Features ,Characteristics of New Public Administration in Hindi – लोक प्रशासन का विषय बहुत पुराना नहीं है । लोक प्रशासन शब्द का प्रयोग सबसे पहले 18वीं सदी के अंत मे किया गया था और 1926 में लोक प्रशासन के विषय पर L D White द्वारा प्रथम पाठ्य पुस्तक लिखी गई और इस तरह 1927 में प्रो विलोबी ने भी इस विषय से संबंधित पुस्तक लिखी थी।
Table of Contents विषय सूची
नवीन लोक प्रशासन और नवीन लोक प्रबंध की धारणा ( Concept of New Public Administration and New Public Management in Hindi )
1950 से प्रशासन के विचारों की नवीन लहर और लोक प्रशासन की तकनीकी विकास के कारण इसके विषय क्षेत्र और स्वरूप में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिले हैं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
समय ,आवश्यकता और तकनीकी विकास के कारण, मानव की सोच, विचार और धारणाओं में बदलाव आता रहता है जिसका प्रभाव समाज की लगभग प्रत्येक पक्ष पर पड़ता है। सामाजिक विज्ञान भी इसके प्रभाव से बच नहीं सकते ।
सन 1960 में अमेरिका के समाज, राजनीति और प्रशासन में राज्य की आवश्यकता से अधिक वियतनाम युद्ध में भाग लेने के कारण एक संकट जैसा महसूस किया जाने लगा । ऐसी स्थिति में वहां एक धारा ने जन्म लिया जिसे देश की आर्थिक ,सामाजिक और राजनीतिक ढांचे में महसूस किया गया ।
सामाजिक विज्ञान और राजनीति शास्त्र की तरह लोक प्रशासन में आई नवीन विचारधारा अथवा लहर को नवीन लोक प्रशासन का नाम दिया गया है। नवीन लोक प्रशासन की धारणा के अनुसार प्रशासन मूल्य केंद्रित होना चाहिए ना की मूल्य रहित । इस लहर ने लोक प्रशासन की परंपरावादी व प्राचीन उद्देश्य ,कार्यकुशलता और संयम को भी गलत व अधूरा करार दिया है।
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नवीन लोक प्रशासन की लहर-जन्म और विकास ( New Public Administration -Origin and Development in Hindi )
नवीन लोक प्रशासन की धारणा का जन्म 1968 ई. में हुआ और प्रो. वाल्डो को इसका जन्मदाता माना जाता हैं । प्रो. वाल्डो ने 1968 ई. में मीनू ब्रुक में एक सेमिनार का आयोजन किया । यह एक युवा सम्मेलन था क्योंकि इसमें लगभग 33 नवयुवक विद्वानों और लोक प्रशासन की विशेषज्ञों ने भाग लिया । बाद में यह गोष्ठी मीनू ब्रुक सम्मेलन ( Minnobrook Conference ) के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
इस कॉन्फ्रेंस के आधार पर सन 1972 में फ्रेंक मैरिनी ( Frank Marini ) ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ‘ नवीन लोक प्रशासन ‘की दिशाओं -मिन्नोब्रुक स्वरूप था । इस पुस्तक के प्रकाशन से नवीन लोक प्रशासन की धारणा को मान्यता प्राप्त हुई।
इसी वर्ष प्रो.डी वाइट वाल्डो द्वारा लिखी एक अन्य पुस्तक का प्रकाशन हुआ जिसका नाम’ अशांति काल मे लोक प्रशासन ‘( Public Administration in a time of Turbulance थी । इन दोनों पुस्तकों में मीनुब्रुक कॉन्फ्रेंस का सारांश था ।
यह बात याद रखनी चाहिए कि चाहे नवीन लोक प्रशासन की धारणा का जन्मदाता मीनू ब्रुक कॉन्फ्रेंस को स्वीकारा जाता हैं , परन्तु इसका बीज बहुत पहले ही बोया जा चुका था । अवस्थी माहेश्वरी के अनुसार-नवीन लोक प्रशासन के जन्म और विकास में निम्नलिखित घटनाएं मिल पत्थर के सामान थी –
- सार्वजनिक सेवाओं के लिए उच्च शिक्षा संबंधी हनी रिपोर्ट-1967
- लोक प्रशासन के सिद्धान्त और व्यवहार संबंधी कॉन्फ्रेंस – 1967
- फ्रैंक मैरिनी द्वारा लिखी पुस्तक ‘नवीन लोक प्रशासन की दिशाओं मीनुब्रुक स्वरूप – 1971
- डी.वाइट वाल्डो द्वारा लिखित पुस्तक ‘अशांति काल में लोक प्रशासन-1971
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सार्वजनिक सेवाओं के लिए उच्च शिक्षा संबंधी हनी रिपोर्ट-1967 ( Honey Report on Higher Education for Public Services-1967)
अमेरिकी संस्था ‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन ने सन 1966 में सिराकुज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन सी हनी को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में लोक प्रशासन का स्वतंत्र विषय के रूप में मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा गया ।
1967 में सी जॉन हनी ने अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उसने लोक प्रशासन के क्षेत्र को और विस्तृत और व्यापक बनाने पर बल दिया। उसके अनुसार लोक प्रशासन का क्षेत्र – विधानपालिका, कार्यपालिका , न्यायपालिका हैं ।
प्रो.हनी के अनुसार लोक प्रशासन के क्षेत्र का विस्तार करने में निम्नलिखित चार बाधाएं है –
- अनुशासन से संबंधित साधनों की कमी ( विद्यार्थी, अध्यापक और शोध विभाजन )
- अनुशासन के स्तर के बारे में मतभेद की ‘लोक प्रशासन एक विज्ञान है अथवा कला ?
- संस्थागत कमजोरी लोक प्रशासन के विभागों की कमी।
- लोक प्रशासन के विद्वानों और व्यवहारिक प्रशासन में अंतर।
प्रो. हनी ने अपनी रिपोर्ट में लोक प्रशासन की इन समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ सुझाव भी दिए। हनी की यह रिपोर्ट कुछ समय में अमेरिका के लोग प्रशासन के विशेषज्ञों के लिए चर्चा का विषय बन गई। आलोचकों ने इस रिपोर्ट की कमी की तरफ ध्यान करते हुए कहा कि इसमें उस समय अमेरिकी विभाजन और उथल-पुथल हुए समाज के प्रति लोक प्रशासन की भूमिका संबंधी कुछ नहीं कहा गया है।
परंतु इस रिपोर्ट की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें लोक प्रशासन के कई विद्वानों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और समकालीन समाज में लोक प्रशासन के दायित्व के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित किया ।
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लोक प्रशासन के सिद्धांत और व्यवहार संबंधी कॉन्फ्रेंस – 1967 ( Conference on Principles and Practice of Public Administration – 1967 )
अमेरिकी एकेडमी ऑफ़ पॉलीटिकल एंड सोशल साइंस ने सन 1987 में फिलाडेल्फिया में एक सम्मेलन बुलाया जिसका मुख्य उद्देश्य लोक प्रशासन के सिद्धांत व्यवहार क्षेत्र उद्देश्य और अध्ययन प्रणाली पर विचार करना था।
जेम्स .सी.चाल्सवर्थ जो इस कॉन्फ्रेंस के प्रधान थे ,के अनुसार इस सम्मेलन की मूल भावना, लोक प्रशासन और सरकार के व्यवहारिक रूप और विचार के विषय का अध्ययन करना है। उनके अनुसार इस सम्मेलन में भाग ले रहे विद्वान- लोक प्रशासन के संबंध में मजबूत और संक्षेप दृष्टिकोण अपनाने के पक्ष में है। वह लोक प्रशासन के महत्व का दार्शनिक दृष्टि से मूल्यांकन करना चाहते हैं।
इस सम्मेलन में विद्वानों ने लोक प्रशासन को अध्ययन का विषय , गतिविधि का क्षेत्र और एक व्यवसाय के रूप में बताया हैं। कुछ विद्वानों ने लोक प्रशासन की परिभाषा ,लोक हित का प्रशासन के रूप में किया और अन्य विद्वानों ने इसे सरकारी प्रशासन का नाम दिया। इस सम्मेलन किया विशेषता यह थी कि विभिन्न विद्वानों में प्रशासन के स्वरूप और परिभाषा के संबंध में सहमति नहीं हुई।
- इस कॉन्फ्रेंस में कुछ ऐसे तथ्य सामने आएं जिन पर विद्वान एकमत थे और जो आगे चलकर मीनू ब्रुक सम्मेलन का आधार बने। इनमें से कुछ विशेष बातों का वर्णन इस प्रकार है-
- लोक प्रशासन के विभिन्न अंगों का मुख्य कार्य नीति निर्माण है। इसलिए नीति प्रशासन का विभाजन करना उचित नहीं है।
- नौकरशाही का अध्ययन क्रियात्मक और रचनात्मक दोनों रूपों में किया जाना चाहिए।
- लोक प्रशासन और व्यापारिक प्रशासन दोनों के परीक्षण को इकट्ठा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह दोनों कुछ कम महत्वपूर्ण बातों में ही समान है।
- लोक प्रशासन को व्यवसाय के रूप में राजनीति शास्त्र के व्यवसाय व अनुशासन से पृथक रखना चाहिए।
- आदर्श प्रशासकीय सिद्धांत और लोक प्रशासन की वर्णनात्मक विश्लेषण सिद्धांत दोनों ही अस्थिर है ।
- भावी प्रशासकों को प्रशिक्षण व्यवसायिक केंद्रों में दिया जाना चाहिए । लोक प्रशासन के पाठ्य क्रम में न केवल प्रशासकीय संगठन और प्रणाली को शामिल किया जाना चाहिए अपितु मनोवैज्ञानिक ,वित्तीय, समाज शास्त्र और मानवीय शास्त्र के अध्ययन को इसका अभिन्न भाग समझना चाहिए ।
- इस कॉन्फ्रेंस के अनुसार लोक प्रशासन ,समाज की समस्याओं का योग्य हल नहीं बात सकता ।
- लोक प्रशासन एक अनुशासन हैं परन्तु यह समकालीन सामाजिक विद्वानों की अध्ययन प्रणालियों को भी नहीं अपना सका ।
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मीनू ब्रुक सम्मेलन -1968 ( Menu Brooke Conference -1968 )
सार्वजनिक सेवाओं के लिए उच्च शिक्षा संबंधी हनी रिपोर्ट 1967 और लोक प्रशासन सिद्धान्त एवं व्यवहार संबंधी सम्मेलन 1967 को नवीन लोक प्रशासन की धारा का असली जन्मदाता मीनुब्रुक सम्मेलन को ही माना जाता हैं ।
जैसे की पहले ही कहा गया है कि यह एक युवा सम्मेलन था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि फिलाडेल्फिया कॉन्फ्रेंस में 35 वर्ष से ऊपर जिनमें से अधिकांश 50-60 वर्ष के विद्वान थे ने भाग लिया था परंतु समय की मांग के अनुसार युवा विद्वानों के विचार जानना भी आवश्यक था ।
इसलिए लोक प्रशासन ने केवल युवा विद्वानों और विशेषज्ञों को ही मीनू ब्रुक कॉन्फ्रेंस में बुलया गया । संक्षेप में इन युवा विद्वानों की आपसी बहस के कारण ही नवीन लोक प्रशासन की विचारधारा ने जन्म लिया ।
मीनुब्रुक कॉन्फ्रेंस ने युवा विचारकों के विचार निम्नलिखित तीन बातों तक सीमित हैं जो कि इस प्रकार –
- समाज में लोक प्रशासन की भूमिका क्या होनी चाहिए और क्या इसे सामाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए ।
- लोक प्रशासन को पूरी तरह मूल्य निरपेक्ष अथवा मूल्य केंद्रित होना चाहिए।
- परंपरावादी अथवा समकालीन लोक प्रशासन के रूपों को सामने लाना क्योंकि उस समय प्रशासन समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार प्रबंध करने में सफल नहीं हो सका था।
लोक प्रशासन के अलग -अलग पक्षों पर विचार विमर्श करने के पश्चात नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों के अनुसार लोक प्रशासन को सामाजिक समस्याओं और तेजी से बदलती परिस्थितियों के प्रति सचेत होना चाहिए । उनके अनुसार लोक प्रशासन को मूल्य विहीन न होते हुए मूल्य केंद्रित होना चाहिए ।
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डी.वाइट वाल्डो द्वारा लिखित पुस्तक ‘अशांति काल में लोक प्रशासन-1971 ( The book ‘Public Administration in a Time of Unrest-1971’ written by D.Wight Waldo )
नवीन लोक प्रशासन की धारणा और इसके स्वरूप को जन्म देने के श्रेय इस तरह मीनुब्रुक कॉन्फ्रेंस को जाता हैं । परंतु इस धारणा को बल देने में ,फ्रैंक मैरिनी द्वारा लिखित पुस्तक ‘नवीन लोक प्रशासन ‘की दिशाएं-मीनुब्रुक स्वरूप ‘और प्रो.डी.वाइट वाल्डो द्वारा लिखित पुस्तक ‘अशांति काल में लोक प्रशासन-1971 की बड़ी देन हैं । इन दोनों पुस्तकों में मीनुब्रुक कॉन्फ्रेंस का ही निचोड़ हैं ।
नवीन लोक प्रशासन की विशेषताएं ( Features , Characteristics of New Public Administration in Hindi )
लोक प्रशासन में आई ‘नवीन लोक प्रशासन ‘ की धारणा ने लोक प्रशासन को एक विशेष रूप दिया है। इसने प्रशासन के क्षेत्र में इसके उद्देश्य और विषय में नए विचारों को जन्म दिया है। नवीन लोक प्रशासन की धारणा के अनुसार लोक प्रशासन को सामाजिक समस्याओं के चेतन रहना चाहिए और इस द्वारा प्रशासन को लोक कल्याण का दायित्व सौंपा गया।
नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन की परंपरागत धारणा को भी नया रूप देने की कोशिश की है। इसके अनुसार लोक प्रशासन का नारा संयमी अथवा कार्यकुशलता नहीं होना चाहिए और ना ही इसे मूल्य रहित होना चाहिए। नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों के अनुसार इसमें सदाचार नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के गुण पाए जाते हैं।
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नवीन लोक प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-
समानता के उद्देश्य पर अधिक बल ( more emphasis on the objective of equality )
परंपरागत लोक प्रशासन में जहां संयमी और कार्यशीलता पर अधिक बल दिया था वही नवीन लोक प्रशासन के विद्वानों ने सामाजिक न्याय पर अधिक बल दिया है। उनके अनुसार प्रशासन का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय है। इसलिए प्रशासकीय अधिकारियों को सामाजिक न्याय के प्रति वचनबद्ध होना चाहिए।
मूल्य विहीन अथवा मूल्य निरपेक्षता की धारणा स्वीकार ( Accept the concept of valueless or value neutrality )
नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन और प्रबंधकीय अधिकारियों के मूल्य विहीन अथवा मूल्य निरपेक्ष होने की धारणा को स्वीकार किया है। इसके विपरीत नवीन लोक प्रशासन ने अधिकारियों की उन उद्देश्यों के प्रति व्यक्तिगत वचनबद्धता की वकालत की है जिसे प्राप्त करने के लिए प्रशासकीय व्यवस्था स्थापित की जाती है।
लोक प्रशासन लोकतंत्रीय मानवीय उद्देश्यों की प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन ( Public administration is an important means of achieving democratic human objectives )
नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों ने लोक प्रशासन का समाज के मार्गदर्शक और नियंत्रण के साधन के रूप में विरोध किया है। वह लोक प्रशासन को लोकतंत्रीय मानवीय उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण साधन मानते हैं। उनके अनुसार सार्वजनिक प्रशासकीय संगठन का उद्देश्य ,आर्थिक ,सामाजिक और मानव की बाधाओं को कम करना और समस्त के जीवन स्तर में सुधार करना है।
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मानव पर अधिक बल ( human overpowering )
नवीन लोक प्रशासन ने प्रशासकीय संगठन में मानव और उसके विकास पर अधिक बल दिया है। चाहे परंपरागत लोक प्रशासन में भी व्यक्ति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था परंतु नवीन लोक प्रशासन के लिए वर्तमान उथल-पुथल का महत्वपूर्ण केंद्र मानव और उसका विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ संबंध है।
योग्यता का विकास ( ability development )
नवीन लोक प्रशासन के विद्वानों की अन्य रुचि लोक प्रशासन की कार्यकुशलता का विकास करना था ताकि या सार्वजनिक कार्यों और सेवाओं को प्रभावशाली ढंग से करने के योग्य हो सके। गोलेम वस्की ने नवीन लोक प्रशासन के निम्नलिखित पांच मुख्य विशेषताओं का वर्णन किया है-
- नवीन लोक प्रशासन प्राचीन भावना जिसके अनुसार मानव उत्पादन का साधन समझा जाता था को आंख से ओझल करता है। इसके अनुसार नवीन लोक प्रशासन मानव के पूर्ण शुद्ध होने की क्षमता में विश्वास रखता है।
- नवीन लोक प्रशासन मूल्य केंद्रित और उद्देश्य केंद्रित है। यह व्यक्ति और संगठन की नैतिक गुणों में विश्वास रखता है।
- नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों के अनुसार लोक प्रशासन का उद्देश्य सामाजिक न्याय है जो मानवीय विकास के लिए आवश्यक है।
- नवीन लोक प्रशासन तर्कशील है। इसे ग्राहक की आवश्यक वस्तुओं की सेवाओं की पूर्ति के साथ ग्राहकों कैसे ,कब और क्या चाहिए कि आजादी प्रदान करनी चाहिए।
- नवीन लोक प्रशासन नवीन खोजो और परिवर्तन होने वाले को ध्यान में रखता है।
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नवीन प्रबन्ध की धारणा (Concept of New Managment in Hindi )
1980 से राजनीतिक और प्रबंधकीय सोच में यह एक भ्रम पाया जाता रहा है कि राज्य सामाजिक कल्याण का एक साधन है। दूसरे शब्दों में समूचे संसार में राज्य स्वयं को लगातार आलोचना के क्षेत्र में घिरा हुआ पाता है और इस तरह सरकार की शासन करने की शक्ति भी विवाद का विषय बनी हुई है। आजकल लोग सरकार में कम विश्वास रखते हैं ।
सार्वजनिक प्रबंध की प्रारंभिक शक्ति सैद्धांतिक तौर पर दो मुख्य साधनों से पैदा होती है। पहला सिद्धांत संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदा हुआ जहां की प्रचलित प्रमुख विचार के अनुसार जो लाभ कमाने वाले प्रबंधकीय तकनीक निजी उद्यमों में अस्तित्व में आए और परीक्षण किए गए को लोक प्रशासन में प्रभावशाली और कुशलता सहित लागू किया जा सकता है ।
दूसरा साधन नव रूढ़िवादी अथवा नव उचित है जो कि मुख्य तौर पर समाज के लिए सर्वोत्तम मंडी तो समस्त समाज को मार्गदर्शन करता है। उसी तरह यह राज्य के हित के विपरीत है और इसलिए राज्य के लिए नियम रहित निजीकरण और ठेके की व्यवस्था करने की दलील देता है।
सार्वजनिक प्रबंध की धारणा नई पैदा होने के कारण अच्छे विचार की नहीं है। यह वास्तव में सार्वजनिक और प्रबंध का मिश्रण है और यह ऐसे विचारों पर बल देता है जो कि राजनीति शास्त्र और व्यापारिक प्रबंध से लिए गए हैं।
यह मौलिक संवैधानिक सिद्धांत, कानून का शासन ,एक्टिविटी साफ सुथरा आदि और प्रबंधकीय भाग जैसे की प्रभावशीलता ,योग्यता और कीमत लाभ निरीक्षण और कुछ अन्य है जो सर्वोच्च सिद्धान्त माने जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक प्रबंध का अर्थ है -कि सामूहिक समस्याओं के हल के लिए अपनाई गई प्रबंधकीय तकनीक ।
लोक प्रशासन में सार्वजनिक प्रबंध की लहर बड़े-बड़े प्रशासकीय नेताओं जैसे कि अमेरिका में राजनीतिक नियुक्तियां और उनके द्वारा निभाई भूमिका पर बल देती है। इस लहर का जन्म अमेरिका में 1970 के अंत में 1980 के आरंभ में हुआ । सार्वजनिक प्रबंध का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ कार्यकुशलता और प्रभाविता को प्राप्त करना है।
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निष्कर्ष ( Conclusion )
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि लोक प्रशासन की धारणा ने लोक प्रशासन के विषय को नया रूप दिया हैं । इसकी कमजोरियों को समझते हुए इसने हमारे समय के बौद्धिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है । नवीन लोक प्रशासन ने प्रशासकीय संगठन में मानव और उसके विकास पर अधिक बल दिया है ।
सार्वजनिक प्रबंध की धारणा नई पैदा होने के कारण अच्छे विचार की नहीं है। यह वास्तव में सार्वजनिक और प्रबंध का मिश्रण है और यह ऐसे विचारों पर बल देता है जो कि राजनीति शास्त्र और व्यापारिक प्रबंध से लिए गए हैं। नवीन लोक प्रशासन समानता के उद्देश्य पर अधिक बल देता है ।
FAQ Checklist
नवीन लोक प्रशासन की धारणा का जन्म कब हुआ ?
नवीन लोक प्रशासन की धारणा का जन्म 1968 ई. में हुआ और प्रो. वाल्डो को इसका जन्मदाता माना जाता हैं । प्रो. वाल्डो ने 1968 ई. में मीनू ब्रुक में एक सेमिनार का आयोजन किया । यह एक युवा सम्मेलन था क्योंकि इसमें लगभग 33 नवयुवक विद्वानों और लोक प्रशासन की विशेषज्ञों ने भाग लिया । बाद में यह गोष्ठी मीनू ब्रुक सम्मेलन ( Minnobrook Conference ) के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
नवीन लोक प्रशासन का निष्कर्ष क्या हैं ?
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि लोक प्रशासन की धारणा ने लोक प्रशासन के विषय को नया रूप दिया हैं । इसकी कमजोरियों को समझते हुए इसने हमारे समय के बौद्धिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है । नवीन लोक प्रशासन ने प्रशासकीय संगठन में मानव और उसके विकास पर अधिक बल दिया है ।
नवीन प्रबन्ध की धारणा क्या हैं ?
लोक प्रशासन में सार्वजनिक प्रबंध की लहर बड़े-बड़े प्रशासकीय नेताओं जैसे कि अमेरिका में राजनीतिक नियुक्तियां और उनके द्वारा निभाई भूमिका पर बल देती है। इस लहर का जन्म अमेरिका में 1970 के अंत में 1980 के आरंभ में हुआ । सार्वजनिक प्रबंध का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ कार्यकुशलता और प्रभाविता को प्राप्त करना है।
नवीन लोक प्रशासन की दो विशेषताएं।
नवीन लोक प्रशासन प्राचीन भावना जिसके अनुसार मानव उत्पादन का साधन समझा जाता था को आंख से ओझल करता है। इसके अनुसार नवीन लोक प्रशासन मानव के पूर्ण शुद्ध होने की क्षमता में विश्वास रखता है।
नवीन लोक प्रशासन मूल्य केंद्रित और उद्देश्य केंद्रित है। यह व्यक्ति और संगठन की नैतिक गुणों में विश्वास रखता है।
नवीन लोक प्रशासन की महत्व क्या हैं ?
नवीन लोक प्रशासन ने प्रशासकीय संगठन में मानव और उसके विकास पर अधिक बल दिया है। चाहे परंपरागत लोक प्रशासन में भी व्यक्ति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था परंतु नवीन लोक प्रशासन के लिए वर्तमान उथल-पुथल का महत्वपूर्ण केंद्र मानव और उसका विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ संबंध है।
लोक प्रशासन मानवीय उद्देश्यों की प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन कैसे हैं ?
लोक प्रशासन को लोकतंत्रीय मानवीय उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण साधन मानते हैं। उनके अनुसार सार्वजनिक प्रशासकीय संगठन का उद्देश्य ,आर्थिक ,सामाजिक और मानव की बाधाओं को कम करना और समस्त के जीवन स्तर में सुधार करना है।
नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन को नया रूप कैसे दिया ?
नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन की परंपरागत धारणा को भी नया रूप देने की कोशिश की है। इसके अनुसार लोक प्रशासन का नारा संयमी अथवा कार्यकुशलता नहीं होना चाहिए और ना ही इसे मूल्य रहित होना चाहिए।