Marxism Main Elements and Principles in Hindi , Marxwad ke mukhy tatv , Marxwad Ke Sidhant , Marxwad ka arth मार्क्सवाद के मुख्य तत्व और सिद्धांत -आधुनिक समाजवाद या साम्यवाद का जन्मदाता जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स को कहा जाता है। कार्ल मार्क्स ही पहला दार्शनिक था जिसने यह बताया कि पूंजीवाद का अंत और साम्यवाद की स्थापना अवश्यंभावी है।
मार्क्स ने सैद्धांतिक आधार पर ही साम्यवाद को न्याय संगत ही नहीं बताया बल्कि यह सिद्ध किया कि सामाजिक विकास के सिद्धांत के अनुसार साम्यवाद की स्थापना अनिवार्य है।
Table of Contents विषय सूची
मार्क्सवाद के मुख्य तत्व और सिद्धान्त ( Main Elements or Principles of Marxism in Hindi )
उसने हीगल के द्वंदवाद , फ्रायड के भौतिकवाद ,फ्रांस के काल्पिक समाजवाद और इंग्लैंड के क्लासिकल अर्थशास्त्र को समन्वित कर वैज्ञानिक समाजवाद का रूप प्रस्तुत किया है। उसके सिद्धांत के तत्व निम्नलिखित हैं –
द्वंदात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialism Meaning in Hindi )
द्वंदात्मक भौतिकवाद मार्क्सवाद ( Marxism ) का एक प्रमुख सिद्धांत है । इसके द्वारा कार्ल मार्क्स ने समाज के विकास के नियमों को खोजने का प्रयास किया है। यह सिद्धांत उसने जर्मन के दार्शनिक हीगल से प्राप्त किया था। हीगल के अनुसार संसार में संपूर्ण विकास का कारण विरोधी का संघर्ष है। दूसरे शब्दों में इस संसार में जो कुछ विकास हुआ है या होता है वह परस्पर विरोधी क्रियाओं के आधार पर होता है।
इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी समय की मौजूदा स्थिति को वाद कहा जाता है। इस मौजूदा स्थिति में कुछ बातें अच्छी होती है और कुछ बुरी होती है। जो बातें बुरी होती है लोग उनका विरोध करते हैं। लेकिन इस विरोध में विरोध करने वाले एक तरफा नजरिया अपना लेते हैं इसी को दार्शनिक भाषा में प्रतिवाद कहा जाता है।
फिर इन दोनों की आपसी टकराव से एक नई स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें वाद और प्रतिवाद दोनों की अच्छी बातों या तत्वों को ले लिया जाता है और बुरी या निरूपयोगी तत्वों को छोड़ दिया जाता है। इसी को समवाद कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी स्थिति में परिवर्तन होने के बीज उसके अंदर ही छिपे रहते हैं।
हीगल के द्वंद को मार्क्स स्वीकार करता है परंतु उसका विचार है कि इस सामाजिक विकास की संचालन शक्ति में विचार नहीं अपितु पदार्थ है। मार्क्स का विचार है कि भौतिक पदार्थ ही संसार का आधार है।
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ऐतिहासिक भौतिकवाद ( Meaning of Historical Materialism in Hindi )
कार्ल मार्क्स ने साम्यवादी विचारधारा को जिन सिद्धांतों के द्वारा प्रतिपादन किया है उनमें से एक है इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या । अपनी पुस्तक दास कैपिटल में मार्क्स ने इसका वर्णन किया है। असल में द्वंदात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत को सामाजिक विकास के बारे में प्रयुक्त करना इतिहास की आर्थिक व्याख्या है। इसे ऐतिहासिक भौतिकवाद अथवा इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या भी कहा जाता है ।
कार्ल मार्क्स की मान्यता है कि इतिहास की प्रत्येक घटना का निर्धारण आर्थिक शक्तियों के द्वारा ही होता है। इतिहास के समस्त परिवर्तन आर्थिक शक्तियों के फलस्वरुप होते हैं ,इसे ही आर्थिक नियतिवाद भी कहते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर कार्ल मार्क्स ने कहा है कि आज तक मानव जाति का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।
कार्ल मार्क्स उन इतिहासकारों से असहमत है जिन्होंने इतिहास को कुछ विशेष और महान व्यक्तियों के कार्यों का परिणाम मात्र समझा है। उसकी मान्यता है कि इतिहास के किसी भी राजनीतिक संगठन अथवा उसके न्याय व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसके आर्थिक ढांचे का ज्ञान जरूरी है।
उसका कहना है कि अगर आर्थिक शक्ति पर सामंतों वका नियंत्रण होगा तो शिक्षा ,धर्म ,राजनीति आदि पर भी उन्हीं का प्रभुत्व होगा। इसी तरह अगर आर्थिक शक्ति पूंजीपतियों के हाथों में होगी तो राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर भी उन्हीं का अधिकार हो जाएगा। जब आर्थिक साधन मजदूरों ,किसानों और आम जनता के हाथ में आ जाते हैं तब शिक्षा, न्याय और कानून आदि की धारनाएँ निश्चित रूप से परिवर्तित हो जाती है।
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कार्ल मार्क्स ने अपनी आर्थिक व्याख्या के आधार पर अब तक की मानवीय इतिहास की 6 अवस्थाएं बताएं हैं –
आदिम सम्यवादी युग ( what is Primitive Communist Stage in Hindi )
यह सामाजिक विकास की पहली अवस्था थी। इसमें उत्पादन के साधन तथा तकनीक बहुत सरल थी । उत्पादन के साधन पत्थर के औजार तथा धनुष बाण थे। मनुष्य झुंड में रहते थे और प्रकृति से मिली वस्तुओं पर सभी का सामूहिक अधिकार था। व्यक्तिगत संपत्ति व परिवार की व्यवस्था के अभाव में शोषण की स्थिति नहीं थी। इसलिए मार्क्स इस युग को आदिम साम्यवादी युग कहकर पुकारता है।
दासत्व युग ( Age of Slavery in Hindi )
आर्थिक भौतिक परिस्थितियों में परिवर्तन होने से व्यक्ति कृषि कार्य करने लगा और पशु पालने लगा। वैवाहिक संबंध कायम होने लगे । परिवार और व्यक्तिगत संपत्ति का उदय हो गया। इस युग में कुछ लोग खेतों और पशुओं के स्वामी बन गए और उन्होंने कुछ लोगों को दास बनाकर उनसे अपने खेतों पर काम लेना शुरू कर दिया।
आदिम साम्यवादी युग की समानता और स्वतंत्रता नष्ट हो गई और आर्थिक हितों के टकराव के कारण वर्ग संघर्ष शुरू हो गया क्योंकि इस युग में समाज दो परस्पर विरोधी आर्थिक गुटों में विभक्त हो गया था।
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सामंतवादी युग ( Age of Feudalism in Hindi )
भौतिक साधनों में पुनः परिवर्तन हुआ । उत्पादन के साधनों की उन्नति हुई तथा दस्तकारियों का भी विकास हुआ । उत्पादन का मुख्य साधन भूमि थी और इस पर जिस वर्ग का अधिकार था वह सामंत वर्ग कहलाया । सामंतों के स्वामित्व वाली भूमि पर जिन भूमिहीन वर्ग के लोगों ने श्रम किया वह किसान वर्ग कहलाया। इनकी स्थिति इस युग में भी दासों के समान ही थी। इन दोनों के वर्गीय हित एक-दूसरे के विरुद्ध थे अतः उन में वर्ग संघर्ष था।
पूंजीवादी युग ( Age of Capitalism in Hindi )
18वीं सदी में औधोगिक क्रान्ति हुई और मशीनी युग का आरंभ हुआ । उत्पादन की मात्रा बढ़ी, वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ और बड़े-बड़े कारखाने तथा मिले कायम हुई। इस औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप पूंजीपतियों के नए वर्ग का उदय हुआ और बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले कारखानों पर पूंजीपतियों का अधिकार हो गया।
फलस्वरूप सामंतवादी वर्ग का प्रभाव घटने लगा और राज्य पर पूंजीपतियों का प्रभाव कायम हो गया। मशीनीकरण से मजदूरों की हस्तकला का धंधा नष्ट हो गया। इससे उनकी स्थिति बिगड़ने लगी और जीवित रहने के लिए वे पूंजीपतियों के हाथों में अपना श्रम कम कीमत पर बेचने पर मजबूर हो गए । इन दोनों वर्गों की हित एक दूसरे के विरोध होते हैं अतः उन्हें वर्ग संघर्ष भी होता है।
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सर्वहारा वर्ग की तानाशाही ( Dictatorship of the Proletariat in Hindi )
पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों के शोषण से उन्हें संगठित होने की प्रेरणा मिलती है। श्रमिक वर्ग संगठित होकर पूंजीवादी जुए को उतार फेंकने हेतु सशस्त्र क्रांति करेगा और पूंजीपतियों के राज्य को समाप्त कर सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद स्थापित करेगा। पुर्व सोवियत रूस और साम्यवादी चीन इसके प्रमुख उदाहरण है।
साम्यवादी युग ( Communist Age in Hindi )
मार्क्स ने भविष्यवाणी की थी कि अंतिम युग साम्यवादी युग होगा जिसमें वर्ग संघर्ष ना रहेगा क्योंकि पूंजीवाद पहले युग में समाप्त हो चुका होगा और इसलिए केवल एक श्रमिक वर्ग बचा होगा। इसमें वर्ग विहीन और राज्य विहीन समाज स्थापित होगा। इस अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करेगा और प्रत्येक को उसकी आवश्यकता के अनुसार मिलेगा।
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वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त ( Principle of Class Struggle in Hindi )
कार्ल मार्क्स ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में कहा है कि मानव जाति का आज तक का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है । वास्तव में इतिहास का निर्माण करने वाले सामाजिक आंदोलन ही वर्ग आंदोलन रही है। देश में आर्थिक एवं सामाजिक शक्ति के लिए हमेशा आंदोलन होते रहे हैं वर्तमान समय में भी वर्गों का विरोध है।
पूंजीपति एवं श्रमिक वर्ग अपने-अपने हितों के लिए संघर्ष करते रहते हैं । यद्यपि दोनों ही एक दूसरे के लिए जरूरी है। अगर श्रमिक वर्ग कार्य न करें तो पूंजीपतियों की फैक्टरियां बंद हो जाएंगी और अगर पूंजीपति उन्हें अपने कारखानों में कार्य ना दे तो श्रमिक वर्ग भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा। इसके बावजूद भी संघर्ष जारी है।
अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत ( Theory of Surplus Value in Hindi )
कार्ल मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत ही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा वह यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि पूंजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों का शोषण किया जाता है। अपने इस सिद्धांत का विवेचन उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दास कैपिटल में किया है।
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पूंजीवाद का स्वयं नाश ( Self Destruction of Capitalism )
मार्क्स का विचार है कि पूंजीवादी प्रणाली में ही इसके विनाश का बीज विद्यमान है। पूंजीवादी प्रणाली स्वयं मजदूरों का विस्तार करती है जो इसके विनाश का कारण बनती है। यह एक मान्य सिद्धांत है कि जैसे-जैसे पूंजीवाद का विस्तार होगा वैसे वैसे श्रमिकों की श्रेणी में वृद्धि होगी और उनमें एकता की भावना भी विकसित होगी।
मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद के विकास के कारण धनी दिन प्रतिदिन अधिक धनी होते जा रहे हैं और गरीब अधिक गरीब होते जा रहे हैं। धीरे धीरे पूंजीपतियों का धन बढ़ रहा है परंतु उनकी संख्या कम होती जा रही है अर्थात धन थोड़े से व्यक्ति के हाथों में केंद्रित होती जा रही है जिसके कारण बहुत से लोग श्रमिक वर्ग में शामिल होते जा रहे हैं।
इस तरह मजदूरों में एकता की भावना उत्पन्न होती है और अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए मजदूर संघ का निर्माण करती है। पूंजीपति लोग अपने माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए यातायात के साधनों में वृद्धि करते हैं।
यातायात के साधनों में वृद्धि होने के कारण मजदूर भी आपस में मिलते जुलते रहते हैं जिससे उनके संबंध दूसरे राज्यों तक फैल जाते हैं जो मजदूर संगठनों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित होने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। मजदूरों में वर्ग चेतना उत्पन्न होती है और मजदूर वर्ग की शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है।
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वर्ग विहीन समाज का उदय ( Emergence of Classless Society )
मार्क्स का विश्वास था कि मेहनतकश जनता की क्रांति के बाद जब सर्वहारा वर्ग की तानाशाही व्यवस्था में पूंजीपति वर्ग का पूरी तरह विनाश हो जाएगा तब संपूर्ण समाज एक ही वर्ग का होगा। सभी मजदूर होंगे और उन्हें कोई भेद नहीं होगा। अतः शोषक और शोषित का भेद मिट जाने पर राज्य नामक संस्था उसी तरह लुप्त हो जाएगी जिस तरह फूल की पंखुड़ियां अपने पूर्ण विकास के बाद अपने आप पौधे से गिर जाती हैं ।
साम्यवादी कहते हैं कि जब समाज के सभी लोग एक ही स्तर पर आ जाएंगे तो प्रत्येक व्यक्ति संपूर्ण समाज के लिए सर्वाधिक कार्य करेगा और बदले में अपनी संपूर्ण आवश्यकताओं की स्वतंत्रता पूर्वक आपूर्ति करेगा।
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FAQ Checklist
द्वंदात्मक भौतिकवाद से क्या अभिप्राय हैं ?
द्वंदात्मक भौतिकवाद मार्क्सवाद का एक प्रमुख सिद्धांत है । इसके द्वारा कार्ल मार्क्स ने समाज के विकास के नियमों को खोजने का प्रयास किया है। यह सिद्धांत उसने जर्मन के दार्शनिक हीगल से प्राप्त किया था। हीगल के अनुसार संसार में संपूर्ण विकास का कारण विरोधी का संघर्ष है। दूसरे शब्दों में इस संसार में जो कुछ विकास हुआ है या होता है वह परस्पर विरोधी क्रियाओं के आधार पर होता है।
मार्क्सवाद का मुख्य तत्व लिखे ।
मार्क्सवाद के मुख्य तत्व हैं – ऐतिहासिक भौतिकवाद , द्वंदात्मक भौतिकवाद ,वर्ग संघर्ष का सिद्धांत ,अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत, साम्यवादी युग, वर्ग विहीन समाज का उदय ।
मार्क्सवाद का सिद्धांत क्या है ?
कार्ल मार्क्स ने साम्यवादी विचारधारा को जिन सिद्धांतों के द्वारा प्रतिपादन किया है उनमें से एक है इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या । अपनी पुस्तक दास कैपिटल में मार्क्स ने इसका वर्णन किया है। असल में द्वंदात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत को सामाजिक विकास के बारे में प्रयुक्त करना इतिहास की आर्थिक व्याख्या है। इसे ऐतिहासिक भौतिकवाद अथवा इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या भी कहा जाता है ।
मार्क्स के अनुसार आदिम साम्यवादी युग क्या है ?
यह सामाजिक विकास की पहली अवस्था थी। इसमें उत्पादन के साधन तथा तकनीक बहुत सरल थी । उत्पादन के साधन पत्थर के औजार तथा धनुष बाण थे। मनुष्य झुंड में रहते थे और प्रकृति से मिली वस्तुओं पर सभी का सामूहिक अधिकार था। व्यक्तिगत संपत्ति व परिवार की व्यवस्था के अभाव में शोषण की स्थिति नहीं थी। इसलिए मार्क्स इस युग को आदिम साम्यवादी युग कहकर पुकारता है।
मार्क्स के दासत्व युग का कैसा वर्णन किया हैं ?
आर्थिक भौतिक परिस्थितियों में परिवर्तन होने से व्यक्ति कृषि कार्य करने लगा और पशु पालने लगा। वैवाहिक संबंध कायम होने लगे । परिवार और व्यक्तिगत संपत्ति का उदय हो गया। इस युग में कुछ लोग खेतों और पशुओं के स्वामी बन गए और उन्होंने कुछ लोगों को दास बनाकर उनसे अपने खेतों पर काम लेना शुरू कर दिया।
सामन्तवादी युग के बारे में मार्क्स के विचार क्या है ?
भौतिक साधनों में पुनः परिवर्तन हुआ । उत्पादन के साधनों की उन्नति हुई तथा दस्तकारियों का भी विकास हुआ । उत्पादन का मुख्य साधन भूमि थी और इस पर जिस वर्ग का अधिकार था वह सामंत वर्ग कहलाया । सामंतों के स्वामित्व वाली भूमि पर जिन भूमिहीन वर्ग के लोगों ने श्रम किया वह किसान वर्ग कहलाया। इनकी स्थिति इस युग में भी दासों के समान ही थी। इन दोनों के वर्गीय हित एक-दूसरे के विरुद्ध थे अतः उन में वर्ग संघर्ष था।
पूंजीवादी युग का आरंभ कब हुआ ?
18वीं सदी में औधोगिक क्रान्ति हुई और मशीनी युग का आरंभ हुआ । उत्पादन की मात्रा बढ़ी, वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ और बड़े-बड़े कारखाने तथा मिले कायम हुई। इस औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप पूंजीपतियों के नए वर्ग का उदय हुआ और बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले कारखानों पर पूंजीपतियों का अधिकार हो गया।
सर्वहारा वर्ग की तानाशाही से क्या अभिप्राय है
पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों के शोषण से उन्हें संगठित होने की प्रेरणा मिलती है। श्रमिक वर्ग संगठित होकर पूंजीवादी जुए को उतार फेंकने हेतु सशस्त्र क्रांति करेगा और पूंजीपतियों के राज्य को समाप्त कर सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद स्थापित करेगा। पुर्व सोवियत रूस और साम्यवादी चीन इसके प्रमुख उदाहरण है।
मार्क्सवाद की विशेषताएं लिखिए
मार्क्स पूंजीवादी व्यवस्था का विरोधी है। मार्क्स के अनुसार इतिहास की व्याख्या भौतिकवादी है। मार्क्स धर्म में विश्वास नहीं रखता।
वर्ग संघर्ष के सिद्धांत का क्या अर्थ है
मार्क्स के अनुसार प्रत्येक युग में, प्रत्येक समाज में सदैव दो विरोधी वर्ग- शोषण तथा शोषित रहते हैं। पूंजीपति एवं श्रमिक वर्ग अपने-अपने हितों के लिए संघर्ष करते रहते हैं ।
अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत से क्या अभिप्राय है
कार्ल मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत ही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा वह यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि पूंजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों का शोषण किया जाता है। अपने इस सिद्धांत का विवेचन उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दास कैपिटल में किया है।
मार्क्स के अनुसार राज्य लुप्त क्यों हो जाएगा ?-
मार्क्स का विश्वास था कि मेहनतकश जनता की क्रांति के बाद जब सर्वहारा वर्ग की तानाशाही व्यवस्था में पूंजीपति वर्ग का पूरी तरह विनाश हो जाएगा तब संपूर्ण समाज एक ही वर्ग का होगा। सभी मजदूर होंगे और उन्हें कोई भेद नहीं होगा। अतः शोषक और शोषित का भेद मिट जाने पर राज्य नामक संस्था उसी तरह लुप्त हो जाएगी जिस तरह फूल की पंखुड़ियां अपने पूर्ण विकास के बाद अपने आप पौधे से गिर जाती हैं ।