Department System Basis, problems, merits, demerits विभाग के आधार ,समस्याएं ,गुण -दोष

Department System : विभाग के आधार | समस्याएं | गुण | दोष

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Department System Basis, problems, merits, demerits विभाग के आधार ,समस्याएं ,गुण ,दोष – आधुनिक युग में राज्यों के कार्यों में बहुत बृद्धि हुई है तथा इन सारे कार्यों को पूर्ण करने के लिए कोई एक प्रकार की प्रशासकीय इकाई सफल नहीं हो सकती । यही कारण है कि सरकार को अनेकों कार्यों को उचित ढंग से करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रशासकीय इकाइयां स्थापित करनी पड़ती है।

परंतु किसी भी कार्य की सफलता उसके संगठन पर निर्भर करती है। अच्छे चयन का अर्थ है ,अच्छा मैनेजमेंट जिससे सही कार्य होता है। परंतु यदि संगठन का गलत चुनाव हो जाए तो उससे सेवाओं में अयोग्यता आ जाएगी तथा प्रबंध भी बिगड़ जाएगा। एक देश तथा दूसरे देश में एक उद्योग तथा दूसरे उद्योग में अपनाए गए संगठन के रूप में तथा कानूनी दर्जे में अंतर होता है।

विभाग ( Meaning of Department in Hindi ) – विभाग प्रशासन के कार्य की बुनियादी तथा सबसे पुराना रूप है तथा लगभग सभी देशों में इसका प्रयोग किया जाता है। अवस्थी महेश्वरी के अनुसार -विभाग प्रशासकीय इकाई की बुनियादी इकाई है जिस पर सरकारी क्रिया को पूरा करने का दायित्व होता है।

Table of Contents विषय सूची

विभागीय संगठन के आधार ( Basis of Organising a Department )

सरकार अपनी बहू-पक्षीय कार्यों की पूर्ति किसी एक विभाग के द्वारा नहीं बल्कि अनेक विभागों द्वारा करती है परंतु सारे विभागों को एक ही आधार पर संगठित नहीं किया जा सकता बल्कि प्रत्येक विभाग को संगठित करते समय कुछ सिद्धांतों या आधारों को ध्यान में रखना पड़ता है। साधारण तौर पर विभागों को संगठित करने के चार मुख्य आधार है जैसे कि-

लूथर गुलिक ने इनको चार P अर्थात उद्देश्य ,प्रक्रिया ,व्यक्ति तथा स्थान का नाम दिया है। विभागों के संगठन के लिए भिन्न-भिन्न आधारों तथा उनके लाभ तथा हानि का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

उद्देश्य या कार्य ( Purpose or Function )

विभागों के संगठन का बुनियादी तथा सबसे अधिक महत्वपूर्ण आधार उद्देश्य या कार्य को माना जाता है। इसका अर्थ है कि यदि प्रशासन के कार्य को उद्देश्य या कार्य के आधार पर संगठित किया जाए तो संगठन के प्रणाली को कार्यकारी कहा जाता है। अन्य शब्दों में विभागों के सभी अधीन प्रशासकीय इकाइयों में गुटबाजी की जाती है जो सांझे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्थापित की गई हो।

उदाहरण स्वरूप भारत में डाक ,तार विभाग ,सुरक्षा ,शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग आदि है जिनको सांझे उद्देश्यों की प्राप्ति के आधार पर संगठित किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कमीशन तथा ब्रिटानिया की हालदेन कमेटी ने भी विभागीय प्रणाली के गुणों के कारण इसकी स्थापना के लिए समर्थन किया है।

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विभाग के कार्य -उद्देश्य के आधार के निम्नलिखित गुण हैं ( The basis of the work-objective of the department are the following properties )

  • उद्देश्य के आधार अनुसार एक विभाग अंदर लगे कर्मचारी का एक मुखिया के अधीन होते हैं। वह सारे एक टीम के रूप में मिलजुल कर काम करते हैं क्योंकि उन सभी का महत्व सांझा होता है। इस तरह काम ठीक प्रकार से हो जाता है तथा पैसों की भी बचत होती है।
  • इस सिद्धांत का एक अन्य लाभ यह है कि लोकतंत्र प्रणाली के अनुकूल है। किसी विभाग की सफलता या असफलता की स्थिति में संबंधित व्यक्तियों की जिम्मेवारी निश्चित की जाती है। उदाहरण स्वरूप यदि देश की आंतरिक स्थिति बिगड़ जाती है तो वह गृह मंत्रालय इस बिगड़ी हुई स्थिति के लिए उत्तरदाई ठहराया जाता है।
  • एक विभाग अधीन होते हुए भी उसकी भिन्न-भिन्न प्रशासकीय इकाइयां निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार होता है। इससे काम में दोहरापन होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
  • इससे कर्मचारियों में अनुशासन की भावना बनी रहती है क्योंकि वह सारे एक मुखिया के अधीन होते हैं तथा उसके ही आदेशों की पालन करते हैं।
  • उद्देश्य आधार का एक और बड़ा लाभ यह है कि कर्मचारियों में विशेष काम करने से ज्ञान का विकास होता है। इसके अतिरिक्त एक ही काम को बराबर करने से कर्मचारियों की निपुणता में भी वृद्धि होती है।

विभाग के कार्य -उद्देश्य के आधार के निम्नलिखित दोष हैं ( The basis of the work-objective of the department are the following disadvantage )

  • उद्देश्य के आधार पर संगठित विभाग का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह श्रम विभाजन तथा कार्यों के विशेषीकरण सिद्धांत के अनुकूल नहीं होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विभाग अपनी अलग कीमती मशीनों का प्रयोग भी नहीं कर सकता।
  • उद्देश्य या कार्य शब्द की धारणा बड़ी लचकीली है जिसका प्रयोग व्यापारिक तथा सीमित दोनों रूपों में की जा सकती है। उदाहरणस्वरूप यदि शिक्षा को सीमित रूप में प्रयोग किया जाए तो प्राइमरी कॉलेज या उच्च शिक्षा ,तकनीकी शिक्षा ,खेलो आदि सारे अलग-अलग कार्य माने जाएंगे तथा इन सभी के लिए अलग-थलग विभाग स्थापित करने पड़ेंगे।
  • इस सिद्धांत का एक और दोष या है कि अधिवेशन को निश्चित मुख्य उद्देश्यों के अनुसार बांटना संभव नहीं होता उदाहरणस्वरूप शिक्षा विभाग का काम बच्चों को केवल शिक्षा देना ही नहीं बल्कि उनकी तरफ ध्यान आरंभ से देना भी इसका ही कर्तव्य होता है।

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प्रक्रिया ( Process )

प्रक्रिया सिद्धांत के अनुसार विभागीय संगठन एक ऐसी तकनीक या हुनर हैं जो लगभग विशेष श्रम प्रकार की हो। इस तरह यदि कोई विभाग किसी विशेष तकनीकी या हुनर के आधार पर संगठित किया गया हो तो उसको प्रक्रिया आधार वाला विभाग कहा जाता है।

भारत में चाहे प्रक्रिया के आधार पर संगठित विभागों की संख्या बहुत कम है परंतु फिर भी प्रशासन में इनकी बहुत ही महत्व पाई जाती है। जो विभाग इस आधार पर संगठित किए जाते हैं वह एक-एक विभाग को आगे कई विभागों की सेवा करता है जैसे कि ऑडिट विभाग का कार्य सारे सरकारी विभागों के हिसाब किताब की पड़ताल करना है।

प्रक्रिया सिद्धांत के गुणों का वर्णन निम्नलिखित है ( The merits of the process theory are described below )

  • प्रक्रिया आधार पर संगठित होने वाले विभाग तथा उसकी इकाइयों पर होने वाले खर्चे का हिसाब किताब लाना सरल हो जाता है। इस तरह बजट तैयार करना, लेखा तैयार करना आदि के लिए आवश्यक डाटा आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  • प्रक्रिया सिद्धांत के प्रयोग से प्रशासन में तालमेल पैदा करना काफी सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त विभागों द्वारा की गई कार्यवाइयों में समानता तथा एक सारता भी लाई जा सकती है।
  • प्रक्रिया सिद्धांत का एक और बड़ा गुण यह है कि इन विभागों को तकनीकी आधार पर संगठित करने के कारण पैसे की बचत होती है तथा प्रशासन में कार्यकुशलता भी बढ़ती है।
  • प्रक्रिया सिद्धांत गुण यह हैं कि ऐसे विभागों में विशेषीकरण के लक्षण पाए जाते हैं तथा किसी काम को बार-बार करने से कर्मचारियों में अधिक निपुणता आती है जैसे डॉक्टर, इंजीनियर लगातार एक ही प्रकार के काम करते रहने के कारण उनके विशेषीकरण में वृद्धि होती है।

प्रक्रिया सिद्धांत के दोषों का वर्णन निम्नलिखित है ( Following are the demerits of process theory: )

  • प्रक्रिया आधार पर संगठित विभागों के अंदर अक्सर तालमेल की कमी होती है। प्रत्येक प्रक्रिया विभागों में किसी तरह की असफलता या देरी का बुरा प्रभाव सारे विभागों पर पड़ना स्वाभाविक होता है।
  • प्रक्रिया प्रणाली के आधार पर संगठित विभागों में काम कर रहे कर्मचारियों में अपने व्यवसाय के विशेषज्ञ होने का अहंकार पैदा हो जाता है।
  • यह प्रणाली लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं होती क्योंकि असफलता की सूरत में कोई भी विभाग उसकी जिम्मेदारी अपने सिर पर लेने के स्थान पर दूसरे विभागों पर डालने की कोशिश करता है।
  • प्रक्रिया सिद्धांत पर आधारित विभागों के अंदर उद्देश्य के मुकाबले काम करने के साधन पर अधिक जोर दिया जाता है।

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इच्छुक व्यक्ति ( Clientele )

इच्छुक व्यक्ति का सिद्धांत विभागों को संगठित करने का एक और महत्वपूर्ण आधार है। इसके अनुसार यदि किसी विशेष वर्ग या श्रेणी के लोगों की भलाई के लिए कोई विभाग स्थापित किया जाता है तो उसको व्यक्ति या सेवा प्राप्त वर्ग का आधार कहा जाता है।

भारत जैसे विशाल देश में कई ऐसे सामाजिक समूह पाए जाते हैं जिनकी समस्याओं के हल के लिए प्रशासन को विशेष ध्यान देना पड़ता है। इस तरह अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के कल्याण के लिए विभाग , बच्चों की भलाई के लिए विभाग , साधारण तौर पर खोले गए हैं।

इच्छुक व्यक्ति विभाग के गुण निम्नलिखित हैं ( Following are the merits of the interested person department )

  • इस सिद्धांत का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाज के संबंधित वर्ग के लोगों तथा प्रशासन में संबंध कायम होने में सरलता आ जाता है। उदाहरणस्वरूप शरणार्थियों को सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता लेने के लिए इधर-उधर घूमने की स्थान पर भारत के पुनर्वास विभाग के साथ संपर्क कायम करना पड़ेगा।
  • सेवा प्राप्त वर्ग सिद्धांत के अधीन विभागीय संगठन का उद्देश्य या कार्य बड़ा स्पष्ट होता है। विभाग का उद्देश्य समाज के केवल 1 वर्ग तक ही सीमित होता है इसलिए उस वर्ग के लोगों के लिए आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए हर संभव यत्न करता है।
  • संगठन के इस सिद्धांत के अनुसार कर्मचारियों में विशेष वर्ग के लोगों की समस्या समझने में सरल होती है तथा इसलिए वह उनका उचित हल ढूंढने में सफल सिद्ध होते हैं।
  • इस सिद्धांत के अनुसार जो दबाव समूह किसे विभाग से लाभ उठाते हैं वह उनका समर्थन प्राप्त करने में सफल होते हैं।

इच्छुक व्यक्ति विभाग के दोष निम्नलिखित हैं ( Following are the demerits of interested person department )

  • प्रत्येक समाज में तथा विशेष तौर पर भारत जैसे राज्य में अनेकों व्यक्तियों के समूह पाए जाते हैं। यदि विभागों की स्थापना इस आधार पर की जाए तो अनेकों छोटे-छोटे विभाग स्थापित करने पड़ेंगे। इससे ना केवल प्रशासन जटिल बन जाएगा बल्कि सारे विभाग में तालमेल कायम करना भी काफी कठिन हो जाएगा।
  • इस आधार का एक और दोष यह है कि इच्छुक व्यक्ति सरकार से अपनी मांगे मनवाने के लिए अपने दबाव समूह कायम कर लेते हैं तथा उनके द्वारा फिर सरकार की तरफ से नाजायज मांगे मनवाने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
  • इस सिद्धांत का एक और बड़ा दोष या है कि विभाग का अधिकार क्षेत्र निश्चित करना बड़ा कठिन होता है क्योंकि सुधारण तौर पर इच्छुक व्यक्तियों के हित समाज के दूसरे वर्गों के साथ बिल्कुल अलग होते हैं।
  • इस सिद्धांत के विरुद्ध यह दलील दी जाती है कि ऐसे विभाग विशेष वर्ग के लोगों के लिए अनेकों काम करते हैं जिससे कर्मचारियों में निपुणता की कमी हमेशा पाई जाती है।

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स्थान या क्षेत्र ( Place or Territory )

यदि प्रशासकीय कार्यों को स्थान या क्षेत्र के आधार पर संगठित किया जाए तो इसको क्षेत्रीय या स्थान का आधार कहा जाता है। संसार के लगभग प्रत्येक देश में कई विभागों का संगठन इस आधार पर क्रिया करता है जैसे कि भारत में दूसरे देशों से संबंध कायम करने के लिए विदेशी मामलों का मंत्रालय स्थापित किया गया है।

स्थान या क्षेत्र आधार पर विभाग के गुण निम्नलिखित हैं ( The following are the merits of the department on the basis of location or area )

  • इस प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जहां एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी काफी ज्यादा हो तथा संचार में बाधाएं भी हो तो विभाग इस आधार पर संगठित करना जरूरी हो जाता है। उदाहरणस्वरूप 1947 में भारत की स्वतंत्रता से पहले इंग्लैंड का इंडिया ऑफिस इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
  • इसका एक और गुण यह है कि संबंधित क्षेत्र के लोग अपनी कमियों तथा उनके योग्य हल के बारे अधिकारियों से बड़े खुलकर विचार प्रकट कर सकते हैं।
  • इस सिद्धांत का एक गुण यह भी है कि विशेष क्षेत्र की समस्याओं के उचित हल ढूंढने के लिए तालमेल तथा नियंत्रण रखना सरल हो जाता है।

स्थान या क्षेत्र आधार पर विभाग के दोष निम्नलिखित हैं ( The following are the defects of the department on the basis of place or area )

  • इसे क्षेत्रवाद को प्रोत्साहन मिलता है जो कि भारत जैसे देश की एकता तथा अखंडता के लिए काफी हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
  • स्थान या क्षेत्र के आधार पर संगठित विभागों को कोई विशेष कार्य के स्थान के लिए कई कार्य करने होते हैं जिससे उन्हें विशेष ई करण के गुण पैदा नहीं किए जा सकते ।

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संगठन की समस्याओं का हल करने के लिए प्रचलित दृष्टिकोण (Prevailing approach to solving organization problems )

संगठन की समस्या का अध्ययन करने के लिए निम्नलिखित दृष्टिकोण प्रचलित है जो कि इस प्रकार है-

यांत्रिक दृष्टिकोण ( Mechanistic Approach )

संगठन की समस्या का यांत्रिक दृष्टिकोण का मुख्य समर्थक उरविक था। उसने अपनी पुस्तक प्रशासन के तत्व में इस दृष्टिकोण की तुलना एक मोटर कार बनाने और उसे चलाने के साथ की है। उन्होंने मशीन डिजाइन करने की प्रक्रिया को संगठन का नाम दिया है।

दूसरे शब्दों में संगठन का अर्थ उन क्रियाओं को निर्धारण करना है जो किसी भी कार्य अथवा योजना के लिए आवश्यक हो और इस तरह उन्हें ऐसे वर्गों में श्रेणीबद्ध करना है जो कि विभिन्न व्यक्तियों को सौंपी जा सके।

यांत्रिक दृष्टिकोण के अनुसार संगठन वास्तव में औपचारिक डिजाइन है। इस संबंधी यह कहा जा सकता है कि जैसे कोई आर्किटेक्ट भवन कला के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए किसी भवन निर्माण की योजना बनाता है ठीक उसी तरह विशेषज्ञ व्यक्ति योजना निर्माण करने के लिए कुछ निर्धारित सिद्धांतों की सहायता लेता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में इस दृष्टिकोण को इंजीनियरिंग दृष्टिकोण के नाम से पुकारा जाता है और इसी कारण वहां संगठन डिजाइन करने के लिए संगठन इंजीनियरिंग के नाम के अधीन पृथक व्यवसाय आरंभ किया गया है।

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मानवीय संबंध दृष्टिकोण ( Human Relations Approach )

एल्टन मायो ( Elton Mayo ) ने संगठन संबंधी अपना मानवीय संबंध दृष्टिकोण पेश किया है जिसे गैर औपचारिक ,मनोवैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टिकोण के नाम से पुकारा जाता है। 1924 से 1927 तक एल्टन मायो और उसके साथियों ने मानवीय संबंध दृष्टिकोण तीन स्तरों में अध्ययन किया। उसे हार्थोंन अध्ययन भी कहा जाता है।

इस अध्ययन में श्रमिक लड़कियों के काम करने के घंटे काम करने के साथ-साथ काम करने के दिन भी काम किए गए। श्रमिकों को आराम मिलने के साथ उपज में चाहे वृद्धि हुई, परन्तु वेतन में वृद्धि के साथ उपज और भी अधिक बड़ी।

अन्य शब्दों में संगठन के कर्मचारियों में व्यक्तिगत प्रवृत्तियों ,रुचियों, पसंद-नापसंद ,भावनाओं ,पक्षपात आदि लक्षण पाए जाते हैं। काम में लगे हुए कर्मचारी वर्ग का आपसी संबंध ही गैर औपचारिक संगठन है जो कि उन्हें मानवीय सम्मान ,मानवीय प्राप्ति, सुरक्षा और एक अच्छा जीवन बिताने की भावना पैदा करता है।

एल्टन मायो का मानवीय संबंधी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है । इसलिए उसके व्यवहार और चाल चलन संबंधी जानकारी उसके नजदीकी सहयोगियों से ही प्राप्त की जा सकती है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कर्मचारियों में काम की निपुणता बढ़ाने के लिए केवल अच्छे वेतन का होना आवश्यक नहीं है अपितु कर्मचारियों में परस्पर सामाजिक भावना ,सांस्कृतिक एकरूपता और हमदर्दी ऐसे तत्व होते हैं जो किसी भी संगठन की निपुणता को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि कर्मचारियों और प्रबंध में परस्पर संबंध सचमुच संगठन के कार्य प्रणाली को निपुण बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं।

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निष्कर्ष ( Conclusion )

विभागीय संगठन के अलग-अलग आधारों पर अध्ययन से यह कहा जा सकता है कि इनमें से किसी भी आधार को पूर्ण नहीं माना जा सकता क्योंकि प्रत्येक आधार के अपने-अपने लाभ तथा हानि है। परंतु फिर भी यह कहा जा सकता है कि यदि विभाग की स्थापना किसी मनोरथ की प्राप्ति के लिए की जानी है तो प्रक्रिया के आधार पर बिल्कुल उचित होगा।

यदि उद्देश्य तकनीकी कर्मचारी की कार्यकुशलता बढ़ानी हो तथा प्रशासन में बचत करनी हो तो प्रक्रिया आधार अधिक उचित सिद्ध सिद्ध होगा। इस तरह यदि किसी खास वर्ग के लोगों की समस्याओं का उचित हल ढूंढना हो तो इच्छुक व्यक्ति का आधार अपनाना अधिक बेहतर होगा। यदि एक स्थान या दूसरे में दूरी अधिक हो तथा संचार के साधनों में भी कमी हो तो स्थान या क्षेत्र का आधार अधिक सफल सिद्ध हो सकता है।

FAQ Checklist

संगठन संबंधी मानवीय संबंध दृष्टिकोण क्या हैं ?

एल्टन मायो ( Elton Mayo ) ने संगठन संबंधी अपना मानवीय संबंध दृष्टिकोण पेश किया है जिसे गैर औपचारिक ,मनोवैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टिकोण के नाम से पुकारा जाता है। 1924 से 1927 तक एल्टन मायो और उसके साथियों ने मानवीय संबंध दृष्टिकोण तीन स्तरों में अध्ययन किया। उसे हार्थोंन अध्ययन भी कहा जाता है।

संगठन की समस्या का यांत्रिक दृष्टिकोण क्या हैं ?

संगठन की समस्या का यांत्रिक दृष्टिकोण का मुख्य समर्थक उरविक था। उसने अपनी पुस्तक प्रशासन के तत्व में इस दृष्टिकोण की तुलना एक मोटर कार बनाने और उसे चलाने के साथ की है। उन्होंने मशीन डिजाइन करने की प्रक्रिया को संगठन का नाम दिया है।

एल्टन मायो का मानवीय संबंधी दृष्टिकोण किस बात पर बल देता हैं ?

एल्टन मायो का मानवीय संबंधी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है । इसलिए उसके व्यवहार और चाल चलन संबंधी जानकारी उसके नजदीकी सहयोगियों से ही प्राप्त की जा सकती है।

संगठन की समस्याओं का हल करने के लिए प्रचलित दृष्टिकोण कौन सा हैं ?

संगठन की समस्याओं का हल करने के लिए प्रचलित दृष्टिकोण- मानवीय संबंधी दृष्टिकोण और यांत्रिक दृष्टिकोण हैं।

विभागीय संगठन के आधार कौन से हैं ?

विभागों के संगठन के लिए भिन्न-भिन्न आधार -उद्देश्य या कार्य , इच्छुक व्यक्ति , प्रक्रिया , स्थान या क्षेत्र।

विभाग के आधार का उद्देश्य या कार्य बताओं।

विभागों के संगठन का बुनियादी तथा सबसे अधिक महत्वपूर्ण आधार उद्देश्य या कार्य को माना जाता है। इसका अर्थ है कि यदि प्रशासन के कार्य को उद्देश्य या कार्य के आधार पर संगठित किया जाए तो संगठन के प्रणाली को कार्यकारी कहा जाता है। अन्य शब्दों में विभागों के सभी अधीन प्रशासकीय इकाइयों में गुटबाजी की जाती है जो सांझे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्थापित की गई हो।

विभाग का प्रक्रिया सिद्धांत क्या हैं ?

प्रक्रिया सिद्धांत के अनुसार विभागीय संगठन एक ऐसी तकनीक या हुनर हैं जो लगभग विशेष श्रम प्रकार की हो। इस तरह यदि कोई विभाग किसी विशेष तकनीकी या हुनर के आधार पर संगठित किया गया हो तो उसको प्रक्रिया आधार वाला विभाग कहा जाता है।

विभाग का इच्छुक व्यक्ति का सिद्धांत क्या हैं ?

इच्छुक व्यक्ति का सिद्धांत विभागों को संगठित करने का एक और महत्वपूर्ण आधार है। इसके अनुसार यदि किसी विशेष वर्ग या श्रेणी के लोगों की भलाई के लिए कोई विभाग स्थापित किया जाता है तो उसको व्यक्ति या सेवा प्राप्त वर्ग का आधार कहा जाता है।

विभाग का क्षेत्रीय या स्थान का आधार क्या है ?

यदि प्रशासकीय कार्यों को स्थान या क्षेत्र के आधार पर संगठित किया जाए तो इसको क्षेत्रीय या स्थान का आधार कहा जाता है। संसार के लगभग प्रत्येक देश में कई विभागों का संगठन इस आधार पर क्रिया करता है जैसे कि भारत में दूसरे देशों से संबंध कायम करने के लिए विदेशी मामलों का मंत्रालय स्थापित किया गया है।

प्रक्रिया सिद्धांत के गुण बताओं।

प्रक्रिया सिद्धांत गुण यह हैं कि ऐसे विभागों में विशेषीकरण के लक्षण पाए जाते हैं तथा किसी काम को बार-बार करने से कर्मचारियों में अधिक निपुणता आती है जैसे डॉक्टर, इंजीनियर लगातार एक ही प्रकार के काम करते रहने के कारण उनके विशेषीकरण में वृद्धि होती है।

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