Dialectical Materialistic Meaning,Criticism मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद अर्थ, आलोचना

Dialectical Materialistic Meaning,Criticism | मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद अर्थ, आलोचना

मार्क्सवाद राजनीति विज्ञान

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कार्ल मार्क्स समाजवाद के जनक थे। कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाज को मार्क्सवाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद या साम्यवाद कहा जाता है। मार्क्सवाद की उत्पत्ति पूंजीवाद के विरोध के रूप में हुई। यह कार्ल मार्क्स के विचारों पर आधारित है जिसने बड़े वैज्ञानिक ढंग से समाजवाद की स्थापना करने के लिए अपने विचार प्रकट किए हैं।

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मार्क्सवाद को सर्वहारा समाजवाद या वैज्ञानिक समाजवाद भी कहा जाता है। मार्क्स ने सैद्धांतिक आधार पर ही साम्यवाद को न्याय संगत ही नहीं बताया अपितु यह सिद्ध किया कि सामाजिक विकास के सिद्धांत के अनुसार साम्यवाद की स्थापना अनिवार्य है।

Table of Contents विषय सूची

मार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद क्या है ( Meaning of Dialectical Materialistic in Hindi )

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) मार्क्स के संपूर्ण राजनीति दर्शन का मूल आधार है। इसी सिद्धांत के आधार पर उसने इतिहास के परिवर्तन और अध्ययन का भौतिकवादी दर्शन वर्ग संघर्ष तथा साम्यवाद की स्थापना आदि के विचार निर्धारित किए हैं।

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) में दो शब्द है। इन में पहला शब्द तो उसे प्रक्रिया को स्पष्ट करता है जिसके अनुसार सृष्टि का विकास हो रहा है और दूसरा शब्द सृष्टि के मूल तत्व को सूचित करता है।

मार्क्स ने द्वंदात्मक सिद्धांत ( Dialectical Materialistic ) को हीगल के दर्शन से अपनाया था परंतु उसने इस सिद्धांत की व्याख्या अपने भौतिकवादी विचारों के आधार पर की है। हीगल ने लिखा है कि समस्त संसार गतिशील है और इसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। इस गतिशीलता का आधार विचार होता है।

उसके अनुसार इतिहास घटनाओं का क्रम मात्र नहीं है बल्कि विकास की एक क्रमिक प्रक्रिया है। यह विकास द्वंदात्मक होता है जो विषमता व संघर्ष पर आधारित है। हीगल का विचार था कि प्रत्येक समाज में तथा इतिहास के हर काल में दो विरोधी तत्व मौजूद होते हैं। इन दोनों विरोधी तत्वों के आपसी संघर्ष के कारण एक तत्व का नाश होता है और दूसरा तत्व ऊपर उठता है।

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इस तत्व को वह वाद ( Ism ) अथवा थीसिस ( Thesis )कहता है। दूसरा तत्व जो इसका विरोध करता है हीगल उसे प्रतिवाद कहता है। उसके पश्चात वाद तथा प्रतिवाद में द्वंद होता है और नए विचार की उत्पत्ति होती है जो समवाद (Synthesis) है।

हीगल कहता है कि यह समवाद आगे चलकर पुनः वाद का रूप ले लेता है जिसका फिर प्रतिवाद होता है और द्वंद्व के माध्यम से समवाद के रूप में फिर नया विचार उत्पन्न होता है। यह क्रम सदा चलता रहता है।

हीगल का विचार था कि इस सामाजिक जीवन की संचालन शक्ति विचार या कोई सिद्धांत होता है। मार्क्स ने हीगल के इस द्वंद्व को स्वीकार तो किया परंतु उसका विचार है कि इस सामाजिक विकास की संचालन शक्ति विचार न होकर पदार्थ है।

मार्क्स अपने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) से यह सिद्ध करता है कि पूंजीवाद समाज के शोषित वर्ग से साम्यवादी राज्य विहीन समाज की स्थापना कैसे होगी। उसके अनुसार प्रत्येक युग में दो आर्थिक शक्तियों में विरोध रहा है।

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प्राचीन योग में स्वतंत्र नागरिक व दास थे, मध्य युग में जमींदार व किसान थे ,आधुनिक युग में पूंजीपति तथा श्रमिक वर्ग है। इन दो विरोधी आर्थिक वर्गों के संघर्ष से ही समाज का विकास होता है। मार्क्स के अनुसार इस संघर्ष के परिणाम स्वरुप पूंजीपतियों का नाश होगा और इस प्रकार एक नए समाजवादी समाज का जन्म होगा।

मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) को समझने के लिए प्राय: गेहूं के पौधे का उदाहरण दिया जाता है। गेहूं का दाना जब भूमि में बो दिया जाता है तो दाना नष्ट हो जाता है और उससे अंकुर निकलता है जो बढ़कर पौधा बन जाता है।

इस उपमा में गेहूं का दाना वाद तथा पौधा प्रतिवाद बनता है। बाद में वाद तथा प्रतिवाद के पुन: संघर्ष से नई परिस्थिति उत्पन्न होती है ,पौधे पर बाली आती है, बाली में पुनः दाना पड़ता है और धीरे-धीरे पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। यह द्वंद्ववाद ( Dialectical Materialistic ) की तीसरी अवस्था अर्थात समवाद है।

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यह समवाद पुनः वाद का रूप धारण कर लेता है। धीरे-धीरे इसमें असहमति का स्वर प्रकट होता है और एक नए प्रतिवाद का रूप विकसित होने लगता है। फिर संघर्ष तथा समन्वय के चरणों से गुजर कर समाज एक नए उच्च विकास स्तर पर पहुंचता है। यही विकास का क्रम है।

आर्थिक जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के संदर्भ में द्वंदात्मक प्रक्रिया को इस प्रकार समझाया जा सकता है। पूंजीवाद अथवा व्यक्तिगत संपत्ति की व्यवस्था वाद है जिसमें असंगति रहती है कि समाज शक्तिशाली व सर्वहारा वर्ग के दो भागों में बंट जाता है। इस असंगति के कारण समाज में संघर्ष होता है तथा व्यक्तिगत संपत्ति का सामाजिक संपत्ति में परिवर्तन उसके प्रतिरूप की अवस्था होती है।

इन दोनों अवस्थाओं के समवाद स्वरूप वह अवस्था आती हैं जिसे साम्यवाद की अवस्था कहा जाता है, जो व्यक्तिगत संपत्ति के स्थान पर सार्वजनिक स्वामित्व की अवस्था होती है। मार्क्स ने हीगल की द्वंदात्मक प्रणाली ग्रहण की है लेकिन उसका द्वंद्ववाद हीगल के द्वंद्ववाद से बहुत अधिक भिन्न है।

मार्क्स के अनुसार विश्व एक भौतिक जगत है। इसमें घटनाएं तथा वस्तुएं एक दूसरे से अलग नहीं बल्कि पूर्णतया संबंध रहती है। क्योंकि भौतिक जगत में भी निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं अतः सामाजिक जीवन में इन परिवर्तनों का कारण कोई देवी शक्ति या देवी नियम नहीं है बल्कि भौतिक परिस्थितियां हैं।

मार्क्स के अनुसार प्रत्येक व्यवस्था के अंतर्गत द्वंद का कारण उत्पादन संबंधों का होना है। उसके अनुसार सामंतवादी व्यवस्था वाद थी तो पूंजीवादी व्यवस्था प्रतिवाद थी। इस प्रतिवाद को समाप्त करके समवाद के रूप में वर्ग विहीन समाज की स्थापना द्वंद्ववाद ( Dialectical Materialistic ) विकास का अंतिम चरण होगी।

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मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की आलोचना ( Criticism of Dialectical Materialistic of Marx )

मार्क्स का पूरा दर्शन द्वंदात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) रूपी स्तंभ पर खड़ा है तथापि मार्क्स ने इस संबंध में अपने विचारों को स्पष्ट रूप से कहीं भी व्यक्त नहीं किया है। मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) की निम्नलिखित बातों के आधार पर आलोचना की गई है

अस्पष्ट अवधारणा ( Vague Concept )

मार्क्स के द्वंद्ववाद की अवधारणा अस्पष्ट है। Wayper के अनुसार द्वंद्ववाद की अवधारणा अत्यंत गूढ़ और अस्पष्ट है। यद्यपि मार्क्स तथा एंजेल्स के समस्त लेखन का आधार है परंतु उसे कहीं पर भी स्पष्ट नहीं किया गया है। उसने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न नहीं किया है की पदार्थ किस प्रकार गतिशील होता हैं ।

विकास अनेक प्रक्रियाओं का परिणाम ( Development is a result of Many actions )

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) के अनुसार विकास केवल संघर्ष का ही फल है परंतु यह बात सत्य नहीं मानी जा सकती क्योंकि विकास वास्तव में अनेक प्रक्रियाओं का फल है। इसमें संदेह नहीं है कि संघर्ष मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है परंतु उसे एक विश्व व्यापी नियम बनाना अथवा ऐतिहासिक विकास में उसे चालक चक्र का स्थान देना उपयुक्त नहीं है।

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गलत धारणा ( Wrong Concept )

मार्क्स की मान्यता है की पदार्थ चेतनायुक्त नहीं होता बल्कि एक आंतरिक आवश्यकता के कारण उसका विकास स्वयं ही होता है और वह अपने विरोधों को जन्म देता है। परंतु मार्क्स की यह अवधारणा ठीक नहीं है। यह नहीं माना जा सकता की पदार्थ अपनी चेतना के कारण अपने विरोधी तत्व को जन्म देता है। वास्तविकता यह है की पदार्थ में परिवर्तन बाहरी शक्तियों के द्वारा होता है।

भौतिक पक्ष को अधिक महत्व ( More Importance to Materialistic views )

मार्क्स मनुष्य जीवन के भौतिक पक्ष को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है। उसके अनुसार मनुष्य की चेतना का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है बल्कि वह उसके भौतिक स्तर से प्रभावित तथा निर्धारित होती है। दूसरे शब्दों में भौतिक समृद्धि ही मानव जीवन की वास्तविक समृद्धि है और इसलिए इसे प्राप्त करना ही उसका सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।

इस संबंध में आलोचको द्वारा यह कहा गया है कि मार्क्स ने हीगल के द्वंद्ववाद ( Dialectical Materialistic ) को अपनाते हुए आध्यात्मिकता के स्थान पर भौतिकता को रख दिया है परंतु उसने यह बतलाने का कष्ट नहीं किया कि आध्यात्मिक शक्तियों के स्थान पर आर्थिक शक्तियां कैसे अधिक सही है।

यह ठीक है कि आधुनिक युग में विकास की गति भौतिकता की ओर अधिक है परंतु सर्वकालीन विकास को ध्यान में रखते हुए यह पता चलता है कि मनुष्य का उद्देश्य सदा केवल भौतिक समृद्धि में ही नहीं रहा है। भौतिक समृद्धि मनुष्य जीवन का आदि और अंत नहीं है।

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विरोधी विचार ( Contradictory thought )

द्वादात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) का प्रतिपादन करते समय मार्क्स विरोधी विचारों में भटकता हुआ पाया जाता है । उदाहरण स्वरूप एक और वह मानता है कि मनुष्य परिस्थितियों का निर्माण करता है तो कभी वह कहता है की परिस्थितियां मनुष्य का निर्माण करती है।

क्रांति जरूरी नहीं ( Revolution not necessary )

मार्क्स का यह कहना है कि समाज की उच्चतर अवस्था के लिए क्रांति चरम सीमा है तथा इसके लिए शक्ति तथा हिंसा का प्रयोग अनिवार्य है। परंतु क्रांति को अनिवार्य मानना युक्ति संगत नहीं है।

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FAQs Dialectical Materialistic Meaning,Criticism

मार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद क्या है ?

द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) मार्क्स के संपूर्ण राजनीति दर्शन का मूल आधार है। इसी सिद्धांत के आधार पर उसने इतिहास के परिवर्तन और अध्ययन का भौतिकवादी दर्शन वर्ग संघर्ष तथा साम्यवाद की स्थापना आदि के विचार निर्धारित किए हैं।

द्वंदात्मक सिद्धांत को मार्क्स ने किस से अपनाया था ?

मार्क्स ने द्वंदात्मक सिद्धांत ( Dialectical Materialistic ) को हीगल के दर्शन से अपनाया था परंतु उसने इस सिद्धांत की व्याख्या अपने भौतिकवादी विचारों के आधार पर की है। हीगल ने लिखा है कि समस्त संसार गतिशील है और इसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। इस गतिशीलता का आधार विचार होता है।

द्वंदात्मक सिद्धांत की परिभाषा लिखो।

इस तत्व को हीगल वाद ( Ism ) अथवा थीसिस ( Thesis )कहता है। दूसरा तत्व जो इसका विरोध करता है हीगल उसे प्रतिवाद कहता है। उसके पश्चात वाद तथा प्रतिवाद में द्वंद होता है और नए विचार की उत्पत्ति होती है जो समवाद (Synthesis) है।

मार्क्स अपने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद से क्या सिद्ध करना चाहता था ?

मार्क्स अपने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) से यह सिद्ध करता है कि पूंजीवाद समाज के शोषित वर्ग से साम्यवादी राज्य विहीन समाज की स्थापना कैसे होगी। उसके अनुसार प्रत्येक युग में दो आर्थिक शक्तियों में विरोध रहा है।

मार्क्स के अनुसार विश्व क्या हैं ?

मार्क्स के अनुसार विश्व एक भौतिक जगत है। इसमें घटनाएं तथा वस्तुएं एक दूसरे से अलग नहीं बल्कि पूर्णतया संबंध रहती है। क्योंकि भौतिक जगत में भी निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं अतः सामाजिक जीवन में इन परिवर्तनों का कारण कोई देवी शक्ति या देवी नियम नहीं है बल्कि भौतिक परिस्थितियां हैं।

मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की दो आलोचना।

मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद ( Dialectical Materialistic ) की निम्नलिखित बातों के आधार पर आलोचना की गई है- अस्पष्ट अवधारणा ( Vague Concept ) , भौतिक पक्ष को अधिक महत्व ( More Importance to Materialistic views )

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