सार्वजनिक के कार्यों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा अथवा निगम की स्वायत्तता की सीमा निर्धारित सीमा को भी पार कर जाएगी।
2 ) सार्वजनिक निगमों का दूसरा नुकसान यह है कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में सरकार के प्रतिनिधि शामिल होते हैं जिसके कारण बोर्ड विभागीय प्रणाली की तरह काम करता है। कई बार तो मंत्रालय का सचिव ही सार्वजनिक निगम का चेयरमैन नियुक्त किया जाता है और वह अपने स्वभाव के कारण निगम को स्वायत्तता से काम करने की आज्ञा नहीं देता।
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3 ) सार्वजनिक निगम व्यवस्था को इसलिए अच्छा माना जाता है कि वह अपने कर्मचारियों की भर्ती ,प्रशिक्षण आदि का योग्य प्रबंध करता है परंतु वास्तव में कई सार्वजनिक निगमों ने तो अभी तक इस प्रणाली को अपनाया ही नहीं है जिस कारण इनकी प्रशासनिक स्वायत्तता समाप्त हो जाती है।
4 ) भिन्न-भिन्न मंत्रालयों के उच्च अधिकारियों पर एक तरफ सरकारी कार्य का भार होता है और दूसरी तरफ उन्हें किसी न किसी सार्वजनिक निगम का प्रधान बना दिया जाता है जिसके कारण काम का भार बहुत बढ़ जाता है और इस तरह ना तो अपने विभाग की तरफ पूरा ध्यान दे सकते हैं और ना ही सार्वजनिक निगम की तरफ।
इसके परिणामस्वरूप विभाग और सार्वजनिक निगम दोनों में अयोग्यता आ जाती है। इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारियों में व्यापारिक तकनीकी की कमी होती है जिसके साथ सार्वजनिक निगम को काफी क्षति उठानी पड़ती है। कई बार तो सरकारी कर्मचारी जो ना किसी सार्वजनिक निगम के सदस्य नियुक्त किए जाते हैं को जल्दी-जल्दी बदला जाता है। ऐसा करना ही सार्वजनिक निगम के व्यापारिक हितों के विपरीत है।
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FAQ Checklist
सार्वजनिक निगम के दोष बताओं।
सार्वजनिक निगम अपने दैनिक कार्यों में चाहे काफी सीमा तक स्वतंत्र होते हैं परंतु नीति संबंधी मामलों में मंत्री का इन पर नियंत्रण बना रहता है। परंतु समस्या यह है कि आधुनिक समय में यह बताना मुश्किल हो जाता है कि नीति का मामला कौन सा है और दैनिक कौन सा है।
सार्वजनिक निगम के फायदे क्या है ?
सार्वजनिक निगमों के कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति और प्रशिक्षण के लिए प्रभावशाली विधि अपनाई जाती है जो कि व्यापारिक कार्यों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होते हैं।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र क्या है?
सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन सरकार या अन्य राज्य द्वारा संचालित निकाय करते हैं। निजी क्षेत्र के संगठनों का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन व्यक्तियों, समूहों या व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा किया जाता है।
सार्वजनिक क्षेत्र का क्या कार्य है?
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास, तीव्र औद्योगिकरण और आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना का विकास करना है।
बोर्ड और निगम में क्या अंतर है?
विभागों को राजकीय संरक्षण हासिल होता है । इसके विपरीत निगम सरकारी स्वामित्व में होते हुए भी पृथक वैधानिक अस्तित्व रखते हैं । उन पर मुकदमा राज्य पर मुकदमा नहीं होता अपितु मात्र उस निगम पर ही होता है । विभाग द्वारा दायर मुकदमा सरकारी मुकदमा होता है, लेकिन निगम द्वारा दायर मुकदमा इस श्रेणी में नहीं आता ।