Non Alignment Nature , Features in Hindi भारतीय गुट-निरपेक्षता की विशेषताएं ,स्वरूप – दूसरे विश्वयुद्ध के बाद संसार दो विरोधी गुटों- सोवियत और अमेरिकी गुट में बंट चुका था और दूसरी तरफ एशिया एवं अफ्रीका के राष्ट्रों का स्वतंत्र अस्तित्व उभरने लगा था।
दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात शांति केवल तनावपूर्ण शांति थी। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा रूस दोनों शीत युद्ध में संलग्न थे। भारत शीत युद्ध को अंतरराष्ट्रीय शांति तथा राष्ट्रों की सुरक्षा तथा शांति के लिए पूर्णतया खतरनाक समझता था।
इसलिए शीत युद्ध का विरोध भारत की विदेश नीति का एक मूलभूत सिद्धांत बन गया। गुट-निरपेक्षता की नीति शांतिपूर्ण सह अस्तित्व और विभिन्न देशों में सहयोग का समर्थन करती है। दूसरे राष्ट्रों ने इस नीति का भरपूर स्वागत गुट-निरपेक्ष आंदोलन द्वारा किया है।
Table of Contents विषय सूची
गुट-निरपेक्षता का स्वरूप और विशेषताएं ( Non Alignment Features , Nature in Hindi )
गुट-निरपेक्षता का स्वरूप और विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
गुट-निरपेक्षता की नीति सैनिक सुरक्षा संधियों का विरोध करती है ( Policy of Non Alignment is Opposition to Military Security Alliance )
नेहरू जी के शब्दों में जब हम यह कहते हैं कि हम गुट-निरपेक्ष नीति पर चलते हैं तो स्पष्टतया इसका अर्थ यह है सैनिक गुटों से गुट-निरपेक्षता। गुट-निरपेक्षता प्रत्येक प्रकार की सैनिक सुरक्षा संधियों का विरोध करती है जो तनाव तथा शक्ति राजनीति की अपेक्षा और कुछ नहीं है। यह नाटो, सीटों तथा वारसा पेक्ट आदि सुरक्षा संधियों का विरोध करती है और उन्हें शीत युद्ध के साधन मानती है।
गुट-निरपेक्षता की नीति को मानने वालों का यह विचार है कि एक गठबंधन विश्व शांति के लिए सर्वाधिक खतरा है क्योंकि प्रत्येक गठबंधन का एक प्रतिकूल गठबंधन है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण में भय,घृणा तथा अविश्वास को उत्पन्न करता है। इसलिए यह इसका विरोध करती है ।
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पंचशील सिद्धांत गुटनिरपेक्षता की आधारशिला है ( Panch sheel is the basis of Non-Alignment Policy )
1961 में गुट-निरपेक्षता के तीन कर्णधारों -पं. जवाहरलाल नेहरू , नासिर और मार्शल टीटो ने इसके पांच आधार स्वीकार किये थे –
- सदस्य देश स्वतंत्र नीति पर चलता हो।
- सदस्य देश उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
- सदस्य देश किसी सैनिक गुट का सदस्य ना हो।
- सदस्य देश ने किसी बड़ी ताकत के साथ द्विपक्षीय समझौता ना किया हो।
- सदस्य देश ने किसी बड़ी ताकत को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति ना दी हो।
गुट-निरपेक्षता राष्ट्रीय हित प्राप्ति का साधन है ( Non-Alignment is a Means to Achieve National Interest )
प्रत्येक देश की विदेश नीति का लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति होता है। परंतु उस लक्ष्य प्राप्ति के साधन भिन्न हो सकते हैं। इस बारे में भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है। वह भली भांति जानता है कि किसी महाशक्ति से गठजोड़ करने पर स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। नेहरू जी ने कहा था -भारत किसी देश अथवा राष्ट्रों के समूह का पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता उसकी स्वतंत्रता तथा प्रगति एशिया के लिए महत्वपूर्ण अंतर डालेगी तथा इस कारण विश्व पर भी।
गुट-निरपेक्षता की नीति शांतिमय सह अस्तित्व पर विश्वास करती है ( The Policy of Non-Alignment Believes in Peaceful Co-Existence and Non-Interference )
गुट-निरपेक्षता की नीति शक्ति की राजनीति का विरोध करती है। नेहरू जी ने कहा था भारत को उन समूहों की शक्ति राजनीति से दूर रहना चाहिए जो एक दूसरे के विरुद्ध पंक्ति में खड़े हैं जिनके कारण भूतकाल में दो विश्वयुद्ध हुए तथा जो पुनः इसमें भी अधिक व्यापक स्तर पर तबाही की ओर ले जा सकती है।
अतः भारतीय गुट-निरपेक्षता की नीति शीत युद्ध तथा शक्ति की राजनीति के विरुद्ध शांतिपूर्ण सह अस्तित्व तथा पारस्परिक विकास में विश्वास करती है। भारत का दृढ़ विश्वास है कि सभी राष्ट्र शांतिपूर्ण ढंग से पारस्परिक सहयोग द्वारा विश्व शांति तथा समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं । विश्व के अधिकांश देश भारत के मित्र है।
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साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध ( This Policy is Opposed to Imperialism and Colonialism )
यह नीति साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का घोर विरोध करती है तथा राष्ट्रवादी प्रवृत्ति का समर्थन इसलिए करती है क्योंकि यह प्राचीन राष्ट्रों के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायक है।
जातिवाद तथा रंगभेद में विश्वास नहीं करती ( Non Alignment does not believe in Racism and Social Discrimination )
गुट-निरपेक्षता की नीति विश्व बंधुत्व में विश्वास करती है और इसके द्वारा विश्व शांति की कामना करती है इसलिए यह नीति जातिवाद तथा रंगभेद में विश्वास नहीं करती है।
यह नीति शस्त्रीकरण के पक्ष में नहीं है ( Policy of Non Alignment does not favour Armament )
गुटनिरपेक्षता की नीति शस्त्रीकरण के पक्ष में नहीं है। गुटनिरपेक्षता की नीति शास्त्री करण को हतोत्साहित करती है। यह आर्थिक समृद्धि तथा शांतिपूर्ण विकास को महत्व प्रदान करती है।
यह नीति लचीली हैं ( This Policy is Dynamic )
इस नीति में समय के अनुरूप ढलने की क्षमता है। यहां निर्भीकता तथा साहस के नीति है जो न्याय की रक्षा के लिए यदि आवश्यक हुआ तो युद्ध का सहारा भी ले सकती है।
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FAQ Checklist
गुट-निरपेक्षता की नीति सैनिक सुरक्षा संधियों का विरोध क्यों करती है ?
गुट-निरपेक्षता प्रत्येक प्रकार की सैनिक सुरक्षा संधियों का विरोध करती है जो तनाव तथा शक्ति राजनीति की अपेक्षा और कुछ नहीं है। यह नाटो, सीटों तथा वारसा पेक्ट आदि सुरक्षा संधियों का विरोध करती है और उन्हें शीत युद्ध के साधन मानती है।
राष्ट्रमंडल किसे कहते हैं ?
राष्ट्रमंडल मुख्यतः एशियाई और अफ्रीकी देशों का संगठन है जो पहले ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे। आरंभ में इस संघ को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल कहा जाता था परंतु आज इस संघ को केवल राष्ट्रमंडल ही कहा जाता है। इसके सारे सदस्य देशों को समान स्तर प्राप्त है और किसी भी देश को दूसरे देश पर किसी प्रकार की सर्वोच्चता प्राप्त नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के बारे में भारत की क्या नीति है ?
भारत पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर संभव प्रयास में रहा है कि आतंकवाद को समूल रूप से समाप्त करने के सामूहिक प्रयास किए जाएं। भारत इस समस्या की ओर लगातार क्षेत्रीय संगठनों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र में भी ज्वलंत समस्या के रूप में विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित करता रहा है। भारत ने अपने इस नीति के आधार पर 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद इस समस्या को विश्व से पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिए अमेरिका को आतंक विरोधी कार्यवाही में हर संभव सहयोग देने की अपनी वचनबद्धता बार-बार दोहराई थी।
पड़ोसी देशों के प्रति भारत की नीति का वर्णन करें।
भारत की विदेश नीति सभी देशों विशेष रूप से अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रता पूर्ण संबंध बनाए रखने की है। यद्यपि पाकिस्तान ने भारत पर कई बार आक्रमण किया तथा अब भी भारत में आतंकवादियों को भेजकर भारत में अशांति फैलाने का प्रयत्न कर रहा है फिर भी भारत ने सदा ही पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।
मानव अधिकारों के प्रति भारतीय नीति क्या है ?
भारत की विदेश नीति में मानव अधिकारों के प्रति सम्मान को विशेष महत्व दिया गया है। 1948 के मानव अधिकारों की घोषणा को न केवल भारत ने स्वीकार किया है बल्कि संसार के देशों में इन अधिकारों को सम्मान प्राप्त हो इस ओर भी ध्यान दिया है। लगभग 4 दशक बीतने के बाद भी संसार के विकसित व विकासशील दोनों प्रकार के देशों में मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।