5 Main Reason For Adopt Parliamentary System In India संसदीय स्वरूप

Parliamentary System :संसदीय प्रणाली अपनाने के मुख्य कारण

राजनीति विज्ञान पार्लियामेंट्री सिस्टम

5 Main Reason For Adopt Parliamentary System In India – संसदीय स्वरूप -भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई हैं । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया हैं । प्रस्तावना में यह बात स्पष्ट रूप से कही गयी हैं कि सत्ता का अंतिम स्त्रोत जनता हैं और संविधान का निर्माण करने वाले तथा उसे अपने ऊपर लागू करने वाले भारत के लोग हैं ।

देश का शासन जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है । देश में व्यस्क मताधिकार प्रणाली को लागू किया गया है जिसके अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक , जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक है , को मतदान में भाग लेने का अधिकार है । जाति ,धर्म , लिंग , रंग अथवा जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता ।

देश में समय समय पर चुनाव होते रहते हैं । ब्रिटिश शासन के अधीन लगभग 200 वर्षों तक रहने के कारण भारतीय , संसदीय शासन प्रणाली को त्याग नहीं सके । अभी तक लोकसभा के 17 चुनाव हो चुके हैं ।

Table of Contents विषय सूची

संसदीय स्वरूप ( Parliamentary Model in Hindi )

संसदीय स्वरूप Parliamentary Model-संविधान सभा के सदस्यों में इस बात के बारे में काफी मतभेद था कि भारत में संसदीय लोकतंत्र Parliamentary Democracy की स्थापना की जाए अथवा अध्यक्षात्मक लोकतंत्र  Presidential Democracy की । शिब्बल लाल सक्सेना तथा सैयद काजी ने अध्यक्षात्मक लोकतंत्र की वकालत की थी परंतु बहुमत संसदीय लोकतंत्र की स्थापना के पक्ष में था । अतः भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई ।

संसदीय शासन प्रणाली व्यवस्था Parliamentary System वह व्यवस्था हैं जिसमें सरकार के दो अंगों – विधानमंडल तथा कार्यपालिका में घनिष्ठ संबंध होता हैं । ( 5 Main Reason For Adopt Parliamentary System In India | संसदीय स्वरूप )
कार्यपालिका ( मंत्री – परिषद ) का निर्माण विधानमंडल में से किया जाता है और वह अपनी नीतियों तथा कार्यों के लिए विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी होता हैं । मंत्री – परिषद के सदस्य उतने समय तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें विधानमंडल में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है ।

यह भी पढ़ें –

जिस समय मंत्री – परिषद विधानमंडल में बहुमत का समर्थन खो देता हैं ,उसे अपने पद से त्याग – पत्र देना पड़ता हैं । इस शासन प्रणाली में राज्य का मुखिया -राजा /रानी , राष्ट्रपति अथवा गवर्नर – जनरल – नाममात्र का अध्यक्ष होता हैं और वास्तविक रूप में शासन की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री तथा मंत्री – परिषद के अन्य सदस्यों ( मंत्रियों ) के द्वारा किया जाता है ।

संसदीय सरकार को ‘ मंत्रिमण्डलीय सरकार ‘ Cabinet Government भी कहा जाता है क्योंकि इस व्यवस्था में शासन की वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिमंडल के हाथों में होती हैं । इस प्रणाली को उत्तरदायी सरकार भी कहा जाता हैं क्योंकि इसमें सरकार अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होती हैं । रिचर्ड क्रोसमैन ने संसदीय सरकार को प्रधानमंत्रीय सरकार ( Prime Ministerial Government ) का नाम दिया है क्योंकि इस प्रणाली में प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत शक्तिशाली होती हैं और समस्त शासन उसके इर्द – गिर्द घूमता हैं । भारत के अतिरिक्त इंग्लैंड ,जापान , कनाडा ,ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया हैं ।

संसदीय सरकार की परिभाषायें ( Definitions of Parliamentary System in Hindi )

संसदीय सरकार की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषायें इस प्रकार हैं –

1. गेटल Gettel के अनुसार – मंत्रिमण्डलीय सरकार वह सरकार हैं जिसमें वास्तविक कार्यपालिका अपने कार्यों के लिए विधानमंडल के प्रति कानूनी रूप से उत्तरदायी होती हैं ।

2. ए वी डायसी A V Dicey के अनुसार – मंत्रिमण्डलीय सरकार वह सरकार हैं जो कार्यकारिणी तथा वैधानिक शक्तियों के सहयोग पर आधारित हैं और साथ ही उन दोनों के मध्य एक जैसे संबंधों के बने रहने पर आधारित होती हैं ।

3. डॉ गार्नर Dr.Garner – संसदीय सरकार वह शासन प्रणाली हैं जिसमें वास्तविक कार्यपालिका – मन्त्रिमण्डल या मंत्री – परिषद अपनी राजनीतिक नीतियों और कार्यों के लिए प्रत्यक्ष तथा कानूनी रूप से विधानमंडल या प्रायः उसके लोकप्रिय सदन के प्रति और अंतिम तथा राजनीतिक तौर पर मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी हो जबकि राज्य का अध्यक्ष संवैधानिक या राजनीतिक कार्यपालिका हो और अनुत्तरदायी हो ।

यह भी पढ़ें –

भारत में संसदीय शासन – प्रणाली क्यों अपनाई गई ( Why Was Parliamentary System Adopted in India )

भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा के सदस्यों में इस बात पर काफी वाद – विवाद हुआ था कि भारत में संसदीय शासन – प्रणाली अधिक ठीक रहेगी अथवा अध्यक्षात्मक Presidency शासन प्रणाली उचित रहेगी । अन्त में संसदीय शासन के पक्ष में निर्णय लिया गया । इसके लिए मुख्य कारण निम्नलिखित हैं ।

1. संसदीय परम्परायें Parliamentary Traditions –

संसदीय परम्परायें Parliamentary Traditions -भारत एक लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा । संसार में इंग्लैंड पहला ऐसा देश था जहाँ पर संसदीय शासन – प्रणाली को अपनाया गया । इंग्लैंड में यह प्रणाली बहुत ही सफलतापूर्वक कार्य कर रही थी। इस प्रणाली को अच्छा मानते हुए अंग्रेजों ने भारत में भी सन 1892 , 1919 तथा 1935 के अधिनियमों द्वारा कुछ हद तक इस प्रणाली को लागू करने का प्रयास किया था ।

सन 1935 के अधिनियम द्वारा भारत में प्रांतीय स्वायत्तता ( Provincial Autonomy ) की स्थापना की गई । अतः भारतीयों के लिए यह शासन – प्रणाली नई नहीं थी और वे इसके बारे में पहले से ही जानकारी रखते थे । अतः संविधान सभा में बहुमत द्वारा इस प्रणाली समर्थन किया गया ।

डॉ के एम मुंशी ,जो संविधान सभा के सदस्य थे , द्वारा संसदीय शासन – प्रणाली का समर्थन करते हुए संविधान सभा में यह कहा गया था कि भारत में इस प्रणाली की जड़े बहुत गहरी तथा मजबूत हैं और लोगों को इसके बारे में जानकारी प्राप्त है । अतः इसे स्वीकार किया जाना चाहिए ।

2. उत्तरदायी तथा स्थिरता Responsibility and Stability

उत्तरदायी तथा स्थिरता Responsibility and Stability-संविधान सभा में प्रारूप समिति Drafting Committee के अध्यक्ष डॉ अम्बेडकर द्वारा संसदीय प्रणाली का समर्थन करते हुए यह कहा गया था कि इसमें उत्तरदायित्व तथा स्थिरता दोनों पाई जाती हैं । इस प्रणाली में सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी रहती हैं और ठीक मार्ग पर चलते हुए कार्य करने के लिए सतर्क रहती हैं । वह अपनी नीति तथा कार्यक्रम का निर्माण जनता के हितों को ध्यान में रखकर करती हैं । इसके विपरीत अध्यक्षात्मक सरकार में यधपि स्थायित्व तो रहता है , परन्तु उसमें उत्तरदायित्व का अभाव होता हैं ।

यह भी पढ़ें –

3. वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना To Establish Democracy in the Real Sense

वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना To Establish Democracy in the Real Sense-संसदीय सरकार देश में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करने में सहायक सिद्ध होती हैं । संसद के सदस्य कार्यपालिका के सदस्यों ( मंत्रियों ) से प्रश्न पूछकर तथा उनकी आलोचना करके उनके कार्यों तथा नीतियों को प्रभावित करते रहते हैं और उन्हें जनमत से अवगत कराते रहते हैं । संसद के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं , जो बदले में जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं । अतः भारत में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए भी संसदीय शासन – प्रणाली को अपनाया गया ।

4. लचीली अथवा परिवर्तनशील सरकार Government is Flexible – Can be changed easily

लचीली अथवा परिवर्तनशील सरकार Government is Flexible – Can be changed easily-भारत को काफी समय के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी जिसे भारत के लोग किसी भी क़ीमत पर बनाये रखना चाहते थे । वे ऐसी सरकार की व्यवस्था करना चाहते थे जो परिवर्तनशील हो अर्थात जिसे समय तथा परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके और निरंकुश न बन सके । चूंकि संसदीय शासन – प्रणाली में सरकार का कार्यकाल निश्चित नहीं होता और अत्यचारी अथवा जन – विरोधी सरकार को आसानी से बदला जा सकता हैं । अतः भारत में इस प्रणाली को लागू करने का निर्णय किया गया ।

यह भी पढ़ें –

5. विधानमंडल तथा कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध Close Relationship between the Legislature and the Executive

विधानमंडल तथा कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध Close Relationship between the Legislature and the Executive-संसदीय शासन -प्रणाली में विधानमंडल तथा कार्यपालिका एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं जिससे शासन का संचालन सरल तथा सुविधाजनक हो जाता हैं । इस प्रणाली में मन्त्री- परिषद के सदस्य संसद में से लिये जाते हैं और संसद में बहुमत का समर्थन होने के कारण अपनी इच्छानुसार किसी भी बिल को पास करने में सफल हो जाते हैं । इसके परिणामस्वरूप शासन के संचालन में कोई कठिनाई नहीं आती हैं । अतः भारत में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई ।

FAQ Checklist

विधानमंडल तथा कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध की व्याख्या करें।

संसदीय शासन -प्रणाली में विधानमंडल तथा कार्यपालिका एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं जिससे शासन का संचालन सरल तथा सुविधाजनक हो जाता हैं । इस प्रणाली में मन्त्री- परिषद के सदस्य संसद में से लिये जाते हैं और संसद में बहुमत का समर्थन होने के कारण अपनी इच्छानुसार किसी भी बिल को पास करने में सफल हो जाते हैं । इसके परिणामस्वरूप शासन के संचालन में कोई कठिनाई नहीं आती हैं । अतः भारत में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई

लचीली अथवा परिवर्तनशील सरकार से क्या तात्पर्य हैं ?

लचीली अथवा परिवर्तनशील सरकार Government is Flexible – Can be changed easily-भारत को काफी समय के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी जिसे भारत के लोग किसी भी क़ीमत पर बनाये रखना चाहते थे । वे ऐसी सरकार की व्यवस्था करना चाहते थे जो परिवर्तनशील हो अर्थात जिसे समय तथा परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके और निरंकुश न बन सके । चूंकि संसदीय शासन – प्रणाली में सरकार का कार्यकाल निश्चित नहीं होता और अत्यचारी अथवा जन – विरोधी सरकार को आसानी से बदला जा सकता हैं । अतः भारत में इस प्रणाली को लागू करने का निर्णय किया गया ।

वास्तविक लोकतंत्र क्या होती हैं ?

वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना To Establish Democracy in the Real Sense-संसदीय सरकार देश में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करने में सहायक सिद्ध होती हैं । संसद के सदस्य कार्यपालिका के सदस्यों ( मंत्रियों ) से प्रश्न पूछकर तथा उनकी आलोचना करके उनके कार्यों तथा नीतियों को प्रभावित करते रहते हैं और उन्हें जनमत से अवगत कराते रहते हैं । संसद के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं , जो बदले में जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं । अतः भारत में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए भी संसदीय शासन – प्रणाली को अपनाया गया ।

संसदीय प्रणाली में उत्तरदायी तथा स्थिरता की व्यवस्था क्यों की गयी ?

उत्तरदायी तथा स्थिरता Responsibility and Stability-संविधान सभा में प्रारूप समिति Drafting Committee के अध्यक्ष डॉ अम्बेडकर द्वारा संसदीय प्रणाली का समर्थन करते हुए यह कहा गया था कि इसमें उत्तरदायित्व तथा स्थिरता दोनों पाई जाती हैं । इस प्रणाली में सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी रहती हैं और ठीक मार्ग पर चलते हुए कार्य करने के लिए सतर्क रहती हैं । वह अपनी नीति तथा कार्यक्रम का निर्माण जनता के हितों को ध्यान में रखकर करती हैं । इसके विपरीत अध्यक्षात्मक सरकार में यधपि स्थायित्व तो रहता है , परन्तु उसमें उत्तरदायित्व का अभाव होता हैं ।

संसदीय परम्परायें क्या हैं ?

संसदीय परम्परायें Parliamentary Traditions -भारत एक लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा । संसार में इंग्लैंड पहला ऐसा देश था जहाँ पर संसदीय शासन – प्रणाली को अपनाया गया । इंग्लैंड में यह प्रणाली बहुत ही सफलतापूर्वक कार्य कर रही थी। इस प्रणाली को अच्छा मानते हुए अंग्रेजों ने भारत में भी सन 1892 , 1919 तथा 1935 के अधिनियमों द्वारा कुछ हद तक इस प्रणाली को लागू करने का प्रयास किया था ।

और पढ़ें –