India-China relations from history to present भारत-चीन संबंध इतिहास से वर्तमान तक

India-China Relations : भारत-चीन संबंध इतिहास से वर्तमान तक

भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध भारत-चीन संबंध राजनीति विज्ञान

India China Relations भारत-चीन संबंध – भारत-चीन दोनों पड़ोसी एवं विश्व की दो उभरती शक्तियाँ हैं। दोनों देशों के बीच एक लम्बी सीमा रेखा हैं। भारत तथा चीन के आपसी सम्बन्धों का इतिहास बहुत ही पुराना हैं और दोनों देशों के बीच प्राचीनकाल से ही घनिष्ठ सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार चीन की भूमि पर हुआ।

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Table of Contents विषय सूची

भारत-चीन संबंध इतिहास से वर्तमान तक ( India-China relations from history to present )

चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात नालंदा विश्वविद्यालय एवं तकशिला विश्वविद्यालय को चुना था क्योंकि उस काल में ये दो प्रमुख विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण थे। उस काल में यूरोप के लोग जंगली अवस्था में थे। भारत-चीन संबंध को विस्तार से आइये जानते हैं –

चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना ( Establishment of Communist rule in China )

सन 1949 में चीन में जब साम्यवादी शासन की स्थापना हुई तो भारत उसे मान्यता देने वाले पहले कुछ देशों में से एक था। उसके पश्चात चीन तथा भारत के सम्बन्ध मित्रतापूर्ण रहे। सन 1954 में चीन के प्रधानमंत्री चाओ-एन-लाई भारत आए और दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने पंचशील के सिद्धांतों को अपने संबंधों का आधार माना। ये सिद्धांत सह-अस्तित्व पर आधारित है।

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दलाई लामा विवाद ,1959 ( Dalai Lama controversy, 1959 )

सन 1959 में दलाई लामा, जो तिब्बत के धार्मिक गुरु माने जाते हैं, को भारत में शरण दिए जाने के पश्चात चीन ने भारत के प्रति शत्रुता पूर्ण रवैया अपनाना आरंभ कर दिया। 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत के कई हजार वर्ग मील क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। यद्यपि अन्य देशों के दबाव के कारण चीन ने एक तरफा युद्ध बंद करने की घोषणा कर दी तथापि इससे भारत तथा चीन के संबंध बहुत बिगड़ गए।

भारत-पाक युद्ध 1965 ,चीन ने पाक का समर्थन किया ( Indo-Pak war 1965, China supported Pakistan )

सन 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो चीन ने पाकिस्तान का ना केवल समर्थन किया ,बल्कि हथियार देकर भी उसकी सहायता की। जब चीन ने भारत को पराजित होते देखा ,तो उसने भारत पर आक्रमण करने की धमकी भी दी। सन 1971 में जब पाकिस्तान ने पुनःभारत पर आक्रमण किया तो चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया और लड़ाई के लिए उसे हथियार भी दिए। इस प्रकार दोनों देशों के सम्बन्धो में बहुत कटुता पूर्ण वातावरण रहा।

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सन 1976 तक भारत-चीन का सम्बन्ध तनावपूर्ण (India-China relations strained till 1976 )

सन 1976 तक दोनों देशों के संबंध बहुत ही तनावपूर्ण रहे, क्योंकि चीनी नेता माओ त्से तुंग भारतीय नेताओं को प्रतिक्रियावादी मानते थे और उनके साथ किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं थे। उनकी मृत्यु के पश्चात दोनों देशों ने राजपूतों का आदान प्रदान किया।

सन 1977 में जब भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और श्री मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने तो चीन के साथ संबंधों को सुधारने के लिए तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई बीजिंग गए और उन्होंने चीनी नेताओं के साथ बातचीत की परंतु दोनों देशों के बीच संबंधों में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ।

भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा ,1984 ( First visit of Indian Prime Minister to China, 1984 )

सन 1980 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी पुनःभारत की प्रधानमंत्री बनी, तो उन्होंने चीन के साथ संबंधों को सुधारने का प्रयत्न जारी रखा। सन 1984 में भारत तथा चीन के बीच एक व्यापार संबंधी समझौता हुआ। सन 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन की यात्रा पर गए। यह पिछले लगभग 34 वर्षों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा थी।

भारत-चीन सीमा विवाद का हल ढूंढने के लिए भारत-चीन संयुक्त कार्यकारी समूह की स्थापना की गई, जिससे दोनों देशों के संबंधों में कुछ सुधार होना आरंभ हुआ।

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चीन के प्रधानमंत्री ली-पैंग की भारत यात्रा दिसंबर, 1991 ( Chinese Prime Minister Li-Peng’s visit to India )

भारत और चीन के मध्य वाणिज्य, प्राविधिकी, संस्कृति आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए 90 के दशक में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। इसी प्रयास में चीन के प्रधानमंत्री ली-पैंग दिसंबर 1991 में 6 दिन की यात्रा पर भारत आए । भारत तथा चीन के मध्य 3 समझौते किए गए –

  • सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से आपस में निपटाया जाए।
  • व्यापार संबंधी समझौता किया गया
  • मुंबई तथा शंघाई में राजदूत कार्यालय खोलने का समझौता किया गया

भारतीय नेताओं की चीन यात्रा 1992-93 ( China Visit By Indian Leaders )

भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन मैं 19 से 25 मई 1992 तक चीन की यात्रा की । यह यात्रा सद्भावना के प्रतीक के रूप में एक बड़ा कदम था। तत्पश्चात जुलाई 1992 में रक्षा मंत्री तथा जनवरी 1993 में लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल सांसदों के एक दल के साथ चीन गए।

भारत चीन संबंधों में सद्भावना के विकास की कड़ी में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव सितंबर 1993 में चीन की यात्रा पर गए। वहां 7 सितंबर 1993 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है

  • दोनों राज्य नियंत्रण रेखा पर वस्तु स्थिति बनाए रखेंगे।
  • किसी भी सैनिक पूर्वाभ्यास की पूर्व सूचना दी जाएगी।
  • दोनों राष्ट्र एक दूसरे की एकता और अखंडता का सम्मान करेंगे।

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1994 का व्यापार समझौता (India-China Trade Agreement 1994 )

इसी भारत-चीन सम्बन्ध सुधार की कड़ी में 15 जून 1994 को एक व्यापार समझौता भी हुआ। 1994 में ही चीन के रक्षामन्त्री की भारत यात्रा दोनों देशों व्दारा निर्मित की जा रही सद्भावना का प्रतीक हैं।

भारत-चीन विशेषज्ञों की बैठक 1995 ( India-China Experts’ Meeting )

भारत-चीन सीमा समझौते के अनुसार भारत-चीन विशेषज्ञों की एक बैठक 1 मार्च से 3 मार्च 1995 तक भारत में हुई। इन विशेषज्ञों ने इस तथ्य पर संतोष व्यक्त किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनी हुई है। इस बैठक में यह भी समझौता हुआ कि भारत-चीन के मध्य सैनिक अधिकारियों के मिलने के लिए सीमा पर दो स्थान खोले जाएंगे जिनमें से एक नाथुला सिक्किम क्षेत्र में होगा।

भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की बैठक 1995 ( India-China Joint Working Group meeting 1995 )

20 अगस्त 1995 को नई दिल्ली में भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की तीन दिवसीय बैठक हुई। इस बैठक में भारत और चीन की 4060 किलोमीटर लंबी सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस निर्णय के अनुसार अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर से दोनों देश अपनी अपनी फौजें हटा लेंगे जहां वे आमने-सामने है। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के अधिकारी सेना के प्रतिष्ठानों का दौरा करेंगे जिससे दोनों देशों के मध्य सद्भावना पैदा हो।

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चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा 1996 ( Visit of President of China to India 1996 )

चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन 28 नवंबर 1996 को चार दिवसीय यात्रा पर भारत आए थे। उनके साथ एक बड़ा शिष्टमंडल भी आया था। जियांग जेमिन की इस यात्रा के दौरान भारत चीन के मध्य चार समझौते किए गए।

भारत चीन के मध्य चार समझौते (Four agreements between India-China 1996 )

प्रथम समझौता

भारत और चीन ने 28 नवंबर 1996 को एक ऐतिहासिक समझौता किया जिसकी मुख्य शर्ते निम्नलिखित है –

  • कोई भी पक्ष अपनी सैनिक क्षमता का इस्तेमाल दूसरे के विरुद्ध नहीं करेगा।
  • एक दूसरे के विरुद्ध सैन्य गतिविधियां ना चलाने , वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेनाएं तथा हथियार कम करने का निर्णय लिया गया।

दूसरा समझौता

मादक पदार्थों के व्यापार तथा अंतरराष्ट्रीय अपराधों के नियंत्रण हेतु सहयोग के लिए किया गया ।

तीसरा समझौता

व्यापारिक यातायात से संबंधित समझौता किया गया।

चौथा समझौता

इसमें व्यवस्था है की 1 जुलाई 1997 से हांगकांग का चीन में विलय हो जाने पर भी वहाँ भारत के काउंसलर का कार्यलय बना रहेगा।

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भारत व्दारा परमाणु परीक्षण ( Nuclear test by India,1997 )

दोनों देशों के बीच रचनात्मक और सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए 4 -5 अगस्त ,1997 को भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की वार्ता नयी दिल्ली में हुई। सन 1998 में जियांग जेमिन चीन के नए राष्ट्रपति बने तथा ‘जू रोंगजी ‘के नए प्रधानमंत्री चुने जाने तथा अटल बिहारी बाजपेयी जी के भारत के प्रधानमंत्री नियुक्त होने के पश्चात दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के प्रयासों में तेजी आई, परंतु भारत के द्वारा परमाणु परीक्षण ( 11 और 13 मई 1998 को ) किए जाने के पश्चात दोनों देशों के संबंधों में कटुता पैदा हो गई जिससे दोनों देशों के संबंधों को गहरा आघात पहुंचा।

भारत के विदेश मंत्री की चीन यात्रा ( Foreign Minister of India’s visit to China ,1999 )

जून 1999 में भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने चीन की यात्रा कर वहां के नेताओं से उच्च स्तरीय वार्तालाप किया, दोनों देशों के मध्य परस्पर आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सहयोग विकसित करने की दिशा में कदम उठाने का निर्णय लिया गया। भारत-चीन व्यापार को 2 बिलीयन डॉलर से अधिक बढ़ाने एवं साँझे कार्य समूह की गतिविधियों में वृद्धि के लिए भी निर्णय लिया गया । चीन ने कश्मीर मसले पर पाकिस्तान को दोषी ठहराया।

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भारत के राष्ट्रपति की चीन यात्रा ( Visit of President of India to China ,2000 )

चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन के निमंत्रण पर भारत के राष्ट्रपति के.आर नारायणन 28 मई 2000 से 3 जून 2000 तक 1 सप्ताह की चीन यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों में सुदृढ़ता लाने तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों में पारस्परिक सहयोग करने के लिए सहमति व्यक्त की।

वर्तमान संदर्भ में एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना की भी दोनों देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने आवश्यकता जताई। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना में सुधार तथा सुरक्षा परिषद के विस्तार के मामले पर भी सहमत थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने सीमा संबंधी विवाद सुलझाने तथा राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की ।

चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा ( Visit of Chinese Foreign Minister to India, 2000 )

जुलाई ,2000 में चीन के विदेश मंत्री -तांग श्याशुआन भारत यात्रा पर आए। चीन के विदेश मंत्री एवं भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह के मध्य कई विषयों जैसे -व्यापार ,सूचना ,प्रौद्योगिकी सीमा विवाद एवं दोनों देशों के मध्य रक्षा सहयोग बढ़ाने पर सहमति हुई। दोनों देशों के मध्य ऐसे प्रयास भविष्य में अच्छे संबंधों के संकेत माने जा सकते हैं।

15-18 सितंबर 2000 को दोनों देशों की नौसेनाओ का संयुक्त सैन्य अभ्यास की प्रक्रिया भी दोनों देशों के मध्य संबंध सुधारने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है। नवंबर ,2000 में दोनों देशों के सीमा विवाद संबंधी 1993 में गठित संयुक्त विशेषज्ञों की बैठक हुई। इस बैठक में दोनों देशों की ओर से विवादास्पद क्षेत्र के मानचित्रो का आदान प्रदान किया गया।

यहां यह उल्लेखनीय है कि यह सीमा संबंधी विवाद 1962 के चीन भारत युद्ध के समय से ही चला आ रहा है परंतु दोनों देशों द्वारा वर्तमान में किया गया यह प्रयास भी आपसी विवादों को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाता है।

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चीन के पूर्व प्रधानमंत्री ली-पैंग की भारत यात्रा ( Former Chinese Prime Minister Li-Pang’s visit to India, 2001 )

जनवरी 2001 को चीन की संसद के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री ली-पैंग भारत की यात्रा पर आए थे। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के साथ इस बात पर सहमति व्यक्त की कि दोनों देशों के मध्य चले आ रहे सीमा विवाद को जल्द से जल्द सुलझाया जाए और इस संबंध में दोनों देशों के मध्य गठित संयुक्त विशेषज्ञों की बैठक भी शीघ्र ही की जाए।

इसके अतिरिक्त उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने तथा द्विपक्षीय समस्याओं को आपसी बातचीत के द्वारा दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए समझाने की प्रतिबद्धता भी व्यक्ति की।

चीन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ( Chinese Prime Minister on visit to India )

चीन के प्रधानमंत्री जू रोंग जी भारत की छह दिवसीय यात्रा पर 13 जनवरी को आए । इस यात्रा के दौरान चीन के प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के किसी भी रूप का पुरजोर विरोध किया और भारत की संसद पर हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की और आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय संघर्ष के प्रति समर्थन जताया।

अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच नागर विमानन संपर्क प्रारंभ करने की भी सहमति हुई जो मार्च 2002 में अपना व्यावहारिक रूप ले चुकी है अब दिल्ली और बीजिंग के बीच उड़ान प्रारंभ हो गई। दोनों देशों के प्रतिनिधि मंडलों ने भारत और चीन के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया।

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भारत-चीन संयुक्त कार्य दल की 14वीं बैठक ( 14th meeting of India-China Joint Working Group 2002 )

सीमा विवाद को हल करने के लिए भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की 14वीं बैठक 21 नवंबर 2002 को नई दिल्ली में संपन्न हुई ।इस बैठक में सीमा समस्या के अतिरिक्त द्विपक्षीय महत्व की अन्य बातों पर भी विचार विमर्श हुआ।

भारतीय रक्षामन्त्री जॉर्ज फर्नांडिस की चीन यात्रा ( Indian Defense Minister George Fernandes’ visit to China, 2003 )

भारतीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस अप्रैल 2003 में 1 सप्ताह की चीन यात्रा पर रहे। यहां यह उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व किसी भारतीय रक्षा मंत्री ने 1992 में चीन यात्रा की थी । इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत व चीन के बीच जहां विवादास्पद मुद्दों पर बातचीत करना था, वहां आगामी कुछ समय बाद भारतीय प्रधानमंत्री की प्रस्तावित चीन यात्रा के लिए आधार तैयार करना भी था।

यात्रा के दौरान भारतीय रक्षा मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि चीन भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए तत्पर है। इस तरह भारत में हुए परमाणु परीक्षण के बाद चीन के विरोधी रवैए में परिवर्तन आए।

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भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा ( Visit of Indian Prime Minister to China, 2003 )

भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल के साथ 22 से 27 जून 2003 तक चीन के दौरे पर रहे। यह लगभग 10 वर्षों के अंतराल के पश्चात किसी भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री वाजपेई की चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत हुई।

23 जून को दोनों देशों के बीच 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इन में एक सहमति पत्र सिक्किम के रास्ते सीमा पर व्यापार बढ़ाने से संबंधित था। कूटनीतिक क्षेत्रों में इस समझौते का यह अर्थ लिया जा रहा है कि चीन ने सिक्किम के भारत में विलय को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है और सिक्किम को भारत का अंग मान लिया है।

भारत-चीन सीमा वार्ताएँ ( India-China border talks 2004 )

दोनों देश सीमा संबंधी विवाद का समाधान करने हेतु वचनबद्ध है। सीमा विवाद पर प्रथम बैठक नई दिल्ली में ,दूसरी वार्ता जनवरी 2004 में दिल्ली में ,तीसरे दौर की वार्ता 26-27जुलाई 2004 को नई दिल्ली में तथा चौथा दौर 18-19 नवंबर 2004 को बीजिंग में संपन्न हुआ। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में गठित नहीं सरकार ने भारत की ओर से ब्रजेश मिश्र के स्थान पर जे.एन दीक्षित तथा चीन की ओर से चीन के उप विदेश मंत्री दई बिंगुओ को वार्ता हेतु अधिकृत किया गया है।

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भारत चीन प्रधानमंत्रियों की आपसी बैठक ( India China prime ministers meeting )

नवंबर 2000 में आसियान शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की चीनी प्रधानमंत्री जियाबाओ से वार्ता हुई जिसमें दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी विवाद पर खुलकर चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त चीन ने सिक्किम को भारत के अंग के रूप में स्वीकार किया। इसके साथ-साथ भारत ने चीन के अरुणाचल प्रदेश के अपने दावे को भी पूरी तरह से नकारकर भारत का क्षेत्र होने की बात स्पष्ट कह दी।

भारत चीन के मध्य पहला राजनीतिक संवाद ( First Political Dialogue between India and China 2005)

जनवरी 2005 में भारत-चीन के मध्य पहला राजनीतिक संवाद नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इस संवाद में भारतीय पक्ष का नेतृत्व विदेश सचिव श्याम सस तथा चीनी पक्ष का नेतृत्व उप विदेश मंत्री वू दावेई ने किया । इस वार्ता में दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित सभी द्विपक्षीय मुद्दों का न्यायसंगत ,विवेकपूर्ण एवं परस्पर स्वीकार्य हल निकालने की इच्छा व्यक्त की। इसके अतिरिक्त दोनों पक्षों ने इस वार्ता में बहु-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को विश्व शांति के लिए आवश्यक माना।

इसके साथ साथ परमाणु प्रसार ,अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद तथा संयुक्त राष्ट्र में सुधार जैसे विषयों पर चर्चा की तथा अपने अपने दृष्टिकोण से एक दूसरे को अवगत कराया। इस प्रकार इस रणनीतिक वार्ता से दोनों देशों के बीच आपसी समझ उभर कर सामने आई ।

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चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ( Visit of Chinese Prime Minister to India, 2005 )

9 अप्रैल 2005 को चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ 4 दिन की भारत यात्रा पर रहे। चीनी प्रधानमंत्री की भारत के साथ द्विपक्षीय क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के अनेक मुद्दों पर वार्ताएं हुई । इसमें लिए गए प्रमुख निर्णय इस प्रकार हैं –

  • दोनों देश शांति एवं संपन्नता की सामरिक एवं सहयोगी साझेदारी के लिए सहमत हुए ।
  • दोनों देशों के बीच मैत्री में दरार बने सिक्किम मामले में भारत को चीन ने पूर्णता संतुष्टि प्रदान कर दी। इसके अतिरिक्त चीन द्वारा प्रकाशित ऐसे अधिकारिक मानचित्र भारत को सौंप दिए गए जिनमें सिक्किम को भारत के अंग के रूप में दिखाया गया है।
  • भारत में भी तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र को चीन का हिस्सा स्वीकार कर लिया।
  • भारत चीन में क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्था के लिए संयुक्त कार्य दल की स्थापना के लिए सहमति हुई।
  • दोनों देशों के पारस्परिक रिश्तो को मजबूत बनाने के लिए वर्ष 2006 को भारत चन मैत्री के वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय भी हुआ।
  • दोनों देशों ने सीमा विवाद के हल हेतु 11 सूत्रीय राजनीतिक मानक एवं दिशा निर्देश निश्चित किए। भारत के नए वार्ताकार एम.के नारायण तथा चीन देई बिंगुई ने नए दिशानिर्देशों पर हस्ताक्षर किए।

इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष एवं सॉफ्टवेयर एवं आई टी के क्षेत्र में सहयोग पर बल देने के साथ -साथ सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का भी अप्रत्यक्ष समर्थन करते हुए कहा कि भारत को स्थाई सदस्यता मिलना चीन के लिए ख़ुशी की बात होगी।

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दोनों देशों की प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति की भारत यात्रा ( Visit of Chinese Prime Minister to India, 2006 to 2013 )

चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ 2005 और 2010 में भारत की यात्रा की। चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ 2006 में भारत आए थे। भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सन 2008 में चीन की यात्रा की। चीन के प्रधानमंत्री ली छ्यांग 2013 में भारत आए ।

इसके अलावा ब्रिक्स शिखर बैठक से जुड़ी दो बैठकर भी हुई । डॉ मनमोहन सिंह ने 2011 में सान्या, चीन का दौरा किया था तथा राष्ट्रपति हू जिंताओ ने 2012 में नई दिल्ली का दौरा किया था तथा एक यात्रा अक्टूबर 2008 में असेम शिखर बैठक के सिलसिले में बीजिंग की हुई।

भारत-चीन सम्बन्धो में तनाव के मुख्य कारण ( Main reasons for tension in India-China relations )

भारत और चीन का सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। हालांकि इधर चीन और भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है , तो भी दोनों देशों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं बनी हुई है। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्या है सीमा विवाद और तिब्बत की है। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है।

मोदी सरकार भारत चीन-संबंध ( Modi Government India-China Relations )

2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनें तो पूरा देश में भारत के लिए कई संभावनाएं देख रहा था। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध को लेकर देश के लोगों में काफी उम्मीद थी। नरेंद्र मोदी ने शुरुआत में अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की दिशा में काफी प्रयास किए।

इसी कड़ी में सितंबर 2014 को चीन के राष्ट्रपति मोदी के निमंत्रण पर अहमदाबाद पहुंचे। जिससे मोदी ने उनका स्वागत किया उससे लगा कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेगा। इस यात्रा के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा के नए मार्ग और रेलवे में सहयोग समेत 12 समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

इसके अलावा दोनों देशों ने क्षेत्रीय मुद्दों और चीन के औद्योगिक पार्क से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए। हालांकि उसी दौरान चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के करीब 1000 जवान पहाड़ी से जम्मू कश्मीर के चुमार क्षेत्र में घुस आए थे। भारत ने चीनी राष्ट्रपति के सामने यह मुद्दा उठाया लेकिन अपनी तरफ से वार्ता में कोई खलल नहीं पड़ने दिया।

जून 18 ,2017 को डोकलाम पर सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर से दोनों देशों के बीच तनाव शुरू हुआ और यह लगभग 73 दिनों तक चला । भारत-भूटान और चीन को मिलाने वाले बिंदु को भारत में डोकलाम, भूटान में डोक ला और चीन में डोकलांक कहा जाता है। डोकलाम एक पठार है जो भूटान के हा घाटी, भारत के पूर्व सिक्किम जिला और चीन के यदोंग काउंटी के बीच में है।

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डोकलाम विवाद क्या है ( What is Doklam Dispute in Hindi )

डोकलाम का कुछ हिस्सा सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी हुई है, जहां चीन सड़क बनाना चाहता है। भारतीय सेना ने सड़क बनाए जाने का विरोध किया। भारत की चिंता यह है कि अगर यह सड़क बनी तो हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश से जोड़ने वाली 20 किलोमीटर चौड़ी कड़ी यानी ‘मुर्गी की गर्दन ‘जैसे इस इलाके पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी।

वहीं चीन ने अपनी संप्रभुता की बात को दोहराते हुए कहा कि उन्होंने सड़क अपने इलाके में बनाई है। इसके साथ ही उन्होंने भारत भारतीय सेना पर अतिक्रमण का आरोप लगाया। चीन का कहना था कि भारत 1962 में हुई हार को याद रखें। चीन ने भारत को चेतावनी भी दी कि चीन पहले भी अधिक शक्तिशाली था और अब भी है।

जिसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चीन समझे कि अब समय बदल गया है ,यह 2017 है। इस विवाद का असर यह हुआ कि चीन ने भारत से कैलाश के लिए जाने वाले हिंदू तीर्थ यात्रियों को मानसरोवर यात्रा पर जाने से रोक दिया।

हालांकि बाद में चीन ने हिमाचल प्रदेश के रास्ते 56 हिंदू तीर्थ यात्रियों को मानसरोवर यात्रा के लिए आने-जाने की अनुमति दे दी। डोकलाम पर भारत-चीन के बीच लगभग 2 महीने तक काफी तनातनी होने के बाद अंततः विवाद समाप्त हुआ।

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मई,2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत चीन की सेना में झड़प ( India-China army clash in Eastern Ladakh in May 2020 )

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना में झड़प हुई थी उसके बाद से यहां लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है। तनाव की स्थिति को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच 16 दौर की सैन्य वार्ता अब तक हो चुकी है। लेकिन अभी तक इस स्थिति में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया है।

भारत के विदेश मंत्री का कहना है कि चीन के साथ भारत के संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक कि सीमावर्ती इलाकों में शांति ना हो और इस मामले में भारत की ओर से उस देश को दिया गया संकेत स्पष्ट है

उन्होंने कहा है कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति का माहौल नहीं होगा जब तक समझौतों का पालन नहीं किया जाता है और यथास्थिति को बदलने की एकतरफा प्रयास पर रोक नहीं लगती तब तक संबंध सामान्य नहीं हो सकते।

भारत के सेना प्रमुख जनरल पांडे ने भी बड़ा बयान देते हुए कहा था कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति लगातार बनी हुई है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि स्थिति फिलहाल स्थिर है लेकिन अप्रत्याशित भी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि चीन के साथ अब तक 16 दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है। हम 17वें दौर की वार्ता के लिए तारीख पर गौर कर रहे हैं।

G 20 बैठक 2022 में भारत-चीन प्रधानमंत्री की मुलाकात ( India-China PM’s meeting at 17th G 20 meeting 2022 )

इंडोनेशिया के बाली में होने वाले 17वें जी-20 शिखर सम्मेलन 2022 से ठीक पहले भारत को लेकर चीन के सुर बदल गए। चीन ने कहा कि बीजिंग और नई दिल्ली के बीच अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों और उनके लोगों के हित में है।

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ विंग ने कहा मजबूत संबंध बनाए रखना चीन और भारत दोनों देशों के लोगों के मौलिक हित में है। उन्होंने कहा कि बीजिंग को उम्मीद है कि दोनों पक्ष चीनी और भारतीय नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सामान्य समझ का पालन करेंगे और संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करेंगे ।

खबर के मुताबिक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो की ओर से एक डिनर पार्टी रखा गया था। इस डिनर पार्टी में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग पहुंचे थे। इस दौरान दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया और थोड़ी देर तक बातचीत भी की है।हालांकि दोनों नेताओं के बीच बातचीत क्या हुई है इसको लेकर कुछ अभी तक कुछ नहीं कहा जा सकता।

भारत-चीन सीमा विवाद पर अमेरिकी दखल 2022

30 नंवबर 2022 की ख़बर के अनुसार चीन और अमेरिका के बीच में एक बार फिर से तनातनी शुरू हो गई है क्योंकि इस बार चीन ने अमेरिका को भारत-चीन के बीच ना आने की कड़ी चेतावनी दी है। चीन ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत के साथ अपने रिश्ते को लेकर वह खुद देख लेंगे चीन इसमें दखल अंदाजी ना करें।

खबर के अनुसार चीनी गणराज्य ( पीआरसी ) तनाव कम करना चाहता है ताकि भारत और अमेरिका नजदीक ना आ पाए। यही कारण है कि उसे अमेरिका की दखल अंदाजी पसंद नहीं आ रही। चीन की मंशा सीमा पर स्थिरता कायम करना है और भारत के द्विपक्षीय संबंध के अन्य क्षेत्रों को गतिरोध से होने वाले नुकसान से बचाना है।

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FAQ Checklist

चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना कब हुई ?

सन 1949 में चीन में जब साम्यवादी शासन की स्थापना हुई।

भारत-चीन के बीच ऐतिहासिक सम्बन्ध कैसा रहा ?

भारत-चीन दोनों पड़ोसी एवं विश्व की दो उभरती शक्तियाँ हैं। दोनों देशों के बीच एक लम्बी सीमा रेखा हैं। भारत तथा चीन के आपसी सम्बन्धों का इतिहास बहुत ही पुराना हैं और दोनों देशों के बीच प्राचीनकाल से ही घनिष्ठ सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार चीन की भूमि पर हुआ।
चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात नालंदा विश्वविद्यालय एवं तकशिला विश्वविद्यालय को चुना था क्योंकि उस काल में ये दो प्रमुख विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण थे।

भारत-चीन के बीच दलाई लामा विवाद क्या हैं ?

सन 1959 में दलाई लामा, जो तिब्बत के धार्मिक गुरु माने जाते हैं, को भारत में शरण दिए जाने के पश्चात चीन ने भारत के प्रति शत्रुता पूर्ण रवैया अपनाना आरंभ कर दिया। 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत के कई हजार वर्ग मील क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। यद्यपि अन्य देशों के दबाव के कारण चीन ने एक तरफा युद्ध बंद करने की घोषणा कर दी तथापि इससे भारत तथा चीन के संबंध बहुत बिगड़ गए।

भारत-चीन के बीच विवाद बढ़ने का क्या कारण हैं ?

सन 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो चीन ने पाकिस्तान का ना केवल समर्थन किया ,बल्कि हथियार देकर भी उसकी सहायता की। जब चीन ने भारत को पराजित होते देखा ,तो उसने भारत पर आक्रमण करने की धमकी भी दी। सन 1971 में जब पाकिस्तान ने पुनःभारत पर आक्रमण किया तो चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया और लड़ाई के लिए उसे हथियार भी दिए। इस प्रकार दोनों देशों के सम्बन्धो में बहुत कटुता पूर्ण वातावरण रहा।

भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा कब हुई ?

सन 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन की यात्रा पर गए। यह पिछले लगभग 34 वर्षों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा थी।

भारत और चीन के मध्य 1991 में 3 समझौते क्यों हुए ?

भारत और चीन के मध्य वाणिज्य, प्राविधिकी, संस्कृति आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए 90 के दशक में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। इसी प्रयास में चीन के प्रधानमंत्री ली-पैंग दिसंबर 1991 में 6 दिन की यात्रा पर भारत आए । भारत तथा चीन के मध्य 3 समझौते किए गए –
1 .सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से आपस में निपटाया जाए।
2 .व्यापार संबंधी समझौता किया गया
3 .मुंबई तथा शंघाई में राजदूत कार्यालय खोलने का समझौता किया गया

भारत-चीन संबंधों में सुदृढ़ता लाने के लिए 1993 में कौन से समझौते हुए ?

भारत-चीन संबंधों में सद्भावना के विकास की कड़ी में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव सितंबर 1993 में चीन की यात्रा पर गए। वहां 7 सितंबर 1993 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है-
1.दोनों राज्य नियंत्रण रेखा पर वस्तु स्थिति बनाए रखेंगे।
2.किसी भी सैनिक पूर्वाभ्यास की पूर्व सूचना दी जाएगी।
3.दोनों राष्ट्र एक दूसरे की एकता और अखंडता का सम्मान करेंगे।

भारत-चीन विशेषज्ञों की 1995 में बैठक हुई ,इसका उदेश्य क्या था ?

भारत-चीन सीमा समझौते के अनुसार भारत-चीन विशेषज्ञों की एक बैठक 1 मार्च से 3 मार्च 1995 तक भारत में हुई। इन विशेषज्ञों ने इस तथ्य पर संतोष व्यक्त किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनी हुई है। इस बैठक में यह भी समझौता हुआ कि भारत-चीन के मध्य सैनिक अधिकारियों के मिलने के लिए सीमा पर दो स्थान खोले जाएंगे जिनमें से एक नाथुला सिक्किम क्षेत्र में होगा।

भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की 1995 में तीन दिवसीय बैठक का उदेश्य क्या था ?

20 अगस्त 1995 को नई दिल्ली में भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की तीन दिवसीय बैठक हुई। इस बैठक में भारत और चीन की 4060 किलोमीटर लंबी सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस निर्णय के अनुसार अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर से दोनों देश अपनी अपनी फौजें हटा लेंगे जहां वे आमने-सामने है। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के अधिकारी सेना के प्रतिष्ठानों का दौरा करेंगे जिससे दोनों देशों के मध्य सद्भावना पैदा हो।

भारत-चीन ने 1996 को एक ऐतिहासिक समझौता किया जिसकी मुख्य शर्ते क्या थी ?

भारत और चीन ने 28 नवंबर 1996 को एक ऐतिहासिक समझौता किया जिसकी मुख्य शर्ते निम्नलिखित है –
1.कोई भी पक्ष अपनी सैनिक क्षमता का इस्तेमाल दूसरे के विरुद्ध नहीं करेगा।
2.एक दूसरे के विरुद्ध सैन्य गतिविधियां ना चलाने , वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेनाएं तथा हथियार कम करने का निर्णय लिया गया।
3. मादक पदार्थों के व्यापार तथा अंतरराष्ट्रीय अपराधों के नियंत्रण हेतु सहयोग के लिए किया गया ।

भारत-चीन के सम्बन्धों में कटुता आने के क्या कारण हैं ?

भारत के द्वारा परमाणु परीक्षण ( 11 और 13 मई 1998 को ) किए जाने के पश्चात दोनों देशों के संबंधों में कटुता पैदा हो गई जिससे दोनों देशों के संबंधों को गहरा आघात पहुंचा।

भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की 14वीं बैठक कब हुई और उदेश्य क्या था ?

सीमा विवाद को हल करने के लिए भारत-चीन संयुक्त कार्यदल की 14वीं बैठक 21 नवंबर 2002 को नई दिल्ली में संपन्न हुई ।इस बैठक में सीमा समस्या के अतिरिक्त द्विपक्षीय महत्व की अन्य बातों पर भी विचार विमर्श हुआ।

भारत चीन के मध्य पहला राजनीतिक संवाद कब और क्यों हुआ ?

जनवरी 2005 में भारत-चीन के मध्य पहला राजनीतिक संवाद नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इस संवाद में भारतीय पक्ष का नेतृत्व विदेश सचिव श्याम सस तथा चीनी पक्ष का नेतृत्व उप विदेश मंत्री वू दावेई ने किया । इस वार्ता में दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित सभी द्विपक्षीय मुद्दों का न्यायसंगत ,विवेकपूर्ण एवं परस्पर स्वीकार्य हल निकालने की इच्छा व्यक्त की। इसके अतिरिक्त दोनों पक्षों ने इस वार्ता में बहु-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को विश्व शांति के लिए आवश्यक माना।

G20 बैठक 2022 से पहले भारत को लेकर चीन ने क्या कहा ?

इंडोनेशिया के बाली में होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले भारत को लेकर चीन के सुर बदले नजर आ रहे हैं। चीन ने कहा कि बीजिंग और नई दिल्ली के बीच अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों और उनके लोगों के हित में है।

चीनी और भारतीय प्रधानमंत्री की 2022 की मुलाकात के बारे में बताएं।

खबर के मुताबिक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो की ओर से एक डिनर पार्टी रखा गया था। इस डिनर पार्टी में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग पहुंचे थे। इस दौरान दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया और थोड़ी देर तक बातचीत भी की है।

 पूर्वी लद्दाख में सेनाओं के बीच हुई झड़प के बाद भारत-चीन संबंध कैसा हैं ?

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना में झड़प हुई थी। उसके बाद से यहां लगातार तनाव की स्थिति है। तनाव की स्थिति को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच 16 दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है। अब तक स्थिति में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया है। 

भारत-चीन सम्बन्धों में 2020 से वर्तमान तक तनाव के क्या कारण हैं ?

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना में झड़प हुई थी। उसके बाद से यहां लगातार तनाव की स्थिति है। तनाव की स्थिति को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच 16 दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है। अब तक स्थिति में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया है। 

भारत-चीन सम्बन्धों में 2020 से वर्तमान तक कितना सुधार आया ?

 इंडोनेशिया के बाली में होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले भारत को लेकर चीन के सुर बदले नजर आ रहे हैं। चीन ने कहा कि बीजिंग और नई दिल्ली के बीच अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों और उनके लोगों के हित में है। उन्होंने कहा कि बीजिंग को उम्मीद है कि दोनों पक्ष चीनी और भारतीय नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सामान्य समझ का पालन करेंगे और संबंधों के मजबूत और स्थिर विकास को बढ़ावा देंगे।

भारत-चीन सम्बन्धो में तनाव के मुख्य कारण क्या हैं ?

भारत और चीन का सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। हालांकि इधर चीन और भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है , तो भी दोनों देशों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं बनी हुई है। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्या है सीमा विवाद और तिब्बत की है। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है।

भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद कब शुरू हुई ?

जून 18 ,2017 को डोकलाम पर सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर से दोनों देशों के बीच तनाव शुरू हुआ और यह लगभग 73 दिनों तक चला । भारत-भूटान और चीन को मिलाने वाले बिंदु को भारत में डोकलाम, भूटान में डोक ला और चीन में डोकलांक कहा जाता है। डोकलाम एक पठार है जो भूटान के हा घाटी, भारत के पूर्व सिक्किम जिला और चीन के यदोंग काउंटी के बीच में है।

भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद क्या हैं ?

डोकलाम का कुछ हिस्सा सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी हुई है, जहां चीन सड़क बनाना चाहता है। भारतीय सेना ने सड़क बनाए जाने का विरोध किया। वहीं चीन ने अपनी संप्रभुता की बात को दोहराते हुए कहा कि उन्होंने सड़क अपने इलाके में बनाई है। चीन का कहना था कि भारत 1962 में हुई हार को याद रखें। चीन ने भारत को चेतावनी भी दी कि चीन पहले भी अधिक शक्तिशाली था और अब भी है।

भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद बढ़ने के क्या कारण हैं ?

डोकलाम का कुछ हिस्सा सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी हुई है, जहां चीन सड़क बनाना चाहता है। चीन ने अपनी संप्रभुता की बात को दोहराते हुए कहा कि उन्होंने सड़क अपने इलाके में बनाई है। चीन का कहना था कि भारत 1962 में हुई हार को याद रखें। चीन ने भारत को चेतावनी भी दी कि चीन पहले भी अधिक शक्तिशाली था और अब भी है। जिसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चीन समझे कि अब समय बदल गया है ,यह 2017 है।

चीन ने भारत के संबंध में अमेरिका को चेतावनी क्यों दी हैं ?

30 नंवबर 2022 की ख़बर के अनुसार चीन और अमेरिका के बीच में एक बार फिर से तनातनी शुरू हो गई है क्योंकि इस बार चीन ने अमेरिका को भारत-चीन के बीच ना आने की कड़ी चेतावनी दी है। चीन ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत के साथ अपने रिश्ते को लेकर वह खुद देख लेंगे चीन इसमें दखल अंदाजी ना करें।

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