SAARC ( South Asian Association For Regional Cooperation ) दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना कब हुई ,सार्क क्या है , सार्क के मुख्य उद्देश्य क्या है – बीसवीं शताब्दी के मध्य तक संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप अर्थात दक्षिण एशिया विदेशी दासता से मुक्त हो चुका था। इस क्षेत्र के नवोदित राष्ट्रों के सामने अनेक प्रकार की समस्याएं विद्यमान थी।
साम्राज्यवादी देशों ने इसका भरपूर शोषण किया था, इस कारण यहां भयानक दरिद्रता, भुखमरी , बीमारी ,महामारी तथा पिछड़ेपन का सर्वत्र साम्राज्य विद्यमान था। इतना ही नहीं, इन सभी देशों ने उन्होंने फूट के बीज बोए थे जिससे वे यहां के लोगों को आपस में लड़ाकर निरंतर निर्विघ्नं शासन करते रहे।
स्वतंत्र हो जाने के पश्चात दरिद्रता, पिछड़ेपन ,निहित स्वार्थी तत्व तथा विदेशी शक्तियों के इशारों पर नाचने वाले विघटनकारी तत्वों के कारण इन सभी देशों के सामने राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की समस्या निरंतर बनी रही। उपयुक्त समस्याओं को सुलझाने के लिए इन देशों ने अपने अपने आधार पर प्रयास किए।
इन प्रयासों में क्षेत्र के सभी देशों ने एक-दूसरे को सहयोग भी प्रदान किया किंतु इन देशों में विद्यमान विदेशी तत्वों ने इन देशों में पारस्परिक सहयोग की वृद्धि के विरुद्ध पारस्परिक संदेह विद्वेष , भय तथा शत्रुता के वातावरण को बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई। लगभग सभी महा- शक्तियों ने इस क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव में रखने के प्रयत्न किए और इसी कारण यह देश आपसी सहयोग के लिए कभी एकत्रित ना हो सके।
एक देश अमेरिका के प्रभाव में था तो दूसरे पर पूर्व सोवियत संघ का प्रभाव नजर आता था। इस क्षेत्र के देशों में आपस में ही संघर्ष रहता था। हिंद महासागर में इन बड़ी शक्तियों ने अपनी नौसैनिक गतिविधियां तेज की और अपने नौसैनिक अड्डे बनाए तो इस क्षेत्र की महा शक्तियों को खतरा पैदा होने लगा।
यह महसूस किया जाने लगा कि यदि इस क्षेत्र के देशों में आपसी एकता व सहयोग का विकास ना हुआ तो यह देश धीरे-धीरे बाहरी शक्तियों के शोषण का शिकार बन जाएंगे। यह भी महसूस किया गया कि आपसी सहयोग तथा सहायता से यह देश अपना विकास कर सकते हैं और संसार के सामने एक शक्तिशाली पक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।
भारत सदैव अंतरराष्ट्रीय शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय सहयोग को भी आवश्यक मानता है। क्षेत्रीय सहयोग हेतु भारत के पड़ोसी राज्यों का एक संघ 8 दिसंबर 1985 में बनाया गया। इस संघ को दक्षिण एशियाई प्रादेशिक सहयोग संघ के नाम से जाना जाता है। अब तक सार्क के 19 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।
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सार्क की स्थापना ( Establishment of SAARC in Hindi )
सार्क ( SAARC ) का विकास धीरे-धीरे हुआ है। ( SAARC ) सार्क का पूरा नाम दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ है। दक्षिण एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर रहमान ने दिया था। उन्होंने सन 1977 से सन 1980 के बीच भारत ,पाकिस्तान ,नेपाल और श्रीलंका की यात्रा की थी।
उसके बाद ही उन्होंने 1980 में आपसी सहयोग के लिए 10 विषयों वाला एक दस्तावेज तैयार किया। जिस पर विचार करने के लिए सार्क के विदेश सचिवों की बैठक 1981 में हुई। इसके पश्चात एक 2 अगस्त 1983 में सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक नई दिल्ली में हुई। जिसमें दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग की पहली औपचारिक घोषणा हुई।
सन 1984 में मालदीव व सन 1985 में भूटान में भी सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। सन 1985 में ही दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना हुई और इसका संवैधानिक स्वरूप 7-8 दिसंबर 1985 को ढाका में 7 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के सम्मेलन में निश्चित किया गया। 8 दिसंबर 1985 को सार्क ( SAARC ) की स्थापना हुई ।
सार्क देशों में भारत, मालदीव ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,श्रीलंका ,भूटान एवं नेपाल सम्मिलित है। यद्यपि 13वें शिखर सम्मेलन में सार्क सदस्य देशों के बीच अफगानिस्तान को नए सदस्य बनाने के रूप में सहमति उभरी है।
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सार्क की संस्थाएं ( SAARC Institutions )
सार्क चार्टर के अनुच्छेद तीन में निम्नलिखित संस्थाओं का उल्लेख किया गया है
शिखर सम्मेलन ( SAARC Summit )
सार्क ( SAARC ) चार्टर के अनुच्छेद 3 के अनुसार सार्क देशों का प्रति वर्ष 1 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष भाग लेते हैं। नवंबर 2016 तक सार्क देशों के 19 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।
मन्त्रि-परिषद (SAARC’s Council of Ministers )
अनुच्छेद 4 के अनुसार सार्क ( SAARC ) सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की परिषद है। इसकी बैठक 6 माह में होनी आवश्यक है ,परंतु आवश्यकतानुसार कभी भी बैठक हो सकती है। इसमें मुख्यतः संघ की नीति निर्धारित करने , संघ के नए क्षेत्र खोजने एवं सामान्य हित के मुद्दों को निश्चित किया जाता है।
स्थायी समिति ( SAARC’s Permanent Committee )
अनुच्छेद 5 के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है। इसकी वर्ष में एक बैठक होना आवश्यक है परंतु आवश्यकतानुसार इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है। इसमें भी मुख्यतः अंतर क्षेत्रीय प्राथमिकताएं निश्चित करना सहयोग के क्षेत्र ढूंढना एवं सहयोग के कार्यक्रमों को मॉनिटर करना आदि निर्धारित किए जाते हैं।
तकनीकी समितियां ( SAARC’s Technical Committees )
इसकी व्यवस्था भी चार्टर के अनुच्छेद 6 में की गई है जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि इसके सदस्य होते हैं। ये समितियां अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रमों को लागू करने और उन में समन्वय पैदा करने एवं सहयोग के नए क्षेत्र ढूंढने आदि के प्रति उत्तरदाई होती है।
कार्यकारी समिति ( SAARC’s Executive Committee )
कार्यकारी समिति की व्यवस्था चार्टर के अनुच्छेद 7 में की गई है। इसकी स्थापना स्थाई समिति द्वारा की जाती है।
सचिवालय ( SAARC’s Secretariat )
सार्क सचिवालय की व्यवस्था अनुच्छेद 8 में की गई है। वैसे तो सचिवालय की स्थापना सार्क के गठन के बाद दूसरे सार्क सम्मेलन में 16 जनवरी 1987 को की गई थी और 17 जनवरी 1987 से इसने अपना कार्य करना प्रारंभ किया। इसके प्रथम महासचिव बांग्लादेश के अब्दुल हसन थे। इसका पद प्रत्येक सदस्य को 2 वर्ष के बाद बारी बारी से मिलता है। प्रत्येक सदस्य बारी आने पर अपने किसी व्यक्ति को महासचिव के पद पर नियुक्त करता है। इसका मुख्यालय काठमांडू नेपाल में है।
वित्तीय प्रावधान ( SAARC’s Economic Solution )
सार्क के कार्यों के लिए प्रत्येक सदस्य के अंशदान को ऐच्छिक रखा गया है। कार्यक्रमों के व्यय को सदस्य देशों में बांटने के लिए तकनीकी समिति की सिफारिशों का सहारा लिया जाता है। सचिवालय के व्यय के लिए भारत 32% , पाकिस्तान 25% , नेपाल , बांग्लादेश एवं श्रीलंका प्रत्येक का 11% और भूटान एवं मालदीव का 5.5% अंशदान निर्धारित किया गया हैं ।
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सार्क की स्थापना के उद्देश्य ( SAARC Objectives in Hindi )
सार्क के स्थापना के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं –
- दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण की कामना करना तथा उनके आजीविका स्तर में सुधार करना।
- इस क्षेत्र में अधिक विकास सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक उन्नति की प्राप्ति करना और इस क्षेत्र के सभी व्यक्तियों के लिए प्रतिष्ठा के अवसर प्रदान करना ताकि लोग अपनी समस्त संस्थाओं को प्राप्त कर सके।
- दक्षिण एशिया के 6 देशों में सामूहिक आत्मविश्वास को शक्ति देना तथा उस को बढ़ावा देना।
- एक दूसरे की समस्याओं को पारस्परिक विश्वास सूझबूझ तथा अभी मूल्यांकन की दृष्टि से देखना।
- अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को बढ़ाना।
- सार्क जैसे उद्देश्य हेतु बनी अन्य अंतरराष्ट्रीय तथा क्षेत्र संस्थाओं के साथ सहयोग करना।
- सार्क देश एक दूसरे के संप्रभुता संपन्न समानता क्षेत्रीय अखंडता राजनीतिक स्वतंत्रता दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना तथा पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों का आदर करेंगे।
- सार्क देशों का सहयोग एक दूसरे तथा अन्य अनेक देशों के बीच हुए सहयोग को और अधिक बढ़ावा देगा।
- सार्क देशों का सहयोग एक दूसरे तथा अन्य अनेक देशों के बीच हुए सहयोग के विरुद्ध नहीं होगा।
निष्कर्ष ( Conclusion )
सार्क जिसे दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के नाम से जाना जाता है की स्थापना 8 दिसंबर 1985 को हुई। सार्क के मुख्य संस्थाओं में शिखर सम्मेलन , मन्त्रि-परिषद , स्थायी समिति , तकनीकी समितियां , सचिवालय आदि शामिल है । सार्क का मुख्य उद्देश्य सार्क देशों के लोगों के कल्याण की कामना करना तथा उनके आजीविका स्तर में सुधार करना। इसके साथ ही अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना है।
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FAQ Checklist
सार्क के कार्यों के लिए वित्तीय प्रावधान की क्या व्यवस्था की गयी हैं ?
सार्क के कार्यों के लिए प्रत्येक सदस्य के अंशदान को ऐच्छिक रखा गया है। कार्यक्रमों के व्यय को सदस्य देशों में बांटने के लिए तकनीकी समिति की सिफारिशों का सहारा लिया जाता है। सचिवालय के व्यय के लिए भारत 32% , पाकिस्तान 25% , नेपाल , बांग्लादेश एवं श्रीलंका प्रत्येक का 11% और भूटान एवं मालदीव का 5.5% अंशदान निर्धारित किया गया हैं ।
सार्क सचिवालय की संक्षेप व्याख्या करें।
सार्क सचिवालय की व्यवस्था अनुच्छेद 8 में की गई है। वैसे तो सचिवालय की स्थापना सार्क के गठन के बाद दूसरे सार्क सम्मेलन में 16 जनवरी 1987 को की गई थी और 17 जनवरी 1987 से इसने अपना कार्य करना प्रारंभ किया। इसके प्रथम महासचिव बांग्लादेश के अब्दुल हसन थे। इसका पद प्रत्येक सदस्य को 2 वर्ष के बाद बारी बारी से मिलता है। प्रत्येक सदस्य बारी आने पर अपने किसी व्यक्ति को महासचिव के पद पर नियुक्त करता है। इसका मुख्यालय काठमांडू नेपाल में है।
सार्क के कार्यकारी समिति की व्यवस्था किस अनुच्छेद में की गई है ?
कार्यकारी समिति की व्यवस्था चार्टर के अनुच्छेद 7 में की गई है। इसकी स्थापना स्थाई समिति द्वारा की जाती है।
सार्क के तकनीकी समितियों की क्या भूमिका हैं ?
इसकी व्यवस्था भी चार्टर के अनुच्छेद 6 में की गई है जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि इसके सदस्य होते हैं। ये समितियां अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रमों को लागू करने और उन में समन्वय पैदा करने एवं सहयोग के नए क्षेत्र ढूंढने आदि के प्रति उत्तरदाई होती है।
सार्क के स्थायी समिति की व्याख्या करें।
अनुच्छेद 5 के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है। इसकी वर्ष में एक बैठक होना आवश्यक है परंतु आवश्यकतानुसार इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है। इसमें भी मुख्यतः अंतर क्षेत्रीय प्राथमिकताएं निश्चित करना सहयोग के क्षेत्र ढूंढना एवं सहयोग के कार्यक्रमों को मॉनिटर करना आदि निर्धारित किए जाते हैं।
सार्क शिखर सम्मेलन क्या हैं ?
सार्क ( SAARC ) चार्टर के अनुच्छेद 3 के अनुसार सार्क देशों का प्रति वर्ष 1 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष भाग लेते हैं। नवंबर 2016 तक सार्क देशों के 19 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।
सार्क के मन्त्रि-परिषद की बैठक कब होती हैं ?
अनुच्छेद 4 के अनुसार सार्क ( SAARC ) सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की परिषद है। इसकी बैठक 6 माह में होनी आवश्यक है ,परंतु आवश्यकतानुसार कभी भी बैठक हो सकती है। इसमें मुख्यतः संघ की नीति निर्धारित करने , संघ के नए क्षेत्र खोजने एवं सामान्य हित के मुद्दों को निश्चित किया जाता है।
सार्क की संस्थाएं कौन कौन सी हैं ?
सार्क की संस्थाएं इस प्रकार है – सार्क शिखर सम्मेलन , मन्त्रि-परिषद ,स्थायी समिति , तकनीकी समिति , कार्यकारी समिति , सचिवालय , वित्तीय प्रावधान इत्यादि।
दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना कब हुई ?
क्षेत्रीय सहयोग हेतु भारत के पड़ोसी राज्यों का एक संघ 8 दिसंबर 1985 में बनाया गया। इस संघ को दक्षिण एशियाई प्रादेशिक सहयोग संघ के नाम से जाना जाता है।
सार्क के वर्तमान सदस्य देशों के नाम बताओं।
सार्क देशों में भारत, मालदीव ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,श्रीलंका ,भूटान एवं नेपाल सम्मिलित है। यद्यपि 13वें शिखर सम्मेलन में सार्क सदस्य देशों के बीच अफगानिस्तान को नए सदस्य बनाने के रूप में सहमति उभरी है।
सार्क के कुल कितने सदस्य देश हैं ?
सार्क के कुल 8 सदस्य देश हैं।
सार्क के तीन उदेश्य बताएं।
1.सार्क जैसे उद्देश्य हेतु बनी अन्य अंतरराष्ट्रीय तथा क्षेत्र संस्थाओं के साथ सहयोग करना।
2.सार्क देश एक दूसरे के संप्रभुता संपन्न समानता क्षेत्रीय अखंडता राजनीतिक स्वतंत्रता दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना तथा पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों का आदर करेंगे।
3.सार्क देशों का सहयोग एक दूसरे तथा अन्य अनेक देशों के बीच हुए सहयोग को और अधिक बढ़ावा देगा।