India-SriLanka Relationship भारत तथा श्रीलंका के आपसी सम्बन्ध लगभग 2000 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। भारत और श्रीलंका दोनों ही इंग्लैंड के अधीन थे। भारत ने 1947 में तथा श्रीलंका ने 1948 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की।
दोनों देशों में लोकतंत्र की स्थापना की गई और दोनों ने ही गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया, परंतु 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो श्रीलंका ने भारत की सहायता नहीं की जिससे भारतीयों की भावनाओं को ठेस लगी।
इस अध्याय में हम आज भारत और श्रीलंका के सम्बन्धो के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे । भारत के श्रीलंका के साथ सम्बन्धो का वर्णन इस प्रकार हैं –
Table of Contents विषय सूची
श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या ( Problem of Indian Ancestors in SriLanka )
श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या ( Problem of Indian Ancestors in SriLanka in Hindi )- भारत और श्रीलंका ( India-Sri Lanka ) के बीच तनाव का एक कारण श्रीलंका में बसे लाखों भारतीयों की समस्या रही है। श्रीलंका की स्वतंत्रता के समय भारतीय मूल के लगभग 10 लाख लोग वहां पर रह रहे थे। सन 1949 में श्रीलंका ने ‘नागरिकता अधिनियम’ पारित कर दिया। भारतीय मूल के लगभग सभी निवासियों ने इस अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता के लिए प्रार्थना की परंतु सन 1964 तक लगभग 1 लाख 34 हज़ार नागरिकों को ही नागरिकता प्राप्त हो सकी ।
श्रीलंका सरकार ने जिन भारतीयों को नागरिकता प्रदान नहीं की उन्हें तुरंत देश छोड़कर भारत चले जाने के लिए कहा। परंतु भारत सरकार का कहना था कि जो लोग कई पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं उनको निकालना गलत है और वह वहीं के नागरिक है ना कि भारत के। आज तक भी यह समस्या पूरी तरह से हल नहीं हो पाई है।
कच्चा टीबू द्वीप ( Kacha Teenu Island )
कच्चा टीबू द्वीप ( Kacha Teenu Island in Hindi ) – कच्चा टीबू विवाद को हल करने के लिए सन 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया। जनवरी 1978 में श्रीलंका को भारत ने 10 करोड़ का ऋण आसान शर्तों पर दिया। फरवरी 1979 में भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने श्रीलंका की यात्रा की और दोनों देशों के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण बने।
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तमिल समस्या ( Tamil Problem )
तमिल समस्या ( What is Tamil Problem in Hindi )- भारत और श्रीलंका ( India-SriLanka ) के संबंधों में तनाव का महत्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। सन 1984 में तमिल समस्या इतनी गंभीर हो गई थी कि दोनों देशों के संबंधों में काफ़ी तनाव रहा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बार-बार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।
सितंबर 1984 में श्रीलंका के राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने ने घोषणा की कि उनकी सरकार 95 हजार भारतीय तमिलों को नागरिकता प्रदान करने वाली है। दिसंबर 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तमिल जाति के निर्दोष लोगों की अंधाधुंध हत्याओं की कड़ी निंदा की और तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकालने की अपील की।
भारत ने श्रीलंका ( India-Sri Lanka ) के राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने के इस आरोप को निराधार बताया कि भारत द्वारा श्रीलंका में आतंकवादियों को प्रशिक्षण और हथियार दिए जा रहे हैं। जून 1985 में राजीव गांधी और जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने के बीच तमिल समस्या पर लंबी वार्ता हुई। मई 1986 में भारत के विदेश मंत्री पी. शिव शंकर ने श्रीलंका के राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने की इस आरोप की निंदा की कि भारत अमीर उग्रवादियों की मदद कर रहा है।
नवंबर 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने ने जातीय समस्या के हल के लिए बातचीत की परंतु कोई हल नहीं निकला।
तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता ( Compromise between the two Countries for the Solution of Tamil Problem )
तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता – काफी प्रयासों के फलस्वरूप तमिल समस्या को हल करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने ने 29 जुलाई 1987 को शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार तमिल बहुल उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों का विलय होगा ,जिसमें एक ही प्रशासनिक इकाई होगी। दोनों प्रांतों के लिए एक ही प्रांतीय परिषद, एक मुख्यमंत्री व एक मंत्रिमंडल होगा। समझौते को लागू करने की गारंटी भारत की है।
परंतु इस समझौते का बहुत विरोध किया गया। लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ( लिट्टे ) की हठधर्मिता के कारण हिंसा और तनाव का वातावरण बन गया। भारत ने श्रीलंका में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारतीय शांति सेना भेजी।
अक्टूबर 1987 में भारत सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सेनाध्यक्ष सुंदर जी और रक्षामंत्री पंत को श्रीलंका भेजा। श्रीलंका की संसद ने 12 नवंबर 1987 को प्रांतीय विधेयक परिषद पारित कर दिया। भारतीय शांति सेना ने श्रीलंका में शांति स्थापना में बहुत ही सराहनीय कार्य किया।
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शांति सेना की वापसी ( Return of Peace Army )
शांति सेना की वापसी ( Return of Peace Army ) – जनवरी 1989 में भारतीय शांति सेना की वापसी आरंभ हुई। जून 1992 को श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने घोषणा की कि 29 जुलाई 1989 तक भारतीय शांति सेना वापस चली जानी चाहिए, प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति प्रेमदास की एकतरफा घोषणा से काफी आश्चर्य हुआ। दोनों देशों की सरकारों में शांति सेना की वापसी को लेकर तनाव का वातावरण बन गया।
राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनने के पश्चात दोनों देशों की सरकारों में यह सहमति हुई कि शांति सेना 31 मार्च 1990 से पहले पूरी तरह वापस होगी। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने अपना वायदा पूरा किया और शांति सेना की आखरी टुकड़ी ने 25 मार्च को श्रीलंका को छोड़ दिया।
1995 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग भारत की यात्रा
1995 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग भारत की यात्रा – सन 1994 में श्रीमती चंद्रिका कुमारतुंग श्रीलंका की राष्ट्रपति बनी। मार्च 1995 में श्रीलंका के राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग भारत के दौरे पर आई और उन्होंने भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए भारतीय नेताओं के साथ बातचीत की। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव के साथ अपनी बातचीत के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापारिक तथा सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने तथा उन्हें अधिक मजबूत करने पर बल दिया गया।
श्रीलंका की राष्ट्रपति ने भारतीय पूंजीपततियों द्वारा श्रीलंका में उद्योग स्थापित करने तथा पूंजी निवेश करने की भी बात कही। इस बातचीत के द्वारा दोनों देशों द्वारा सार्क को और मजबूत करने तथा साप्ता को विकसित करने पर भी बल दिया गया ताकि इस क्षेत्र के देशों के व्यापार को अधिक बढ़ावा दिया जा सके। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत के साथ व्यापार के क्षेत्र में शांति रियायतों की भी मांग की।
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भारत के विदेश मंत्री की श्रीलंका यात्रा ,1997 ( Indian Foreign Minister’s visit to Srilanka )
भारत के विदेश मंत्री की श्रीलंका यात्रा ,1997 – भारत के विदेश मंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल भारत- श्रीलंका संयुक्त आयोग के अधिवेशन में भाग लेने के लिए 20 जनवरी 1997 को श्रीलंका गए। वहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत श्रीलंका की जातियां समस्या के समाधान में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने साप्ता ( SAPTA ) के अंतर्गत श्रीलंका को और व्यापारिक सुविधाएं देने की भी बात कही।
यद्यपि श्रीलंका की जातीय समस्या का भारत पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है और इसी कारण भारत में गुजराल की सरकार गिर गई फिर भी दोनों देशों के आपसी संबंध अच्छे ही कहे जा सकते हैं। दिसंबर 1998 में श्रीलंका की राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आई। इस दौरान दोनों देशों के बीच ‘मुक्त व्यापार संबंधी’ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए । इससे दोनों देशों के आपसी संबंधों में और सुधार हुआ।
समझौते के अनुसार ,भारत को सीमा शुल्क 3 वर्ष तथा श्रीलंका को 8 वर्ष की अवधि में समाप्त करना है। यह समझौता दोनों देशों के मध्य 1 मार्च सन 2000 से प्रभावी हो गया। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच विविध क्षेत्रों में द्विपक्षीय आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए ‘भारत श्रीलंका फाउंडेशन ‘की स्थापना की गई जिसके द्वारा दोनों देशों के बीच संस्कृति, व्यापार ,वाणिज्य ,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आदान-प्रदान को बढ़ाया जाएगा।
इस प्रकार स्पष्ट है कि ऐसा सहयोग जहां दोनों देशों के बीच संबंधों में दृढ़ता लाएगा वहां मुक्त व्यापार समझौते से दक्षिण एशिया में एक नए युग को जन्म मिलेगा।
अक्टूबर ,2000 में श्रीलंका के राष्ट्रपति का चुनाव ( Election of Sri Lanka’s President in Oct ,2000 )
अक्टूबर ,2000 में श्रीलंका के राष्ट्रपति का चुनाव – श्रीलंका में अक्टूबर, 2000 को हुए चुनाव में चंद्रिका कुमारतुंग श्रीलंका की राष्ट्रपति चुनी गई। राष्ट्रपति के रूप में पुनः सत्तासीन होने पर चंद्रिका कुमारतुंग ने बाजपेयी जी से 4 नवंबर ,2000 को दूरभाष के माध्यम से संपर्क किया और दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
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2001 में श्रीलंका में संसदीय चुनाव ( Parliament Election in Dec,2001 )
2001 में श्रीलंका में संसदीय चुनाव – श्रीलंका में 6 दिसंबर को हुए संसदीय चुनावों में राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग के नेतृत्व वाले पीपुल्स एलायंस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा और विपक्षी यूनाइटेड नेशनल पार्टी को रानिल विक्रमसिंघे जी के नेतृत्व में सफलता मिली । 9 दिसम्बर ,2001 को राष्ट्रपति के सरकारी निवास क्वीन्स हॉउस में रानिल विक्रमसिंघे को शपथ दिलाई गई ।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ,2001 ( Sri Lanka’s Prime Minister’s visit to India )
श्रीलंका के नवनियुक्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने सत्ता संभालने के बाद पहली तीन दिवसीय विदेश यात्रा 22 से 25 दिसंबर 2001 तक भारत की ही की। इस यात्रा के दौरान उनकी वार्ता मुख्य रूप से तमिल समस्या के समाधान पर ही केंद्रित रही। इस यात्रा के दौरान जारी संयुक्त घोषणा-पत्र में विक्रमसिंघे के शांति प्रयासों को भारत द्वारा पूर्ण समर्थन देने का आश्वासन दिया गया। इसमें श्रीलंका की क्षेत्रीय अखंडता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई।
श्रीलंका के राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग की भारत यात्रा ,2002 ( Sri Lanka’s President Visit to India )
21,अप्रैल ,2002 को श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग एक सप्ताह के दौरे पर भारत आई। इस यात्रा का उद्देश्य श्रीलंका और लिट्टे के बीच प्रस्तावित वार्ता के संदर्भ में भारत के शीर्ष नेताओं से विचार विमर्श करना था। इस दौरान भारत ने नार्वे में श्रीलंका और लिट्टे के बीच बातचीत में गतिरोध डालने का खंडन किया, बल्कि शांति प्रक्रिया जारी रखने का अपना समर्थन दिया।
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श्रीलंका के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ,2002 ( Sri Lanka’s Prime Minister’s visit to India )
श्रीलंका के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ,2002 – 8 जून 2002 को श्रीलंका प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे 4 दिन की भारत यात्रा पर आए। भारतीय प्रधानमंत्री के साथ बातचीत में श्रीलंका में शांति प्रक्रिया मुख्य मुद्दा था। भारत ने श्रीलंका को उसकी शांति प्रक्रिया में पूरा साथ देने का आश्वासन दिया।
इसके अतिरिक्त भारतीय वित्त एवं वाणिज्य मंत्रियों के साथ बातचीत में दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा हुई और दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते पर सहमत हुए।
इसके अतिरिक्त श्रीलंका की विशेष सेना को भारत द्वारा कमांडो ट्रेनिंग देने पर भी समझौता हुआ। इसके अतिरिक्त कोलंबो से बंगलौर की सीधी उड़ान सेवा शुरू करने पर भी सहमति हुई। भारत में इन वार्ताओं के दौरान 3 लाख टन गेहूं श्रीलंका को उपलब्ध कराने की पेशकश की एवं भारतीय उत्पादों की खरीद के लिए 10 करोड़ डॉलर की साख सुविधा की सहमति भारत ने प्रदान की ।
श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा ,2003 ( Sri Lanka’s President Visit to India )
श्रीलंका के राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग अप्रैल ,2003 के दूसरे सप्ताह मैं भारत की यात्रा पर रही। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्रीलंका में चल रही है शांति प्रक्रिया से भारतीय नेताओं को अवगत करना था। भारतीय नेताओं के साथ समक्ष अपने पक्ष को रखते हुए यह भी स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे जी ने ‘लिट्टे ‘के साथ शांति समझौता उन्हें विश्वास में लिए बिना ही संपन्न किया था।
राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग ने यहां तक आरोप लगाया था कि संघर्ष विराम के दौरान लिट्टे ने अपनी सैन्य शक्ति में भारी वृद्धि की तथा श्रीलंका के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। समझा जाता है कि राष्ट्रपति कुमारतुंग ने अपनी बातचीत में भारतीय नेताओं को इन्हीं धारणाओं से अवगत कराया है ताकि श्रीलंका की शांति प्रक्रिया में लगातार भारत का सहयोग मिलता रहे।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ,2004 ( Sri Lanka’s Prime Minister’s visit to India )
श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे 3 दिन की भारत यात्रा पर जुलाई , 2004 में आए थे। श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व में नवगठित सरकार से श्रीलंका के ढांचागत और ग्रामीण विकास में सहयोग तथा तमिल उग्रवादियों से शांति वार्ता के विषयों पर विचार विमर्श किया और आपसी संबंधों को मधुर बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई।
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श्रीलंकाई राष्ट्रपति की भारत यात्रा ,2004 ( Sri Lanka’s President Visit to India )
नवंबर 2005 में श्रीलंकाई राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग 5 दिन की भारत यात्रा की। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ विचार विमर्श के बाद संयुक्त बयान में कई मुद्दों पर पारस्परिक सहमति व्यक्त की जो अग्रलिखित है –
1.मछुआरों संबंधी मामलों हेतु एक संयुक्त कार्य दल गठन पर सहमति।
2 . एक द्वीपक्षीय रक्षा सहयोग समझौतों के साथ-साथ दलाली में एयर फील्ड के नवीनीकरण हेतु सहमति पत्र पर हस्ताक्षर के लिए दोनों देश सहमत।
3 . श्रीलंकाई नौसेना के युद्धपोत ‘सयूरा’ को ‘रिफिट’ करने को भी भारत की सहमति ।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति की भारत यात्रा ,2005 ( Sri Lanka’s President Visit to India )
श्रीलंकाई राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग 2 जून 2005 से तीन दिन की भारत यात्रा पर रही । इस यात्रा के दौरान उन्होंने भारत से द्विपक्षीय ,क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विचार विमर्श किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री से लिट्टे के साथ जारी शांति प्रक्रिया ,सुनामी, आपदा के परिपेक्ष्य में राहत एवं पुनर्वास कार्यो के लिए मिली अंतरराष्ट्रीय मदद को लिट्टे के साथ बांटने के लिए इस विद्रोही संगठन के साथ होने वाले समझौते के सम्बन्ध में जानकारी भी दी । भारत सरकार ने भी श्रीलंका को आश्वासन दिया कि भारत श्रीलंका के पुनर्निर्माण में पूर्ण सहयोग करेगा।
इस प्रकार भारत के सहयोग के कारण दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ी। वैसे भी श्रीलंका की महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण भारत के लिए श्रीलंका से मधुर एवं सौहार्दपूर्ण संबंध कायम रखने आवश्यक है।
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FAQ Checklist
भारत और श्रीलंका के संबंध कैसा हैं ?
भारत तथा श्रीलंका के आपसी सम्बन्ध लगभग 2000 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। भारत और श्रीलंका दोनों ही इंग्लैंड के अधीन थे। भारत ने 1947 में तथा श्रीलंका ने 1948 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की। दोनों देशों में लोकतंत्र की स्थापना की गई और दोनों ने ही गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया, परंतु 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो श्रीलंका ने भारत की सहायता नहीं की जिससे भारतीयों की भावनाओं को ठेस लगी।
श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या क्या थी ?
श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या ( Problem of Indian Ancestors in SriLanka )- भारत और श्रीलंका ( India-Sri Lanka ) के बीच तनाव का एक कारण श्रीलंका में बसे लाखों भारतीयों की समस्या रही है। श्रीलंका की स्वतंत्रता के समय भारतीय मूल के लगभग 10 लाख लोग वहां पर रह रहे थे। सन 1949 में श्रीलंका ने ‘नागरिकता अधिनियम’ पारित कर दिया। भारतीय मूल के लगभग सभी निवासियों ने इस अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता के लिए प्रार्थना की परंतु सन 1964 तक लगभग 1 लाख 34 हज़ार नागरिकों को ही नागरिकता प्राप्त हो सकी ।
भारत-श्रीलंका के बीच में कच्चा टीबू द्वीप विवाद क्या हैं ?
कच्चा टीबू द्वीप ( Kacha Teenu Island ) – कच्चा टीबू विवाद को हल करने के लिए सन 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया। जनवरी 1978 में श्रीलंका को भारत ने 10 करोड़ का ऋण आसान शर्तों पर दिया। फरवरी 1979 में भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने श्रीलंका की यात्रा की और दोनों देशों के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण बने।
भारत और श्रीलंका के संबंधों में तनाव का मुख्य कारण क्या रहा हैं ?
भारत और श्रीलंका ( India-Sri Lanka ) के संबंधों में तनाव का महत्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। सन 1984 में तमिल समस्या इतनी गंभीर हो गई थी कि दोनों देशों के संबंधों में काफ़ी तनाव रहा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बार-बार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।
तमिल समस्या के हल के लिए भारत-श्रीलंका में क्या समझौता हुआ ?
तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता – काफी प्रयासों के फलस्वरूप तमिल समस्या को हल करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने ने 29 जुलाई 1987 को शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार तमिल बहुल उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों का विलय होगा ,जिसमें एक ही प्रशासनिक इकाई होगी। दोनों प्रांतों के लिए एक ही प्रांतीय परिषद, एक मुख्यमंत्री व एक मंत्रिमंडल होगा। समझौते को लागू करने की गारंटी भारत की है।
तमिल समस्या के बाद भारत और श्रीलंका संबंध कैसे रहा ?
भारत और श्रीलंका समस्या ( Tamil Problem )- भारत और श्रीलंका के संबंधों में तनाव का महत्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। सन 1984 में तमिल समस्या इतनी गंभीर हो गई थी कि दोनों देशों के संबंधों में काफ़ी तनाव रहा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बार-बार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।
भारत-श्रीलंका को अलग करने वाली जल संधि का क्या नाम है?
पाक जलसंधि (Palk Strait)- भारत के तमिल नाडु राज्य और श्री लंका के उत्तरी प्रान्त के जाफना ज़िले के बीच में स्थित एक जलसंधि है। यह जलसंधि पूर्वोत्तर में पाक खाड़ी को दक्षिण-पश्चिम में मन्नार की खाड़ी से जोड़ती है। इसमें न्यूनतम गहराई 9.1 मीटर से कम है और यह जलसंधि 64 से 137 किमी चौड़ी तथा 136 किमी लम्बी है।
श्रीलंका के लिए भारत महत्वपूर्ण क्यों है?
श्रीलंका दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। बदले में भारत विश्व स्तर पर श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।दिसंबर 1998 में श्रीलंका की राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आई। इस दौरान दोनों देशों के बीच ‘मुक्त व्यापार संबंधी’ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए । इससे दोनों देशों के आपसी संबंधों में और सुधार हुआ।
तमिल समस्या क्या हैं ?
सितंबर 1984 में श्रीलंका के राष्ट्रपति जूनियर रिचर्ड जयवर्द्धने ने घोषणा की कि उनकी सरकार 95 हजार भारतीय तमिलों को नागरिकता प्रदान करने वाली है। दिसंबर 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तमिल जाति के निर्दोष लोगों की अंधाधुंध हत्याओं की कड़ी निंदा की और तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकालने की अपील की।