भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राज्य है जिसमें लोकतंत्र की स्थापना हुए अर्धशताब्दी से अधिक वर्ष हो चुके हैं। यद्यपि भारत में अनेक ऐसे तत्व मौजूद है जो लोकतंत्र में की संचालन तथा इसकी सफलता के मार्ग में बाधा बने हुए हैं परंतु भारत में कई संवैधानिक तथा गैर संवैधानिक तत्व तथा परंपराएं भी विकसित हुई है जो लोकतंत्र को दृढ़ता प्रदान करती है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भारत में अनेक ऐसे तत्व भी पाए जाते हैं जो लोकतंत्र को सफल बनाने में सहायक होते हैं।भारत में लोकतंत्र इतना मजबूत है कि वह सभी प्रकार की कठिनाइयों -राजनीतिक ,अंतर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक , साम्प्रदायिक, क्षेत्रीय, आतंकवादी आदि का मुकाबला सफलतापूर्वक कर सकता है।
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भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाले तत्व ( Factors Which Strengthen Democratic System in India )
भारतीय लोकतंत्र को जिन लोकतंत्रीय परंपराओं ने शक्तिशाली बनाने में योगदान दिया है उनका वर्णन निम्नलिखित हैं – 1) संवैधानिक व्यवस्थाएं 2 ) गैर- संवैधानिक व्यवस्थाएं
संवैधानिक व्यवस्थाएं ( Constitutional Provisions )
संविधान निर्माताओं ने एक पूर्ण-रूपेण लोकतंत्र संविधान का निर्माण किया है। इसके द्वारा जो व्यवस्थाएं निश्चित की गई उनका उल्लेख इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
1 ) प्रस्तावना ( Preamble )
प्रस्तावना ( Preamble ) – संविधान की प्रस्तावना द्वारा संविधान के आदर्शों व उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होता है । इसके अनुसार भारत एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्प है। इसके साथ-साथ संविधान सभी नागरिकों के राजनीतिक आर्थिक व सामाजिक न्याय प्रदान करने की घोषणा करता है।
2 ) मौलिक अधिकार तथा राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत ( Fundamental Rights and Directive Principles of State Policy )
मौलिक अधिकार तथा राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत ( Fundamental Rights and Directive Principles of State Policy ) – नागरिकों के विकास के लिए जहां मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं वहां उनकी सुरक्षा के लिए निष्पक्ष तथा स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। इस व्यवस्था से जहां नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा होती है वहां सरकार के अनुचित हस्तक्षेप पर भी रोक लगती है। आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों की व्यवस्था की गई है। इस क्षेत्र में काफी कार्य हुआ है परंतु अभी और कार्य करना शेष है।
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3 ) उत्तरदायी शासन ( Responsible Government )
उत्तरदायी शासन ( Responsible Government ) – लोकतंत्र शासन में सरकार का जनता के प्रति उत्तरदाई होना बहुत आवश्यक होता है। भारत में संघ तथा राज्यों में संसदीय प्रणाली अपनाई गई है। मंत्री परिषद अपने शासन संबंधी कार्यों के लिए जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदाई होती है।
4 ) निष्पक्ष चुनाव ( Impartial Elections )
निष्पक्ष चुनाव ( Impartial Elections ) – निष्पक्ष चुनाव के लिए निष्पक्ष चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है। भारत में सन 1952 से लेकर सन 2019 तक लोकसभा की 17 चुनाव और राज्यों की विधानसभाओं के अनेक चुनाव सफलतापूर्वक हो चुके हैं ।
5 ) वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव ( Elections based on Adult Franchise )
वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव ( Elections based on Adult Franchise ) – मौलिक प्रभुसत्ता के सिद्धांत के अनुसार सभी 18 वर्ष के नागरिकों को मत देने का अधिकार दिया गया है। एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर प्रत्येक नागरिक चुनाव में भी भाग ले सकता है । इस प्रकार सभी नागरिकों को राजनीतिक समानता प्रदान की गई है जो लोकतंत्र का एक प्रमुख तत्व है।
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6 ) कानून का शासन ( Rule of Law )
कानून का शासन ( Rule of Law ) – संविधान द्वारा सभी नागरिकों को कानूनी समानता प्रदान की गई है। कानून के समक्ष सभी नागरिक समान है। कानून व्यक्ति-व्यक्ति में भेदभाव नहीं करता है।
7 ) स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary )
स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary ) – नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की रक्षा करने में स्वतंत्र न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है।
इस प्रकार संविधान द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है जो लोकतंत्र परंपराओं को शक्तिशाली बनाती है। इसके अलावा गैर संवैधानिक संस्थाओं ने भी लोकतंत्र परंपराओं के विकास में सहायता दी है।
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गैर- संवैधानिक व्यवस्थाएं (Extra – Constitutional Provisions )
वे व्यवस्थाएं एवं परम्परायें जिनका प्रत्यक्ष रूप से संविधान में उल्लेख नहीं है उनको गैर संवैधानिक व्यवस्थाएं कहा जाता है जो कि इस प्रकार है –
1 ) लोकतांत्रिक विरासत ( Democratic Legacy )
लोकतांत्रिक विरासत ( Democratic Legacy ) – भारतीय लोकतंत्र की अब तक की सफलता के मूल में भारत की जनता का लोकतंत्र में अटूट विश्वास नहीं है। अत्यंत प्राचीन काल से ही हमने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के विभिन्न रूपों का सफल प्रयोग किया है। सर्वशक्ति संपन्न , केंद्रीयकृत तथा अधिनायकवादी शासनों का जनता ने सदा ही विरोध किया है। इसी लोकतांत्रिक विरासत के प्रभाव के कारण ही अनेक विपरीत परिस्थितियों तथा समस्याओं के होते हुए भी हम लोकतंत्र का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं।
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2 ) महान नेताओं का नेतृत्व ( Leadership of Great Leaders )
महान नेताओं का नेतृत्व ( Leadership of Great Leaders ) – स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ,जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि ऐसे महान नेताओं का नेतृत्व प्राप्त हुआ जो लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखते थे और उन्होंने लोगों में इन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा की।
3 ) भारतीय जनता की जागरूकता ( Awakening of Indian People )
भारतीय जनता की जागरूकता ( Awakening of Indian People ) – भारतीय जनता ने सन 1952 से 2019 तक हुए सभी आम चुनाव में पूर्ण जागरूकता का प्रदर्शन किया है। सन 1975 की संकटकालीन घोषणा के विरोध में जनता ने जो मतदान किया उससे यह स्पष्ट हो गया था कि वह लोकतंत्र विरोधी कार्यो को सहन नहीं कर सकते।
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4 ) आर्थिक योजनाएं ( Economic Plans )
आर्थिक योजनाएं ( Economic Plans ) – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा देश के सामाजिक विकास के लिए जो कदम उठाए गए हैं वह भी लोकतंत्र में लोगों की विश्वास के लिए उत्तरदायी है। देश के आर्थिक विकास के लिए 13 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी है और 14वीं पंचवर्षीय योजना आरंभ हो चुकी है। संघ तथा राज्यों की सरकारें इस बारे में प्रयत्नशील है कि सभी लोगों को रोजगार मिले ,कृषि उत्पादन बढें ,औद्योगिक विकास हो और सामाजिक तथा आर्थिक असमानता दूर हो।
5 ) संवैधानिक उपायों में विश्वास ( Faith in Constitutional Means )
संवैधानिक उपायों में विश्वास ( Faith in Constitutional Means ) – भारत की जनता की सांस्कृतिक धरोहर ने उसे संवैधानिक उपायों का उपयोग करने के लिए निरंतर प्रेरित किया है। छोटी समस्याओं से लेकर शासन के प्रति आक्रोश तक को यहां संवैधानिक उपायों से ही सुलझाने को समाज की स्वीकृति प्राप्त है। असंवैधानिक व हिंसक उपायों का प्रयोग विदेशी विचारधाराओं से प्रेरित लोग करते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत के मूल चिंतन को बढ़ावा दिया जाए तथा लोकतंत्र के इस मौलिक सिद्धांत में आस्था को स्थाई बनाया जाए। शांतिपूर्ण उपायों से हुआ परिवर्तन व विकास स्थाई व कल्याणकारी होता है।
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6 ) विरोधी दलों का योगदान ( Contribution by Opposition Parties )
विरोधी दलों का योगदान ( Contribution by Opposition Parties ) – यद्यपि भारत में विरोधी दल बहुत शक्तिशाली नहीं रहे हैं, परंतु उन्होंने लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने में योगदान अवश्य दिया है। जहां तक भी संभव हो सका है उन्होंने सत्ताधारी दल की अनुचित नीतियों का डटकर मुकाबला किया है।
निष्कर्ष ( Conclusions )
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में लोकतांत्रिक परंपराओं को शक्तिशाली बनाने वाले अनेक तत्व मौजूद हैं और विकसित हो रहे हैं जिससे यह आशा की जा सकती है कि भारत में लोकतंत्र पहले से और अधिक मजबूत होगा। ऐसे ही रोचक जानकारियों के लिए आप ज्ञान फॉरएवर पर बने रहिए । धन्यवाद ।
FAQ Checklist
भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाले दो तत्व कौन से हैं
भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाले दो तत्व – 1 ) संवैधानिक व्यवस्थाएं 2 ) गैर संवैधानिक व्यवस्थाएं ।
संवैधानिक व्यवस्थाएं क्या है
संविधान निर्माताओं ने एक पूर्ण लोकतंत्रीय संविधान का निर्माण किया है । भारत में संविधान द्वारा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है। संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष ,लोकतंत्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है । संविधान के द्वारा उत्तरदाई शासन व्यवस्था, व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव ,निष्पक्ष चुनाव ,कानून का शासन तथा स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है । संविधान द्वारा ऐसी व्यवस्थाएं की गई है जो लोकतंत्र की परंपराओं को शक्तिशाली बनाती है और इन्हीं व्यवस्थाओं को संवैधानिक व्यवस्थाएं कहा जाता है ।
प्रस्तावना ( Preamble ) क्या है ?
प्रस्तावना ( Preamble ) – संविधान की प्रस्तावना द्वारा संविधान के आदर्शों व उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होता है । इसके अनुसार भारत एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्प है। इसके साथ-साथ संविधान सभी नागरिकों के राजनीतिक आर्थिक व सामाजिक न्याय प्रदान करने की घोषणा करता है।
भारतीय लोकतंत्र की सफलता में लोकतांत्रिक विरासत ( Democratic Legacy ) की क्या भूमिका रही हैं ?
लोकतांत्रिक विरासत ( Democratic Legacy ) – भारतीय लोकतंत्र की अब तक की सफलता के मूल में भारत की जनता का लोकतंत्र में अटूट विश्वास नहीं है। अत्यंत प्राचीन काल से ही हमने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के विभिन्न रूपों का सफल प्रयोग किया है। सर्वशक्ति संपन्न , केंद्रीयकृत तथा अधिनायकवादी शासनों का जनता ने सदा ही विरोध किया है। इसी लोकतांत्रिक विरासत के प्रभाव के कारण ही अनेक विपरीत परिस्थितियों तथा समस्याओं के होते हुए भी हम लोकतंत्र का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं।
विरोधी दलों का योगदान से क्या भाव हैं ?
विरोधी दलों का योगदान ( Contribution by Opposition Parties ) – यद्यपि भारत में विरोधी दल बहुत शक्तिशाली नहीं रहे हैं, परंतु उन्होंने लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने में योगदान अवश्य दिया है। जहां तक भी संभव हो सका है उन्होंने सत्ताधारी दल की अनुचित नीतियों का डटकर मुकाबला किया है।
क्या भारत की जनता संवैधानिक उपायों में विश्वास रखती हैं ?
संवैधानिक उपायों में विश्वास ( Faith in Constitutional Means ) – भारत की जनता की सांस्कृतिक धरोहर ने उसे संवैधानिक उपायों का उपयोग करने के लिए निरंतर प्रेरित किया है। छोटी समस्याओं से लेकर शासन के प्रति आक्रोश तक को यहां संवैधानिक उपायों से ही सुलझाने को समाज की स्वीकृति प्राप्त है। असंवैधानिक व हिंसक उपायों का प्रयोग विदेशी विचारधाराओं से प्रेरित लोग करते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत के मूल चिंतन को बढ़ावा दिया जाए तथा लोकतंत्र के इस मौलिक सिद्धांत में आस्था को स्थाई बनाया जाए। शांतिपूर्ण उपायों से हुआ परिवर्तन व विकास स्थाई व कल्याणकारी होता है।
आर्थिक योजनाएं ( Economic Plans ) क्या मतलब हैं ?
आर्थिक योजनाएं ( Economic Plans ) – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा देश के सामाजिक विकास के लिए जो कदम उठाए गए हैं वह भी लोकतंत्र में लोगों की विश्वास के लिए उत्तरदायी है। देश के आर्थिक विकास के लिए 13 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी है और 14वीं पंचवर्षीय योजना आरंभ हो चुकी है। संघ तथा राज्यों की सरकारें इस बारे में प्रयत्नशील है कि सभी लोगों को रोजगार मिले ,कृषि उत्पादन बढें ,औद्योगिक विकास हो और सामाजिक तथा आर्थिक असमानता दूर हो।
स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary ) से क्या तात्पर्य हैं ?
स्वतंत्र न्यायपालिका ( Independent Judiciary ) – नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की रक्षा करने में स्वतंत्र न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है।
इस प्रकार संविधान द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है जो लोकतंत्र परंपराओं को शक्तिशाली बनाती है। इसके अलावा गैर संवैधानिक संस्थाओं ने भी लोकतंत्र परंपराओं के विकास में सहायता दी है।
स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों होनी चाहिए?
धनी और गरीब, स्त्री और पुरुष तथा अगले और पिछड़े सभी लोगों पर एक समान कानून लागू हो। न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है,विवादों को कानून के अनुसार हल करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले ले। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई है।
भारत की न्यायपालिका क्या है?
भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) आम कानून (कॉमन लॉ) पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के समय बनाई थी। इस प्रणाली को ‘आम कानून व्यवस्था’ के नाम से जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं।
न्यायपालिका के कितने अंग होते हैं?
न्यायपालिका के तीन अंग हैं– कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका। इसके अनुसार विधानपालिका का काम विधि निर्माण करना, कार्यपालिका का काम विधियों का कार्यान्वयन तथा न्यायपालिका को प्रशासन की देख-रेख,विवादों का फैसला और विधियों की व्याख्या करने का काम सौंपा गया।
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