Favor of Marxism in Hindi, Justification of Marxism in Hindi , मार्क्सवाद का औचित्य ,मार्क्सवाद के पक्ष में तर्क

Arguments in Favor of Marxism in Hindi | मार्क्सवाद का औचित्य | मार्क्सवाद के पक्ष में तर्क

मार्क्सवाद राजनीति विज्ञान

Favor of Marxism in Hindi,Marxism Ke paksh me Tark ,Marxwad ka Auchitya , Justification of Marxism in Hindi , मार्क्सवाद का औचित्य ,मार्क्सवाद के पक्ष में तर्क Arguments in favor of Marxism in Hindi ,कार्ल मार्क्स समाजवाद के जन थे । कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद को मार्क्सवाद अथवा वैज्ञानिक समाजवाद या साम्यवाद कहा जाता है।

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Favor of Marxism मार्क्सवाद की उत्पत्ति पूंजीवाद के विरोध के रूप में हुई। यह कार्ल मार्क्स के विचारों पर आधारित है जिसने बड़े वैज्ञानिक ढंग से समाजवाद की स्थापना करने के लिए अपने विचार प्रकट किया। कार्ल मार्क्स को प्रथम वैज्ञानिक समाजवादी कहा जाता है।

Table of Contents विषय सूची

मार्क्सवाद का औचित्य ( Justification of Marxism , Favor of Marxism )

20वीं शताब्दी के राजनीतिक जीवन पर मार्क्सवाद का बहुत अधिक गहरा प्रभाव पड़ा है। उसके औचित्य Favor of Marxism के बारे में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं-

आर्थिक एवं राजनीतिक दर्शन का समन्वित रूप प्रस्तुत किया है ( Co-ordinative Sphere of Economic and Political Philosophy )

मार्क्सवाद ( Favor of Marxism ) एक ऐसा दर्शन है जो व्यावहारिक है ,यह सिर्फ राजनीतिक दर्शन ही नहीं अपितु आर्थिक व राजनीतिक दर्शन का समन्वित रूप है। वर्तमान काल में व्यक्ति की अधिकतर समस्याएं आर्थिक है और मानव जीवन इन्हीं के इर्द-गीत घूमता है।

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धर्म का राजनीति से पृथक्करण किया है ( Separation of Politics from Religion )

मार्क्सवादी दर्शन ( Favor of Marxism ) का धर्म विरोधी होना भी उचित ही कहा जा सकता है। इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण है जिनमें धर्म के नाम पर व्यक्ति के खिलाफ किए गए प्रत्येक अत्याचार को न्याय उचित ठहराने का प्रयास किया गया है।

आधुनिक युग में सभी राष्ट्रों मे धर्म को राजनीति के क्षेत्र में कोई महत्व नहीं दिया जाता है। मार्क्सवाद को इस दृष्टि से एक प्रगतिशील विचारधारा की संज्ञा दी जा सकती है।

सामाजिक अर्थव्यवस्था के कटु सत्यों का प्रकाशन ( Publishing of hard facts of Social Economy )

मार्क्सवाद ( Favor of Marxism ) बहुत ही तार्किक ढंग से समाज में प्रचलित वर्ग भेद को प्रस्तुत करता है। कार्ल मार्क्स के मतानुसार समाज में हमेशा दो वर्ग रहे हैं तथा उनमें हमेशा से वर्ग युद्ध चल रहा है। ( Favor of Marxism ) मार्क्सवाद के आलोचक चाहे इसे अस्वीकार करें परंतु अगर वे निष्पक्षता से समाज को देखने का प्रयास करें तो स्पष्ट रूप में दो वर्ग दिखाई देंगे।

जहां एक वर्ग वैभव का परिचायक है तो वही दूसरा वर्ग गरीबों का प्रतीक है। आखिरकार एक समाज में साथ-साथ रहने वाले एक ही रंग के खून से संचालित व्यक्तियों में यह अंतर क्यों ? ( Favor of Marxism ) मार्क्सवाद इन कटु शक्तियों का यथार्थ प्रकाशन करता है।

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अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत की वास्तविकता ( Formation of originality as Principle of Surplus value )

मार्क्सवादी ( Favor of Marxism ) दर्शन इतना अधिक तर्कसंगत है कि अगर एक बार उसके मूलभूत आधार को स्वीकार कर लिया जाए तो हमें बाध्य होकर इसके परिणामों को भी स्वीकार करना होगा। तार्किक एवं सैद्धांतिक दृष्टि से अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत को चुनौती नहीं दी जा सकती।

अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत पूंजीवाद की विभीषिकाओं को इतने नंगे रूप में पेश करता है कि एक बार इसे स्वीकृत कर लिए जाने पर हम किसी भी आधार पर पूंजीवाद का समर्थन नहीं कर सकते हैं।

पवित्र आदर्श समाज की स्थापना ( Formation of Philosophy of a Holy Ideal Society )

मार्क्सवाद ( Favor of Marxism ) का उद्देश्य एक वर्गहीन और राज्यहीन समाज का निर्माण है। यह एक ऐसा समाज होगा जो मानव की समस्त मूलभूत जरूरत की पूर्ति करते हुए उसे अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की अवसर प्रदान करेगा।

इस उद्देश्य को सिर्फ अराजकतावादी दर्शन कहकर ही अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यह असल में एक पवित्र आदर्श है जिसको हासिल करना इसलिए जरूरी है क्योंकि उसको सम्मुख रखकर व्यक्ति स्वयं अपना परिष्कार कर सकता है।

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लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विकास में सहायक ( Helpful in the development of concept of Social Welfare Society )

मार्क्सवाद ( Favor of Marxism ) ने पूरे संसार को यह चेतावनी दी थी कि मजदूरों का लंबे समय तक शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उसकी इस स्पष्ट चेतावनी ने यूरोप के अनेक देशों और अमेरिका के राजनेताओं की नींद हराम कर दी।

उन्होंने मार्क्सवाद ( Favor of Marxism ) को रोकने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सके। इसका नतीजा यह हुआ कि पूंजीवादी देशों को भी मजदूरों की दशा सुधारने और उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठने के लिए विवश होना पड़ा और लोक कल्याणकारी राज्य के विचार को अपनाना पड़ा।

अतः उपरोक्त आधारों से स्पष्ट है कि ( Favor of Marxism ) मार्क्सवाद व्यक्ति को शोषण से बचने एवं समाज को एक नई दिशा देने वाली विचारधारा है।

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FAQs of Marxism

मार्क्सवाद की उत्पत्ति कैसे हुई ?

मार्क्सवाद की उत्पत्ति पूंजीवाद के विरोध के रूप में हुई। यह कार्ल मार्क्स के विचारों पर आधारित है जिसने बड़े वैज्ञानिक ढंग से समाजवाद की स्थापना करने के लिए अपने विचार प्रकट किया। कार्ल मार्क्स को प्रथम वैज्ञानिक समाजवादी कहा जाता है।

मार्क्सवाद का औचित्य क्या है ?

20वीं शताब्दी के राजनीतिक जीवन पर मार्क्सवाद का बहुत अधिक गहरा प्रभाव पड़ा है। उसके औचित्य के बारे में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं- मार्क्सवाद एक ऐसा दर्शन है जो व्यावहारिक है ,यह सिर्फ राजनीतिक दर्शन ही नहीं अपितु आर्थिक व राजनीतिक दर्शन का समन्वित रूप है। मार्क्सवादी दर्शन का धर्म विरोधी होना भी उचित ही कहा जा सकता है।

मार्क्सवादी दर्शन धर्म विरोधी क्यों हैं ?

मार्क्सवादी दर्शन ( Favor of Marxism ) का धर्म विरोधी होना भी उचित ही कहा जा सकता है। इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण है जिनमें धर्म के नाम पर व्यक्ति के खिलाफ किए गए प्रत्येक अत्याचार को न्याय उचित ठहराने का प्रयास किया गया है।

अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत की वास्तविकता क्या है ?

मार्क्सवादी दर्शन इतना अधिक तर्कसंगत है कि अगर एक बार उसके मूलभूत आधार को स्वीकार कर लिया जाए तो हमें बाध्य होकर इसके परिणामों को भी स्वीकार करना होगा। तार्किक एवं सैद्धांतिक दृष्टि से अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत को चुनौती नहीं दी जा सकती।

मार्क्सवाद का उद्देश्य क्या है ?

मार्क्सवाद का उद्देश्य एक वर्गहीन और राज्यहीन समाज का निर्माण है। यह एक ऐसा समाज होगा जो मानव की समस्त मूलभूत जरूरत की पूर्ति करते हुए उसे अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की अवसर प्रदान करेगा।

मार्क्सवाद के पक्ष में तर्क।

मार्क्सवाद ने पूरे संसार को यह चेतावनी दी थी कि मजदूरों का लंबे समय तक शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उसकी इस स्पष्ट चेतावनी ने यूरोप के अनेक देशों और अमेरिका के राजनेताओं की नींद हराम कर दी।
उन्होंने मार्क्सवाद को रोकने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सके। इसका नतीजा यह हुआ कि पूंजीवादी देशों को भी मजदूरों की दशा सुधारने और उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठने के लिए विवश होना पड़ा और लोक कल्याणकारी राज्य के विचार को अपनाना पड़ा।

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